कुंडली के बारह (१२) भाव में सूर्य का प्रभावलग्न भाव में सूर्य का प्रभाव
कुंडली के बारह (१२) भाव में सूर्य का प्रभाव
लग्न भाव में सूर्य का प्रभाव
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सवभावः सूर्य को लग्न (प्रथम भाव) में
स्थित होने से जातक क्रोधी, स्वाभिमानी,
अस्थिर किंतु दृढ इच्छाशक्ति वाला होता है। जातक का ललाट विशाल होता है व बड़ी नाक भी होती है। जातक का शरीर हाँलाकि दुबला-पतला रहता है। लग्नस्थ सूर्य नेत्ररोग यदि सूर्य मेष सिंह हुआ तो रात्रि में कम दिखाई दे यह संभवतः हो सकता है ।  जातक यदि स्वतंत्र व्यवसाय करें या नौकरी उसे उच्चपद की प्राप्ति अवश्य होती है। वह संपत्तिवान भी होता है।
सप्तम दृष्टिः सूर्य के लग्न में स्थिर होने से उसकी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव (पत्नी) पर पड़ती है जिससे जातक अपनी पत्नी से दुखी होता है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व या उच्च राशि में सूर्य के प्रथम भाव के प्रभाव बहुत सकारात्मक व अधिक होते हैं। जातक अतिमहत्वपूर्ण बनता है व उसका यश बहुत अधिक फैलता है। सूर्य के शत्रु राशि में उपस्थित अपयश भी प्रदान कर सकती है या यश को कम कर सकती है।
प्रथम भाव विशेषः प्रथम भाव पर सूर्य के प्रभाव से जातक यशस्वी, ज्ञानी व राज सम्मान को प्राप्त करता है। उसमें महत्वाकांक्षा भी करती है। उसका व्यक्तित्व साहस और वीरता से भी परिपूर्ण होता है।
द्वितीय भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः द्वितीय भाव का सूर्य जातक को झगड़ा करने वाला, उग्र, उत्तेजित एवं ऊँची आवाज में बोलने वाला बनता है।
सप्तम दृष्टिः सूर्य के द्वितीय भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि मृत्यु भाव (अष्टम भाव) पर पड़ती है इससे जातक की लंबी आयु होती है।
मित्र/शत्रु राशिः द्वितीय भाव में मित्र, स्व व उच्च राशि के सूर्य से जातक धनवान बनता है। उसके पास संपत्ति भी होगी और धन का संचय भी हो पायेगा।
शत्रु व नीच राशि का सूर्य द्वितीय भाव में स्थित होने से जातक का धन का नाश होगा। जातक अपनी पैतृक संपत्ति का भी नाश करेगा।
द्वितीय भाव विशेषः द्वितीय भाव में सूर्य की स्थिति से जातक को पैतृक संपत्ति नहीं मिलती है। द्वितीय भाव में सूर्य से जातक परिवारजनों से विवाद करता है।
तृतीय भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः तृतीय भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक यशस्वी, रचनात्मक मनोवृत्ति वाला, प्रतापी और पराक्रमी होता है। वह सदैव दूसरो की सहायता के लिए तत्पर रहता है। जातक बुद्धिमान और ज्ञानी होता है।
पूर्ण दृष्टिः तृतीय भाव में स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि नवम पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक भाग्यशाली, घार्मिक, आस्तिक एवं  कार्यकुशल होता है। उसे उच्चपद की प्राप्ति होती है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र राशि, स्वराशि अथवा उच्च राशि में तृतीय भाव में सूर्य के होने पर जातक भाइयों के लिए भाग्यशाली होता है। वह अपने पराक्रम से धनार्जन करने वाला होता है। जातक को दूर देशों की यात्रा करना पसंद होता है।
शत्रु व नीच राशि में सूर्य तृतीय भाव में स्थित होने पर जातक को चर्म रोग, विष औरअग्नि से भय होता है। जातक को जीवन में कई बार मानहानि का भय होता है। वह अति उग्र प्रवृति का होता है। जातक को भाईयों से सुख एवं सहयोग नहीं मिलता है।
भाव विशेषः तृतीय स्थान में सूर्य से जातक के परिवारिक संबंध सुदृढ़ होते हैं। सुख-दुख में जातक परिवारजनों का पूरा ध्यान रखता है। शत्रुओं पर जातक को विजय प्राप्त होती है। जातक राजा के समान सर्व सुखों से युक्त जीवन व्यतीत करता है। जातक को यात्राओं में सफलता और आनंद दोनों हा प्राप्त होते हैं। जातक राजा कार्यो में सफल होता है। जातक बलवान होता है।
स्वभावः चतुर्थ स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक बुद्धिमान एवं अच्छी स्मरण शक्ति वाला होता है। जातक प्रवासी होता है। जातक प्रसिद्ध, कठोर और गुप्त विध्या में रूचि रखने वाला होता है।
