शनि वक्री

||#जन्मकुंडली_में_वर्गोत्तम_और_वक्री_शनि||                      जन्मकुंडली में शनि वक्री और वर्गोत्तम होने पर किस तरह से प्रभावित करता है/ फल देता है इस विषय पर बात करते है।पहले बात करते है वर्गोत्तम शनि की, जब जिस भी जातक की जन्मकुंडली में शनि वर्गोत्तम होता है तो यह एक परम शुभ स्थिति होती है वर्गोत्तम होने पर शनि यदि कुंडली मे अशुभ भी है तब अशुभ फल नही देगा और यदि शुभ होकर वर्गोत्तम हुआ है, वर्गोत्तम होकर कोई राजयोग बना रहा है या अकेला भी शुभ होकर वर्गोत्तम होकर कुंडली मे बैठा है तब जो सुख राजा भोगता है उस तरह शनि के शुभ फल फल होंगे, शनि का अपनी बलवान जैसे मित्र राशि, स्वराशि, उच्च राशि मे वर्गोत्तम होना बेहद शुभ होता है नीच राशिगत वर्गोत्तम होने पर यह बलवान होगा।।                                                                             अब शनि वर्गोत्तम होता कैसे है?... जब लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली दोनो कुंडलियो में यह एक ही राशि मे हो तब वर्गोत्तम होगा जैसे लग्न कुंडली मे भी वृष राशि का हो और नबमेंश कुंडली मे भी वृष राशि का होकर बेठा हो।।                                                                                                          #वक्री_शनि जिन जातकों की कुंडली मे शनि वक्री होता है तब ऐसे जातको के जीवन मे यह संघर्ष कराता है, अपने शुभ फलों में कमी कर देता है क्योंकि वक्री होने पर यह कठोर बन जाता है जिस कारण इसके फलो में भी कठोरता आ जाती है।हालांकि शुभ ग्रहों की दृष्टि में या शुभ राशियों में वक्री होने पर इसके संघर्ष कारी फलों में कमी आती है।जैसे दसवे भाव का स्वामी होकर वक्री होगा तब आजीविका और कैरियर में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कराता रहेगा।।                                                                                                                #वर्गोत्तम_शनि_उदाहरण_अनुसार:-  वृष लग्न कुंडली मे शनि नवमेश-दशमेश योगकारक होकर  माना शनि 11वे भाव मे मीन राशि का #वर्गोत्तम होकर बेठा है तब काफी शुभ और लाभकारी फल देगा क्योंकि एक तो कुंडली के लिए योगकारक है, फिर वर्गोत्तम होकर परम् शुभ साथ ही 11वे भाव जैसे लाभकारी,वृद्धिकारक भाव मे बैठने से बहुत ज्यादा जीवन को अपने फलों से चमकाएगा।।                                                                  #वक्री_शनि_उदाहरण_अनुसार:- इसी तरह वृष लग्न में शनि वक्री होकर 11वे भाव मे मीन राशि का बैठेगा तब भाग्योदय और कार्य छेत्र में संघर्ष कराता रहेगा क्योंकि वक्री होने पर यह कठोर हो चुका होता है और जब शनि वर्गोत्तम+वक्री दोनो एक साथ हो तब संघर्ष के साथ शुभ फल देगा।इस तरह वर्गोत्तम और वक्री शनि जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है विशेष रूप से अपनी महादशा/ अंतरदशा के समय मे बहुत ज्यादा प्रभाव दिखाता है।

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