राहू और केतू जीवों के संचित पाप कर्मों का ज्ञान करवाते हैं
राहू और केतू जीवों के संचित पाप कर्मों का ज्ञान करवाते हैं
और जब सारी कुण्डली को बांध लेते हैं तो जीव को एहसास करवाते है की जो पाप कर्म पूर्व जन्म में किये हैं
इस जन्म में उनमे सुधार किये जाए और योनिचक्र से मुक्ति प्राप्त हो .....
राहू-केतू के साथ गुरु - अपने ही अध्यापक, गुरु, ब्राह्मण से धोका किया
राहू-केतू के साथ शुक्र - पत्नी, प्रेमिका, ब्याहता स्त्री से धोका किया
राहू-केतू के साथ मंगल - सगे भाई, पक्के दोस्त से धोका किया
राहू-केतू के साथ सूर्य - पिता, राजा का अपमान किया
राहू-केतू के साथ चन्द्रमा - माँ, बुजुर्ग स्त्री को सताया होगा
रह-केतू के साथ बुध - भ्रूण हत्या, बहु को सताया, बेटी को रुलाया, बहन के साथ धोका
राहू-केतू के साथ शनि - मजदूर की मजदूरी रख ली और निर्धन को बेवजह सताया होगा
जो आपके पाप कर्म बताये उसे भयावह कह कर बचने का प्रयास करना जीव का स्वभाव है, जैसे बिल्ली को देख कर कबूतर ऑंखें बन्द लेता है पर ऑंखें बन्द करने से बिल्ली के हमले से नही बच सकता, बचने के लिए तो उड़ान भरनी होगी न की मुसीबत को नकारना होगा
उपाय ढूंढना होगा, राहू और केतू की तटस्थ शक्ति के पीछे शनिदेव का बल है और शनि देव को महादेव
( चन्द्र्मा ) का समर्थन प्राप्त है, जो अंततः शनि रुपी सर्प राहू मुख केतू पूछ को अपने गले में स्थान देते हैं और जीव को मुक्ति प्रदान करते हैं....
पितृ ऋण से मुक्ति तभी होगी जब केतू का इशारा होगा ,
जीवन की पाप-पूण्य की चक्की रुक जाती है और पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है।
कालसर्प की कुण्डली तो असल में ऋण मुक्ति की युक्ति है , भयंकरांत जीव पुत्र-मोह में उलझा, सुविधाओं की लालसा में कबूतर की तरह ऑंखें बन्द कर ले तो
पाप-पूण्य की चक्की कभी नही रूकती, बस यही है राहू
और केतू का कालसर्प दोष, सावन के महीने में भी काल सर्प दोष का निवारण करवाया जाता है ।
तुम समझो या न समझो ये समझ तुम्हारी अपनी है !!!!
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