कहानी

झेन परंपरा में चित्रकारी की एक बहुत पुरानी कला है। एक झेन सदगुरु के पास एक शिष्य वह चित्रकला सीख रहा था और निश्चित ही इस कला के माध्यम से वह वास्तव में ध्यान ही सीख रहा था। वह शिष्य बांसों के प्रति बहुत आकर्षित था, लगभग पागलपन की हद तक। वह सदैव बांस का ही चित्र बनाकर उसमें रंग भरता रहता था। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन झेन सदगुरु ने उस शिष्य से कहा : ‘जब तक तुम स्वयं एक बांस नहीं हो जाते, तब तक कुछ भी नहीं होगा।’

दस वर्षों तक वह शिष्य बांसों के ही चित्र बनाता रहा। वह इतना अधिक कुशल हो गया था कि वह आंखें बंद करके, अंधेरी रात में भी बांस का अद्भुत चित्र बना सकता था। उसके द्वारा बनाए गए बांस के चित्र आदर्श थे और जीवंत प्रतीत होते थे।

लेकिन उसके सदगुरु उन चित्रों को स्वीकार नहीं करते थे। वे सदैव उससे यही कहते : ‘जब तक तुम एक बांस ही न बन जाओ, तुम कैसे बांस का चित्र बना सकते हो? तुम पृथक बने रहते हो, तुम एक देखने वाले, दर्शक बने रहते हो। ऐसा इसलिए है कि तुमने अभी तक बांस को बाहर से जाना है, लेकिन वह तो केवल उसकी परिधि है, वह बांस की आत्मा नहीं है। जब तक तुम उसके साथ एक नहीं हो जाते, जब तक तुम खुद एक बांस ही नहीं बन जाते, तब तक तुम उसे अंदर से कैसे जान सकते हो’

शिष्य ने दस वर्षों तक संघर्ष किया, लेकिन सदगुरु ने उसके चित्रों को मान्यता नहीं दी। तब वह शिष्य बांस के एक घने जंगल में कहीं लुप्त हो गया। तीन वर्षों तक उसके बारे में कोई भी खबर नहीं मिली परंतु धीरे-धीरे यह समाचार आने शुरू हो गए कि वह एक बांस ही बन गया है। अब वह बांस के चित्र नहीं बनाता अपितु बांस की तरह जीता है, वह बांसों के झुरमुट में उन्हीं की तरह खड़ा रहता है। जब हवा चलती है और बांस डोलते हैं, नाचते हैं, तब वह भी उनके साथ झूमता है।

तब उसके सदगुरु उसे खोजने निकले और उन्होंने देखा कि उनका शिष्य वाकई एक बांस ही बन गया था। सदगुरु ने उससे कहा : ‘अब अपने और बांस के बारे में सब कुछ भूल जाओ।’

शिष्य ने उसी क्षण कहा : ‘लेकिन आपने ही मुझे बांस बन जाने के लिए कहा था और वह मैं बन गया हूं।’

सदगुरु ने कहा : ‘अब इसे भी भूल जाओ, क्योंकि अब केवल यही अवरोध है। कहीं भीतर, गहराई में तुम अभी भी पृथक हो और स्मरण कर रहे हो कि तुम एक बांस बन गए हो, इसलिए तुम अभी भी एक आदर्श बांस नहीं हो, क्योंकि एक बांस तो कुछ भी स्मरण नहीं रख सकता, इसलिए इसे भी भूल जाओ।’

अगले दस वर्षों तक बांसों की बिल्कुल भी चर्चा नहीं की गई। फिर एक दिन सदगुरु ने शिष्य को बुलाकर उससे कहा : ‘अब तुम चित्र बना सकते हो। पहले बांस बनो, फिर बांसों के बारे में भूल जाओ, ऐसा करने पर तुम आदर्श बांस बनोगे और तब तुम्हारा बनाया हुआ चित्र, केवल एक चित्र नहीं होगा बल्कि तुम्हारे अंतर्विकास का द्योतक होगा।

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