लग्नेश भाग्येश सबन्ध
|||लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध||| कुंडली के पहले भाव को लग्न और नवें भाव को भाग्य भाव कहते है।लग्न के स्वामी को लग्नेश तो भाग्य भाव के स्वामी को भाग्येश कहते है।जब कुंडली में लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध बन जाने से जातक धर्म आचरण वाला, धार्मिक, सात्विक और भाग्यशाली माना जाता है।लग्न लग्नेश खुद जातक है तो भाग्य भाव और भाग्येश जातक का भाग्य है।जब खुद लग्न मतलब जातक अपने भाग्य मतलब भाग्य भाव से जुड़ जाता है तब ऐसा जातक भाग्यशाली कहा जा सकता है।लग्न भाव और भाग्यभाव का सम्बन्ध तीन प्रकार से कुंडली में बन सकता है प्रथम लग्नेश और भाग्येश की युति होने से, दूसरा लग्नेश भाग्येश का दृष्टि सम्बन्ध बनने से, तीसरा लग्नेश भाग्य भाव में बैठ जाने से और भाग्येश के लग्न में बैठ जाने से कहने का अभिप्राय है लग्नेश और भाग्येश के आपस में स्थान परिवर्तन कर लेने से लग्नेश और भाग्येश का सम्बन्ध बन जाता है।लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध राजयोग भी बनाता है क्योंकि जब भी कुंडली में केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों का सम्बन्ध बनता है तब राजयोग बनता है राजयोग सुख-समृद्धि, धन, यश और सफलता देने वाला होता है।लग्नेश केंद्र और त्रिकोण दोनों है तो नवा भाव त्रिकोण भाव है।लग्नेश भाग्येश का सम्बन्ध जब केंद्र या तरीकों भावो में ही बनता है तब यह अधिक बली होता है और तेज गति से अपने शुभ फल देता है यदि त्रिक भाव 6, 8, 12 वे भाव में तीसरे भाव में यह योग सामान्य गति से शुभ फल देता है।नीच राशि, परम् शत्रु राशि में भी इस योग की शुभता निष्फल हो जायेगी।लग्नेश भाग्येश के सम्बन्ध में एक अच्छी बात यह होती है कि यह 12 लग्नो में क्रम से मेष से लेकर मीन लग्न तक हर लग्न में लग्नेश और भाग्येश मित्र ग्रह ही होते है जब दो मित्र ग्रह आपस में सम्बन्ध बनाते है तो अच्छा फल देते है।मेष लग्न में मंगल लग्नेश और गुरु नवमेश होता है, वृष लग्न में शुक्र लग्नेश और शनि भाग्येश होता है, मिथुन लग्न में बुध लग्नेश और शनि नवमेश होता है, कर्क लग्न में चंद्र लग्नेश और गुरु भाग्येश होता है, सिंह लग्न में सूर्य लग्नेश और मंगल भाग्येश होता है, कन्या लग्न में बुध लग्नेश और शुक्र भाग्येश होता है, तुला लग्न में शुक्र लग्नेश और बुध भाग्येश होता है, वृश्चिक लग्न में मंगल लग्नेश और चंद्र भाग्येश होता है, मकर लग्न में श
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