क्यों है शनि देव की दृष्टि में दोष  ।                                                           भगवान शनि देव शुरू से ही भगवान शिव के परम भक्त रहे हैं।वे उनकी पूजा पाठ तपस्या में अपने जीवन को व्यस्त रखते थे। युवा अवस्था में शनि का विवाह चित्ररथ की पुत्री से कर दिया गया। वह स्त्री अत्यंत सुंदर और तेजस्वनी थी एक बार वो ऋतुस्नाता हुई तब उसकी अपने पति से संबंध बनाने की इच्छा हुई। अत्यंत सौन्दर्यवान होने के बाद भी उसने 16 श्रृंगार किए और अपने पति से मिलने उनके कक्ष में आ गई। वो रूप स्वर्ग की अप्सराओं जैसा था जो किसी को भी मोहित कर सकता था।                                                                            कक्ष में जाकर उसने देखा तो पाया की उसका पति शनि अभी रात्रि में भी भगवान शिव के ध्यान में मग्न है। उस कन्या ने अपने पति का ध्यान खींचने के लिए हर कोशिश की पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी। ऋतुस्नाता की अवधि में इस तरह अपना और अपने यौवन का अपमान वह सहन नहीं कर सकी। अब उसका क्रोध अपने चरम पर था। उसने अपने पति को नाराज होकर श्राप दे दिया की तुम्हारे कारण मेरा ऋतुकाल नष्ट हो गया और तुमने अपनी पत्नी पर उस समय ध्यान तक नहीं दिया जब उसे सिर्फ तुम्हारी ही जरूरत थी। अतः अब तू जिस चीज पर भी नजर डालेगा वो नष्ट हो जायेगी। इसी श्राप के कारण मनुष्यों के साथ देवी देवताओं को भी शनि की दृष्टि से डर लगता है।       

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