पूर्ण दृष्टिः चतुर्थ स्थान पर स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि दशम स्थान पर पड़ती हैं जिसके प्रभाव से जातक राजमान्य होता है एवं उच्चपद को प्राप्त करने वाला होता है। जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
मित्र/शत्रु राशिः स्व उच्च व मित्र राशि में सूर्य चतुर्थ भाव में होने पर जातक कला प्रिय, पारिवारिक सुखों को प्राप्त करने वाला, राजमान्य और प्रसिद्ध होता है। शत्रु व नीच राशि में चतुर्थ भाव में स्थित होने पर सूर्य से जातक को माता पिता के सुख में न्यूनता होती है। जातक को किराये के मकान में रहना पड़ता है। व्यर्थ के मुकदमें जातक का धन नष्ट होता है।
भाव विशेषः चतुर्थ भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को जमीन, मकान एवं वाहन के सुख में न्यूनता आती है। जातक की माता को भी कष्ट होता है। जातक राजमान्य होता है एवं अपने कार्य पक्ष की ओर से सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थ स्थान में स्थित सूर्य जातक के सुख को कम करते हुए जातक को चिंताग्रस्त बनाता है।
पंचम भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः पंचमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक स्वभाव से कुशाग्र, तेजस्वी, तीक्ष्ण बुद्धि और क्रोधी होता है। जातक पढ़ने में अच्छा एवं तीक्ष्ण स्मरण शक्ति वाला होता है।
पूर्ण दृष्टिः पंचमस्थ सूर्य की पूर्ण दृष्टि एकादश स्थान पर होती है जिसका प्रभाव से जातक उच्च कोटि की आय का अर्जन करता है। जातक राजमान्य, यशस्वी और धनी होता है।
मित्र/शत्रु राशिः स्व, मित्र और उच्च राशि का होने पर पंचमस्थ सूर्य के शुभ प्रभावों में उच्चता आती है। जातक को अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। जातक विद्वान, यशस्वी, उच्च पद प्राप्त करने वाला और साहसी होता है। जातक की संतान भी सुख होती है। जातक कोपुत्र होते हैं। शत्रु व नीच राशि में होने पर विध्या में बाधा, संतान कष्ट, निंदा और अन्य कष्टों का सामना करना पड़ता है।
भाव विशेषः पंचमस्थ सूर्य शुभ राशि में होने पर स्वयं राज योग कारक होता है। पंचमस्थ सूर्य जातक को उच्च शिक्षा प्रदान करता है जिसके प्रभाव से जातक अपनी शिक्षा का उपयोग करते हुए जीवन यापन करता है। जातक सदाचारी औंर बुद्धिमान होता है किंतु उसे शीघ्र क्रोध आता है।
छठवें स्थान में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः छठवें स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक बलवान, तेजस्वी और निरोगी होता है। जातक निडर होता है। उसे शत्रुऔं का जरा भी भय नही होता। जातक में साहस एवं पराक्रम प्रचुरता से होता है।
पूर्ण दृष्टिः षष्ठ स्थान में स्थित सूर्य की पूर्ण दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपव्ययी होता है। धनार्जन में जातक को बाधा आती है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व अथवा उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक के शत्रुओं का नाश होता है। जातक का विरोध करने वाला असफल होता है। जातक निरोगी होता है। षष्ठ भावमें शत्रु व नीच राशि का होने पर सूर्य के प्रभाव से जातक की मान हानि होती है। जातक के कई शत्रु व्यर्थ ही बन जाते हैं। जातक अपव्यय करने वाला और कुसंगी होता है।
भाव विशेषः षष्ठ भाव में सूर्य की स्थिति अति शुभ मानी गयी है। षष्ठ भाव में सूर्य प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है जिससे जातक शत्रु और रोगों पर समाज रूप से विजय प्राप्त करता है जातक में प्रवल जीवनशक्ति होती है। जातक न्यायवान होता है।
सातवें स्थान में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः सप्तम स्थान में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक प्रभावशाली, साहसी, यशस्सी, तीक्ष्ण स्वभाव वाला, कठोर और प्रखर होता है। जातक के हाव भाव एवं स्वभाव में गंभीरता होती है। पूर्ण दृष्टिः लग्न पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक प्रतिभाशाली, राजमान्य, सफल एवं अहंकारी होता है। वह किसी भी प्रकार के दबाब का विरोध करता है।
