पंचदेव अराधना

पंचदेव अराधना ।

पंचदेव वे पाँच प्रधान देवता हैं, जिनकी उपासना और पूजा आदि हिन्दू धर्म में प्रचलित है और जिन्हें अनिवार्य माना गया है.

इन देवताओं में यद्यपि तीन देवता वैदिक हैं, लेकिन फिर भी सभी का ध्यान और पूजा पौराणिक और तांत्रिक पद्घति के अनुसार ही की जाती है.

इन पाँच देवताओं में जिनकी गिनती की जाती है, उनके नाम इस प्रकार हैं-

1. आदित्य 2. रुद्र 3. विष्णु 4. गणेश 5. देवी

इन देवताओं में प्रत्येक के अनेक विग्रह हैं. इनके विग्रहों के अनुसार इनकी अनेक नाम से उपासना होती है.

कुछ लोग पाँचों देवताओं की उपासना समान भाव से करते हैं और कुछ लोग किसी विशेष संप्रदाय के अंतर्गत होकर किसी विशेष देवता की उपासना करना पसन्द करते हैं.

भगवान विष्णु के उपासक 'वैष्णव', शिव के उपासक 'शैव', सूर्य के उपासक 'सौर' और गणपति के उपासक 'गाणपत्य' कहलाते हैं.

शास्त्रोमें पंचदेवों की उपासना करने का विधान हैं.

आदित्यं गणनाथं च देवीं रूद्रं च केशवम्।
पंचदैवतमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत्।। (शब्दकल्पद्रुम)

भावार्थ :– पंचदेवों कि उपासना का ब्रह्मांड के पंचभूतों के साथ संबंध है। पंचभूत पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश से बनते हैं। और पंचभूत के आधिपत्य के कारण से आदित्य, गणनाथ(गणेश), देवी, रूद्र और केशव ये पंचदेव भी पूजनीय हैं। हर एक तत्त्व का हर एक देवता स्वामी हैं :-

आकाशस्याधिपो विष्णुरग्नेश्चैव महेश्वरी।
वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः।।

भावार्थ :- क्रम इस प्रकार हैं महाभूत अधिपति

1. क्षिति (पृथ्वी) शिव
2. अप् (जल) गणेश
3. तेज (अग्नि) शक्ति (महेश्वरी)
4. मरूत् (वायु) सूर्य (अग्नि)
5. व्योम (आकाश) विष्णु

1. भगवान् श्री शिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा का विधान हैं।

2. भगवान् विष्णु के आकाश तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं।

3. भगवती देवी के अग्नि तत्त्व का अधिपति होने के कारण उनका अग्निकुण्ड में हवनादि के द्वारा पूजा करने का विधान हैं।

4. श्रीगणेश के जल तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि ब्रहमांड में सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले जीव तत्व् ‘जल’ का अधिपति होने के कारण गणेशजी ही प्रथम पूज्य के अधिकारी होते हैं।

पंचोपचार पूजन क्रम / विधि :-

1. गणपति ध्यान :-

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम्‌ ।

दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्‌ ॥

ॐ गं गणपतये गंधम समर्पयामि
ॐ गं गणपतये पुष्पं समर्पयामि
ॐ गं गणपतये धूपं समर्पयामि
ॐ गं गणपतये दीपं समर्पयामि
ॐ गं गणपतये नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ गं गणपतये ताम्बूलं समर्पयामि

2. विष्णु का ध्यान :-

उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शंख गदां पंकजं
चक्रं बिभ्रतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्श्वद्वयम्‌।

कोटीरांगदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभै-
र्दीप्तं श्विधरं स्ववक्षसि लसच्छीवत्सचिह्रं भजे॥

ॐ श्री विष्णवे गंधम समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे पुष्पं समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे धूपं समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे दीपं समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे ताम्बूलं समर्पयामि

3. शिव का ध्यान :-

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्‌ ।

पद्मासीनं समन्तात्‌ स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभय हरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्‌ ।

ॐ नमः शिवाय गंधम समर्पयामि
ॐ नमः शिवाय पुष्पं समर्पयामि
ॐ नमः शिवाय धूपं समर्पयामि
ॐ नमः शिवाय दीपं समर्पयामि
ॐ नमः शिवाय नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ नमः शिवाय ताम्बूलं समर्पयामि

4. सूर्य का ध्यान :-

रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

पद्मद्वयाभयवरान्‌ दधतं कराब्जै-
र्माणिक्यमौलिमरुणांगरुचिं त्रिनेत्रम्‌॥

ॐ श्री सूर्याय गंधम समर्पयामि
ॐ श्री सूर्याय पुष्पं समर्पयामि
ॐ श्री सूर्याय धूपं समर्पयामि
ॐ श्री सूर्याय दीपं समर्पयामि
ॐ श्री सूर्याय नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ श्री सूर्याय ताम्बूलं समर्पयामि

5. दुर्गा का ध्यान :-

सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शंख चक्रधनुः शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।

आमुक्तांगदहारकंकणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला॥

ॐ दुं दुर्गायै गंधम समर्पयामि
ॐ दुं दुर्गायै पुष्पं समर्पयामि
ॐ दुं दुर्गायै धूपं समर्पयामि
ॐ दुं दुर्गायै दीपं समर्पयामि
ॐ दुं दुर्गायै नैवेद्यं समर्पयामि
ॐ दुं दुर्गायै ताम्बूलं समर्पयामि

इस प्रकार पूजन प्रक्रिया पूरी करने के पश्चात दक्षिणा – प्रदक्षिणा एवं पंचदेव आरती संपन्न करें और पंचदेवों से अपने तथा परिवार के कल्याण की कामना करें...

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