पितृदोष
पितृदोष का जीवन पर प्रभाव और संकेत *********************************** बार-बार मिलने वाली पीड़ा व्यक्ति को पितृदोष या पितृश्राप के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है।अधिकांश जातक पितृदोष या पितृश्राप के कारण अनेक प्रकार की समस्याओ से घिरे रहते है, जीवन में सुख कम होकर कष्टो में वृद्धि होती रहती है।जो जातक पितृदोष से पीड़ित रहता है वह यदि स्वयं का व्यवसाय करे तो उसमे निरन्तर हानि होती रहती है या कोई उन्नति उसमे नही मिलती।जातक नोकरी करता है तो अनेक आरोप लगते रहते है।घर में यदि विवाह योग्य बेटा या बेटी है तो उनके समय पर विवाह नही होते है।जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते बाधित रहते है।जातक यह नही सोच पाता कि वह क्या करे और क्या नही करे?जो व्यक्ति परेशानियो को भोग रहे है उन्हें संयम से काम करना चाहिए।किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुचाएं, धर्म-कर्म और दान की तरफ विशेष ध्यान दे।इसके साथ-साथ ज्योतिष का सहारा भी लेना उचित रहता है।इसके लिए किसी विद्वान् ज्योतिषी को अपनी जन्मकुंडली दिखाए यदि उसमे पितृदोष है तो उपाय जानकर उनको श्रद्धा के साथ करे।ज्योतिष में पितृदोष या पितृश्राप के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है।अनेक ग्रंथो में पितृदोष के बारे में कहा गया है कि यदि किसी जातक की कम से कम चार पीढ़ी पहले किसी निकट के रिश्तेदार की या परिवार की अकालमृत्यु या कम आयु में मृत्यु होती हैं या मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का विधि-विधान से अंतिम संस्कार न हों तो उस जातक के परिवार में जब तक पितृदोष की शांति न हो तब तक पीढ़ी दर पीढ़ी इस योग का निर्माण होता रहता है। पितृदोष का जीवन पर प्रभाव और संकेत *********************************** जिन जातको की जन्मकुंडली में पितृदोष या पितृश्राप का निर्माण होता है तो उनके जीवन में यह अपना प्रभाव अलग-अलग रूपो में डालता है:- * जिन जातको की जन्मकुंडली में पितृदोष का प्रभाव लग्न पर होता है तो उस जातक को मानसिक कष्ट के साथ शारीरिक कष्ट और जीवनसाथी की ओर से कष्ट उठाना पड़ता है क्योंकि लग्न जातक का शरीर और आत्मा है तथा लग्न के सामने का सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है।लग्न पर इस दोष या श्राप का प्रभाव आने पर सप्तम भाव पर भी प्रभाव आता ही है। * यदि जन्मकुंडली के द्वितीय भाव पर पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव होता है तो ऐसे जातक को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ती है।जातक धन संचित कर ही नही पाता या जातक के धन का लाभ अन्य लोग उठाते है। * यदि जातक की जन्मकुंडली में पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव तृतीय भाव पर होता है तो ऐसा जातक कायर प्रकृति का होता है।उसमे किसी कार्य को करने का साहस नही होता।जातक को छोटे भाई-बहनो की ओर से भी कष्ट होता है या जातक के कारण उसके छोटे भाई-बहनो को कष्ट का सामना करना पड़ता है। * पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव जातक की जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव को पीड़ित करता हैं तो ऐसे जातक को सुख की कामना करना व्यर्थ है।जातक को भूमि-मकान आदि की तरह से भी हानि होती रहती है। * यदि पितृदोष(पितृश्राप) जातक की जन्मकुंडली के पंचम भाव से सम्बन्ध रखता है तो शिक्षा में बाधाये आती है या वह जातक उच्च शिक्षा योग होते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त नही कर पाता।बृहस्पति की स्थिति ख़राब हो तो संतान प्राप्त में भी दिक्कते आती है।संतान प्राप्त होने के बाद किसी न किसी कारण वश संतान की ओर से परेशानियो का सामना करना पड़ता है जैसे-संतान का बीमार रहना, योग्य संतान न होना आदि। * पितृदोष(पितृश्राप) का सम्बन्ध जन्मकुंडली के छठे भाव से हो तो कर्जा लेने की स्थिति बार-बार बनती है तथा वेबजह अन्य लोगो से शत्रुर्ता हो जाती है जिसके कारण स्वयं जातक की हानि होती है। * पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव सप्तम भाव में हो तो जातक को जीवनसाथी की ओर से परेशानिया मिलती है।इससे दाम्पत्य सुख भी बाधित होता है।इस दोष से पति-पत्नी के बीच क्लेश होना सामान्य बात होती है। * यदि पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव अष्टम भाव में हो टी जातक को आर्थिक हानि होने के साथ ही जातक की आयु पर भी प्रभाव आता है, आयु कम होती है। * यदि पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव नवम भाव में हो जातक को भाग्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जातक भाग्य उसका साथ नही देता।जातक द्वारा जीवन में किये जाने वाले कार्यो में सदैव रुकाबटे आती है।कोई भी कार्य आसानी से पूर्ण नही होता है, भाग्योन्नति में भी अनेक प्रकार की समस्याये आती है। * इस दोष या श्राप का प्रभाव जातक की कुंडली में दशम भाव में हो तो उस जातक के कर्म प्रभावित होते है जातक कोई भी कार्य करता है तो उस कार्य में समस्याएं आती है।यदि जातक व्यवसाय करता है तो व्यवसाय में हानि होती रहती है और यदि नोकरी करता है तो नोकरी में अपमान और अपयश का सामना करना पड़ता है।दशम भाव पिता का भाव भी होता है जिस कारण जातक के पिता का स्वास्थ्य ख़राब रहने के साथ उनको अनेक प्रकार की समस्याएं उठानी पड़ सकती है।पिता के साथ वैचारिक मतभेद भी हो सकते है। * पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव यदि एकादश भाव पर आता है तो जातक की आय प्रभावित होती है।जातक को मेहनत के मुताविक लाभ प्राप्त नही होता। * पितृदोष(पितृश्राप) का प्रभाव द्वादश भाव पर हो तो जातक जितना कमाता है वह धन बेकार के कार्यो में खर्च होता रहता है आय से अधिक खर्चा होता है जिसके कारण जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। *********************************************** नोट- कुंडली के जिस भाव में जिन ग्रहो के कारण पितृदोष(पितृश्राप) घटित हो रहा है उन ग्रहो से सम्बंधित मन्त्र जप, उनसे सम्बंधित वस्तुओ का दान, ग्रहो से सम्बंधित देवी-देवताओ की पूजा आराधना करे।इसके अतिरिक्त गायत्री मन्त्र का जप प्रतिदिन करे, पीपल की सेवा करे, रुद्राभिषेक कर सकते है,अमावस्या तिथि पर ब्राह्मण को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद ले।
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