मित्र/शत्रु राशिः सप्तम भाव में स्व, मित्र और उच्च राशि में स्थित सूर्य प्रबल होता है जिससे जातक ईमानदार, धनी और जीवन के सुखों का आनंद उठाता है। जातक की पत्नी अतिथि सत्कार में कुशल होती है किंतु जातक का उसकी पत्नी से झगड़ा होता रहता है। शत्रु राशि व नीच राशि में सप्तम भाव में स्थित सूर्य अशुभ फल देता है। जातक के वैवाहिक जीवन पर इसका बुरा प्रभाव होता है। जातक स्वतंत्रता प्रिय होता है। जातक को किसी प्रकार का बंधन अथवा रोक-टोक पसंद नही होती।
भाव विशेषः सप्तम स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक की अपनी पत्नी से संबंधो में खटास होती है एवं उसका तनाव पूर्ण वैवाहिक जीवन होता है। यह जातक को ईष्यालु भी बनाता है। सप्तम स्थान पर सूर्य जातक को कठोर एवं स्वाभिमानी बनाता है। जातक अपमानित होता है एवं हमेशा चिंतायुक्त रहता है।
अष्टम भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः अष्टम स्थान में सूर्य के प्रभाव से जातक अपव्ययी एवं झगड़ालू स्वभाव का होता है। वह रहस्यात्मक विद्याओं में रूचि रखने वाला होता है। जातक कामी, अस्थिर विरारों वाला एवं बातूनी होता है।
पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव पर सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में बाधाएँ आती है। जातक के पारिवारिक सुख में भी न्यूनता होती है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में होने पर सूर्य जातक को सुखी बनाता है एवं अष्टम स्थान पर होने वाले अशुभ प्रभाव को खत्म करता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित सूर्य जातक को चिंतायुक्त बनाता है। जातक में धैर्य की कमी होती है एवं वह बहुत जल्दी अपना धैर्य खोकर क्रोधित हो उठता है।
भाव विशेषः जातक को अष्टमस्थ सूर्य के प्रभाव से नेत्र पीड़ा विशेषकर दाँये नेत्र में होने की संभावना होती है। हृदय संबंधी रोग भी हो सकते है। अष्टम स्थान पर स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक रोगी रहता है विशेषकर जातक को पित्त संबंधी कष्ट रहता है। अष्टमस्थ सूर्य जातक को एक तरफ जहाँ लंबी आयु प्रदान करता है वही जातक को यह धनी भी बनाता है। जातक बुद्धि का उपयोग कम करता है।
नवम् भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः नवम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक का स्वभाव दूसरों की सहायता के लिए सदा तत्प होता है। जातक महत्वाकाँक्षी, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, प्रसिद्ध और आस्तिक होता है।
पूर्ण दृष्टिः नवमस्थ सूर्य की पूर्ण दृष्टि के प्रभाव से जातक को अपने भाईयों से कष्ट प्राप्त होता है। जातक के कथन को उसके कर्मी का सहयोग नही मिलता अर्थात कहा हुआ कार्य जातक जातक पूर्ण नही करता अतः जातक स्वयं के लिए अनेक परेशानियों का कारण हो जाता है। जातक यशस्वी होता है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व उच्च राशि का सूर्य होने पर जातक साहसी, भाग्यशाली एवं धार्मिक होता है। उसे अपने पुरूषार्थ पर पूरा भरोसा होता है। वह अपने प्रयासों से हर कार्य सिद्ध करता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक को भाग्योदय के लिए अनेक संघर्ष का सामना करना पड़ता है। जातक अपमानित होता है और उसे अनेक अप्रत्याशित नुकसान उठाने पड़ते हैं।
भाव विशेषः नवमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक सदाचारी होता है। जातक के योग, तपस्या व उच्च विचार होते हैं। जातक को वाहन व नौकर का सुख प्राप्त होता है। जातक मृत्यु के बाद यशस्वी होता है। मृत्यु के बाद जातक को उसके कार्यों में ख्याति प्राप्त होती है। नवमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक प्रायः सामाजिक संस्थाओं के कार्यो से जुडा होता है। मंदिर इत्यादि के निर्माण में जातक बढ़-चढ़ के भाग लेता है।
