दान का रहस्य" हिंदी कहानी

.                          "दान का रहस्य"
                              

गतांक से आगे:-
          नियत समय पर महाजन सेठ के पास आया और बोला - ‘आप मेरे पुण्यों में से कौन-सा पुण्य खरीदोगे ?’ सेठ ने कहा - ‘आपने जो आज यज्ञ किया है, हम उसी यज्ञ के पुण्य को लेना चाहते हैं।’ महाजन बोला - ‘मैंने तो आज कोई यज्ञ नहीं किया। मेरे पास पैसा तो था ही नहीं, मैं यज्ञ कहाँ से कैसे करता।’ इस पर सेठ ने कहा - ‘आपने जो आज तालाब पर बैठकर भूखी कुतिया को चार रोटियाँ दी हैं, मैं उसी पुण्य को लेना चाहता हूँ।’ महाजन ने पूछा - ‘उस समय तो वहाँ कोई नहीं था, आपको इस बात का कैसे पता लगा ? सेठ ने कहा - मेरी स्त्री पतिव्रता है, उसी ने ये सब बातें मुझे बतायी हैं।’ तब महाजन ने कहा - ‘बहुत अच्छा’ ले लीजिये; परन्तु मूल्य क्या देंगे ? सेठ ने कहा - ‘आपकी रोटियाँ जितने वजन की थीं, उतने ही हीरे-मोती तौलकर मैं दे दूँगा।’ महाजन ने स्वीकार किया और उसकी सम्मति के अनुसार सेठ ने अन्दाज से उतने ही वजन की चार रोटियाँ बनाकर तराजू के एक पलड़े पर रखीं और दूसरे पलड़े पर हीरे-मोती आदि रख दिये; किन्तु बहुत-से रत्नों के रखने पर भी वह (रोटीवाला) पलड़ा नहीं उठा। इस पर सेठजी ने कहा - ‘और रत्नों की थैली लाओ।’ जब उस महाजन ने अपने इस पुण्य का इस प्रकार का प्रभाव देखा तो उसने कहा की ‘सेठजी ! मैं अभी इस पुण्य को नहीं बेचूँगा।’ सेठ बोला - ‘जैसी आपकी इच्छा।’
          तदन्तर वह महाजन वहाँ से चल दिया और उसी तालाब के किनारे से, जहाँ बैठकर उसने कुतिया को रोटियाँ खिलायी थी, थोड़े-से चमकदार कंकड़-पत्थरों तथा काँच के टुकड़ों को कपडे में बाँधकर अपने घर चला आया। घर आकर उसने वह पोटली अपनी स्त्री को दे दी और कहा - ‘इसको भोजन करने के बाद खोलेंगे।’ ऐसा कहकर वह बाहर चला गया। स्त्री के मन में उसे देखने की इच्छा हुई। उसने पोटली को खोला तो उसमे हीरे-पन्ने-माणिक आदि रत्न जगमगा रहे थे। वह बड़ी प्रसन्न हुई। थोड़ी देर बाद जब वह महाजन घर आया तो स्त्री ने पूछा - ‘इतने हीरे-पन्ने कहाँ से ले आये ?’ महाजन बोला - ‘क्यों मजाक करती हो ?’  स्त्री ने कहा - ‘मजाक नहीं करती, मैंने स्वयं खोलकर देखा है, उसमे तो ढेर-के-ढेर बेशकीमती हीरे-पन्ने भरे हैं।’ महाजन बोला - ‘लाकर दिखाओ।’ उसने पोटली लाकर खोलकर सामने रख दी। वह उन्हें देखकर चकित हो गया। उसने इसको अपने उस पुण्य का प्रभाव समझा। फिर उसने अपनी यात्रा का सारा वृतान्त अपनी पत्नी को कह सुनाया।
          कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसे अभावग्रस्त आतुर प्राणी को दिये गये दान का अनन्त गुना फल हो जाता है, भगवान् की दया के प्रभाव से कंकड़-पत्थर भी हीरे-पन्ने बन जाते हैं।
          इस प्रकार दीन-दु:खी, आतुर और अनाथ को दिया गया दान उतम है। किसी के संकट के समय दिया हुआ दान बहुत ही लाभकारी होता है। भूकम्प, बाढ़ या अकाल आदि के समय आपद्ग्रस्त प्राणी को एक मुट्ठी चना देना भी बहुत उतम होता है। जो विधिपूर्वक सोना, गहना, तुला दान आदि दिया जाता है, उससे इतना लाभ नहीं, जितना आपतिकाल में दिये गये थोड़े-से दिये गये दान का होता है। अत: हरेक मनुष्य को आपतिग्रस्त, अनाथ, लूले, लंगड़े, दु:खी, विधवा आदि की सेवा करनी चाहिये।
क्रमशः
                  
       

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