राहूकालसर्पदोष*

*राहूकालसर्पदोष*

जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के बीच अवस्थित रहते हैं तो उससे ज्योतिष विद्या मर्मज्ञ व्यक्ति यह फलादेश आसानी से निकाल लेते हैं कि संबंधित जातक पर आने वाली उक्त प्रकार की परेशानियाँ राहूकालसर्प योग की वजह से हो रही हैं। परंतु याद रहे, कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव नहीं पड़ता। किस भाव में कौन सी राशि अवस्थित है और उसमें कौन-कौन ग्रह कहाँ बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है - इन सब बातों का भी संबंधित जातक पर भरपूर असर पड़ता है। इसलिए मात्र कालसर्प योग सुनकर भयभीत हो जाने की जरूरत नहीं बल्कि उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उसके प्रभावों की विस्तृत जानकारी हासिल कर लेना ही बुद्धिमत्ता कही जायेगी। जब असली कारण ज्योतिषीय विश्लेषण से स्पष्ट हो जाये तो तत्काल उसका उपाय करना चाहिए। नीचे कुछ ज्योतिषीय स्थितियां दी गय़ीं हैं जिनमें कालसर्प योग बड़ी तीव्रता से संबंधित जातक को परेशान किया करता है।

*राहूकालसर्पदोषके प्रकार*

राहूकाल सर्प दोष के 12 मुख्य प्रकार बताएं हैं:- 1. अनंत, 2. कुलिक, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखनाद, 10. घातक, 11. विषाक्त और 12. शेषनाग।...अब ज्योतिषियों अनुसार कुंडली में 12 तरह के कालसर्प दोष होने के साथ ही राहू की दशा, अंतरदशा में अस्त-नीच या शत्रु राशि में बैठे ग्रह मारकेश या वे ग्रह जो वक्री हों, उनके चलते भी जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है।

*राहूकाल सर्प दोष के लक्षण* : आधुनिक ज्योतिष काल सर्प के लक्षण भी बताते हैं जैसे कि बाल्यकाल घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि, विद्या में रुकावट, विवाह में विलंब, वैवाहिक जीवन में तनाव, तलाक, धोखा खाना, लंबी बीमारी, आए दिन घटना-दुर्घटनाएं, रोजगार में दिक्कत, गृहकलह, मांगलिक कार्यों में बाधा, दिमाग में चिड़चिड़ापन आदि

*इसके ज्योतिष उपाय* : उपरोक्त लक्षण बताने के बाद आधुनिक ज्योतिषियों द्वारा इसके उपाय भी बताए जाते हैं। जैसे कि सबसे उत्तम उपाय है त्र्यम्बकेश्वर में जाकर शांतिकर्म करवाना। इसके अलावा राहू तथा केतु के मंत्रों का जाप करें या करवाएं।
    इसके अलावा शिवजी की उपासना से भी राहू कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है |

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