दशम स्थान में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः दशम भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक महत्वकाँक्षी, साहसी और स्वयं को केन्द्र  में रखने का इच्छुक होता है। वह धनी, प्रसिद्ध, साहसी और लगातार सफलता प्राप्त करने वाला होता है।
पूर्ण दृष्टिः दशम सूर्य की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ स्थान पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अपनी माता के स्वास्थ के लिए चिंतित रहता है। जातक साधु संतो का मान-सम्मान करता है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक उच्च पदाधिकारी होता है। जातक परिवार से सुखी होता है एवं कानूनी विषयों में सफलता प्राप्त करना है। जातक लंबी यात्राएं करता है। वह विदेशों में कष्ट प्राप्त करता है। जातक को कर्म क्षेत्र में असफलताओं का सामना करना पड़ता है।
भाव विशेषः दशमस्थ सूर्य योग कारक है जिसके प्रभाव से जातक को अपने व्यवसाय में उच्च कोटि की सफलता, यश एवं धन प्राप्त होता है। क्योंकि जातक अत्यंत जिद्दी होता है एवं पिता ऐश्वर्यशाली बनाता है। जातक उदार एवं प्रतापी होता है। जातक की कार्य कुशलता उसे व्यवसाय व व्यापार में प्रसिद्ध व सुख दिलाती है।
एकादश भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः एकादश भाव में स्थित सूर्य से जातक सद्गुणी, यशस्वी, धनी, प्रसिद्ध एवं विद्वान होता है। जातक सदैव सत्य का समर्थन करने वाला होता है। जातक स्वाभिमानी , सुखी, बलवान, योगी एवं सदाचारी होता है।
पूर्ण दृष्टिः एकादश सूर्य की सप्तम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को संतान सुख में न्यूनता प्राप्त होती है। जातक की संतान अल्पायु, मूर्ख एवं झगड़ालू होती है परंतु जातक कुशाग्र होता है।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक मेधावी, उच्चपद प्राप्त करने वाला, महत्वकांक्षी एवं धनी होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को संतान सुख में न्यूनता होती है। पुत्रों की अल्पायु होती है। आय में बाधाएँ आती है।
भाव विशेषः जातक प्रायः अपने व्यवसाय में सफल होता है क्योंकि एकादश भाव में सूर्य कारक होता हैं। सूर्य के शुभ प्रभाव से जातक अत्यंत धनी होता है। जातक की आय के स्रोत उत्तम होते हैं। जिस तरह सूर्यास्त के समय सूर्य निस्तेज हो जाता है उसी प्रकार एकादश भाव में स्थित सूर्य वाला जातक भी वृद्धावस्था में तेजहीन हो जाता है। जातक बीमारियों से पीड़ित एवं शासन द्वारा उपेक्षित होता है। जातक अपनी विध्या एवम् बुद्धि का उपयोग करता है। अल्पायु से ही जातक धनार्जन करता है। जातक सुखी होता है।
द्वादश भाव में सूर्य का प्रभाव
स्वभावः जातक स्वभाव से झगड़ालू अपव्ययी एवं आलसी होता है। वह मित्रहीन एवम् बुद्धिहीन होता है। जातक गुप्त एवं परामानसिक विज्ञान में रूचि रखता है।
पूर्ण दृष्टिः द्वादश भाव में स्थित सूर्य की दृष्टि छठवेम स्थान पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के शत्रुओं का विनाश होता है परंतु जातक के मित्रों से भी मधुर संबंध नही होते।
मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में द्वादश भाव सूर्य जातक को धैर्य एवं सहन शक्ति प्रदान करता है। जातक को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जातक स्वतंत्र विचार वाला और धन कमाने के प्रति आकर्षित होता है। शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक घमंडी, भाग्यहीन, सत्ता पर स्थित लोगों से कष्ट प्राप्त करने वाला, प्रियजनों की मृत्यु से और शत्रुओं  से दुखी होता है।
भाव विशेषः द्वादश भाव में स्थित सूर्य का प्रभाव जन्म पत्रिका में प्रायः शुभकारी नही होता है जातक अपने हाथों से अपनी हानि करता है। जातक को बायें नेत्र तथा मस्तक में रोग होता है। जातक आलसी एवं उदासीनता होता है। जातक निश्चित, लापरवाह, साहसी एवं लंबी यात्राएँ करने वाला होता है।
यह एक सामान्य योग है संपूर्ण सटीक फलादेश  कुंडली के गहन विश्लेषण के पश्चात ही किया जा सकता है🙏🙏🙏
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