#वर्गोत्तम_ग्रह_की_महादशा
||#वर्गोत्तम_ग्रह_की_महादशा|| किसी भी ग्रह की महादशा का फल कुंडली में उस ग्रह की स्थिति भाव स्वामित्व भाव स्थित स्थिति अन्य ग्रहो से सम्बन्ध आदि पर निर्भर करता है जिस तरह की ग्रह की स्थिति होगी उसी तरह का फल ग्रह अपनी महादशा में देता है।ग्रहो में वर्गोत्तम ग्रह के बारे में अधिकतर जातक तो जानते ही है कि जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में होता है तो ऐसा ग्रह वर्गोत्तम ग्रह होता है।वर्गोत्तम ग्रह लग्नानुसार किसी भी भाव का स्वामी होकर अपने अनुकूल भाव स्वामित्व के अनुसार किसी अनुकूल भाव में वर्गोत्तम होकर बैठा हो तो बहुत ही शुभ फल देता है।वर्गोत्तम ग्रह अपनी जितनी बली राशि जैसे उच्च राशि, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि, मित्रराशि आदि अपनी किसी भी बली राशि में बैठा होगा वह बहुत अच्छे फल देता है वर्गोत्तम ग्रह यदि अशुभ भाव का स्वामी हो तो अशुभ भाव में ही बैठा हो तब अच्छा फल करता है।अशुभ भाव का स्वमज होकर शुभ भाव में बैठने पर अच्छे फल में कमी भी कर सकता है।अनुकूल वर्गोत्तम ग्रह की महादशा जातक के लिए सुख, सौभाग्य, उन्नति, सफलता दिलाने वाली होती है।वर्गोत्तम ग्रह जिन भावो का स्वामी होता है जिन विषयो का कारक होता है उनसे सम्बंधित पूर्ण फल देता है।वर्गोत्तम ग्रह की स्थिति में यह बात ध्यान रखनी चाहिए यदि अष्टमेश वर्गोत्तम होकर केंद्र में बैठा हो तो इसकी दशा ज्यादा अच्छी नही होगी यदि नवमांश कुंडली में अनुकूल भाव का स्वामी होकर अनुकूल भाव में हुआ तब ऐसा वर्गोत्तम ग्रह अच्छा फल देने में सक्षम होगा।वर्गोत्तम ग्रह की दशा में यह स्थिति विशेष महत्वपूर्ण होती है कि वर्गोत्तम ग्रह लग्न कुण्डली में किस भाव का स्वामी होकर किस भाव में बैठा है और नवमांश कुंडली में किस भाव का स्वामी होकर किस भाव में बैठा है।यदि वर्गोत्तम ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली दोनों कुंडलियो में लग्न अनुसार यदि योगकारक या शुभ भाव का स्वामी होकर किसी शुभ भाव में बैठा होगा तो ऐसे वर्गोतम ग्रह की महादशा जातक के लिए बहुत ही शुभ फल देने वाली होगी।जैसे लग्न कुंडली मेष लग्न की हो और 5वे भाव त्रिकोण का स्वामी सूर्य वर्गोत्तम होकर त्रिकोण भाव 9वे भाव में हो और नवमांश कुंडली धनु लग्न की हो इसमें सूर्य त्रिकोण 9वे भाव का स्वामी होता है अब सूर्य नवमांश कुंडली में 9वे भाव त्रिकोण का स्वामी होकर 5वे भाव त्रिकोण में हो तो तो लग्न और नवमांश दोनों ही कुंडलियो में वर्गोत्तम सूर्य त्रिकोण का स्वामी होकर त्रिकोण में ही है जिस कारण सूर्य की महादशा में और सूर्य से सम्बंधित फल जातक को बहुत शानदार और बेहद शुभ मिलेगे क्योंकि दोनों ही कुंडलियो में सूर्य शुभ भाव का स्वामी होकर शुभ भाव में है।जन्मलग्न और नवमांश लग्न अनुसार वर्गोत्तम ग्रह अपने अनुकूल भाव में होना वर्गोत्तमी ग्रह की शुभता में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि हो जाती है। वर्गोत्तम ग्रह की दशा में जातक राजा की तरह सुख भोगने वाला, सूरज की तरह चमकने वाला,उन्नति और कामयाबी को हासिल करेगा अन्य ग्रहो की स्थिति भी अनुकूल हुई तब सोने पर सुहागा जैसा फल वर्गोत्तम ग्रह की दशा में होगा।वर्गोत्तम ग्रह मेष, वृश्चिक, सिंह, मकर, कुम्भ राशि में थोड़ी मेहनत करा कर अच्छा फल देता है क्योंकि यह रशिया क्रूर और पाप ग्रहो मंगल सूर्य शनि की राशिया है जिस कारण कुछ मेहनत से शुभ फल देता है।वृष तुला, कर्क, मिथुन कन्या, धनु, मीन राशियों में वर्गोत्तम ग्रह बहुत जल्द शुभ फल गहराई से देता है।वर्गोत्तम ग्रह 0 से 4 या 27से 30 इतने प्रारभिक या आखरी अंशो पर नही होना चाहिए वरना ग्रह के पूर्ण फल मिलेंगे में कमज रहती है।वर्गोत्तम ग्रह अस्त भी नही होना चाहिए यदि वर्गोत्तम ग्रह अस्त है तो वर्गोत्तम ग्रह के अच्छे फल निष्फल होंगे।अस्त होने पर वर्गोत्तम ग्रह को बल देने के लिए मन्त्र जप, दान ,हवन आदि से या वर्गोत्तम ग्रह योगकारक हो तो उसका रत्न पहनकर वर्गोत्तम ग्रह को बल देना चाहिए साथ ही अस्त या अंशो में मृत वर्गोत्तम ग्रह का साथ ही जप भी करना चाहिए।जिससे वर्गोत्तम ग्रह के शुभ फल देने की ताकत जाग्रत हो सके।इस तरह वर्गोत्तम ग्रह की महादशा या "अन्तर्दशा यदि महादशा" किसी अनुकूल ग्रह की है तो वर्गोत्तम ग्रह की दशा बहुत श्रेष्ठ फल देती है।
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