गुरु चांडाल योग

||#गुरु_चांडाल_योग_कब_शुभ_कब_अशुभ?||                                              गुरु चांडाल योग वेसे तो एक अशुभ योग है लेकिन इसके अशुभ परिणाम ही होंगे या शुभ भी यह निर्भर करता है गुरु चांडाल योग में गुरु राहु केतु की स्थिति क्या है आदि।।                                                                                              कई जातक अपनी कुंडली में गुरु चांडाल योग को देखकर उसके बारे में अशुभ फलो की गणना कर लेते है जो कि हर स्थिति में ठीक नही होता।गुरु की युति राहु या केतु से होने पर ही गुरु चांडाल योग बनता है।अब गुरु चांडाल योग शुभ फल कब देगा इसके बारे में पहले बात करते है।जन्मकुंडली में गुरु जिन भी भावो का स्वामी होकर जहा भी बैठा है तो पहले गुरु की स्थिति है या अशुभ इस को देखना जरूरी होता है फिर राहु/ केतु की युति गुरु के साथ कैसी है यह सब देखा जाता है इसने यह स्थिति जरूरी होती है कि गुरु जिन भी भावो का स्वामी होता है उन भावो पर राहु या केतु की दृष्टि न हो या राहु/केतु की युति गुरु के साथ धनु/ मीन राशि में न हो क्योंकि यह गुरु की ही रशिया(कुंडली में घर होंगे) तब गुरु चांडाल योग ज्यादा अशुभ नही होता और गुरु यदि कारक हो या शुभ फल देने वाला हो तब गुरु चांडाल योग शुभ परिणाम देता है इसके विपरीत यदि गुरु और गुरु का घर दोनों ही राहु केतु की दृष्टि या युति में होंगे तब यह अशुभ फल जातक को देगा क्योंकि ऐसी स्थिति में गुरु और गुरु का घर दोनों राहु केतु के प्रभाव में होते है जो की अशुभ परिणाम देने वाली स्थिति है।                                                                          #उदाहरण_अनुसार:- मीन लग्न की कुंडली में गुरु लग्नेश और दशमेश होता है अब यदि गुरु नवे भाव में बैठा हो और राहु या केतु भी नवे घर में गुरु के साथ हो तब यह ज्यादा अशुभ योग नही होगा दशम भाव संबंधी और नवे भाव सम्बंधित फलो के लिए क्योंकि दसवे भाव पर जो की गुरु का ही घर है राहु केतु का प्रभाव नही है तो यह स्थिति नोकरी/व्यवसाय के लिए लाभकारी रहेगी लेकिन यदि गुरु चोथे भाव में हो और राहु केतु दसवे और चोथे भाव में ही हो मतलब राहु दशम भाव में हो जो कि गुरु का ही घर है और केतु चोथे भाव में गुरु के ही साथ हो तब इस स्थिति में बनने वाले गुरु चांडाल योग के बहुत अशुभ परिणाम मिलेंगे जातक को नोकरी, व्यवसाय, कैरियर में दिक्कते, संघर्ष रहेगा क्योंकि यहाँ दशम और दशम भाव का स्वामी गुरु दोनों ही राहु केतु की पकड़ में आ गए।तब ऐसी स्थिति में गुरु चांडाल योग बहुत अशुभ होता है।कहने का मतलब है जब भाव और भावेश दोनों ही राहु केतु से पीड़ित हो चाहे वह गुरु चांडाल योग हो, सूर्य ग्रहण योग हो, चंद्र ग्रहण योग हो या अन्य कोई भी तब बहुत अशुभ फल मिलते है क्योंकि कारण यह होता है कि भाव का स्वामी और भाव दोनों ही राहु केतु से पीड़ित हो जाते है जिस कारण शुभ फल देने में वह सक्षम नही हो पाते और दूसरी स्थिति में केवल राहु केतु की युति गुरु से हो और गुरु का भाव पीड़ित न हो तब गुरु कुंडली के लिए शुभ फल देने वाला हो तब राहु केतु और गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग सामान्य शुभ फल ही देगा मतलब कि अशुभ फल नही देगा।

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