पष्टम भाव

जय श्री बालाजी

षष्टम भाव। 

यह भाव सबसे ज्यादा रहष्य से भरा ही। त्रिक, तरी shad आयाश, उपचय भाव। क्या नाम दिया जाए इस भाव को। कर्म त्रिकोण में भी आये ये भाव। नवम भाव जो कि उच्च शिक्षया, लंबी यात्रा, पिता, स्वप्न, धर्म, उच्च कोटि की बुद्धि के भाव का दसम भाव भी है। काल पुरुष में बुध यानी कन्या । मंगल और शनि कारक इस भाव के। राहु यहाँ सबसे शुभ फल देता है यहाँ क्योंकि की काल पुरुष में कन्या राशि आती है जो कि राहु का अपना घर है। मतलब राहु महाराज यहाँ सबसे उत्तम फल यहां देते है मतलब कुछ न कुछ बात तो होगी ही इस भाव मे। कॉम्पिटिशन या प्रतियोगिता भी यही से निर्धारित होती है। लग्न का रोग, परिवार की विद्या या वाणी की विद्या या कर्म की विद्या की विद्या, पराक्रम का सुख, सुख का पराक्रम, विद्या का धन, जीवन साथ का नाश, मृत्यु से लाभ, धर्म का कर्म, कर्म का भाग्य, लाभ की मृत्यु, नाश का शत्रु। क्या इन सब के कारन यह भाव उच्च कोटि का है। इतनी सारी विशेषताओ के कारण। मंगल, शनि, राहु तीनो पाप ग्रह यहाँ प्रभाव दिखाते है।

षष्टम भाव परिवार की योजनाओं का भाव है। परिवार की बुद्धि का भाव है। परिवार के लोग कितने बुद्धिमान होंगे वो यही से पता चलेगा। मंदिर जाने की सोचे कि न सोचें वो भी यही भाव बताएगा।  खाने के बारे में क्या क्या ख्याल आते है वो भी यही भाव बताएगा। 

पराक्रम का कितना सुख मेगा यही भाव बताएगा। छोटे भाई बहनों का सुख कितना मिलेगा यही भाव बताएगा। हमारी शारीरिक ग्रोथ का सुख भी तो यही भाव बतावेगा।

माता का पराक्रम। माता कितनी पराक्रमी होगी। जनता की वृद्धि। मतलब राजनेता ओर अभिनेता के लिए भी यह भाव बाहत ही महरत्वपूर्ण है। गाड़ी, जमीन , सुवह हमे कितना अधिक मिल सकता है यह भाव ही तो बताएगा। इनका व्रद्धि भलव जो है।

बच्चो का धन कितना होगा। हमारी बुद्धि में कितने चांद रहेंगे। पूर्वजो से क्या धन मिला है। ग्लैमर का धन। मंत्रिपद से कितना धन मिलेगा। 

सांमने वाला हमे आसानी से पैसा देगा कि नही यही तो भलव बताएगा। कस्टमर आराम से देगा कि नही पैसा। उधार दिया पैसा आसानी से आएगा कि नही। बैंक से लोन आसानी से मिलेगा की नही यही भाव तो बताएगा।

मृत्यु से कितना लाभ मिलेगा। lic, म्यूच्यूअल फण्ड। गड़े हुए धन से कितना लाभ मिलेगा यही भाव तो बताएगा। गुप्त ज्ञान से कितना लाभ मिलेगा। दीर्घ कालीन रोगों से कितना लाभ मिलेगा। पैतृक संपत्ति से कितना लाभ मिलेगा यही भाव तो तय करेगा।

भाग्य का कितना कर्म है। ये भाव मे बैठे ग्रह ओर ये भाव हमारे भाग्य का निर्माण करेंगे।

कर्म का तो भाग्य हो गया। नोकरी यही भाव तो तय करेगा। कर्म में कितय भाग्य लिखा है यही भाव तो तय करेगा। 

लाभ की मृत्य कैसे होगी यही भाव तो तय करेगा। इच्छया पूर्ति की मृत्यु यही भाव तो तय करेगा। मतलब इस भाव का भावेश लाभ के लिए बड़ा ही निकृष्ट है।

ओर नाश का तो मारक भाव है। 

षष्टम भाव का चन्द्र

वैसे तो देखा जाए तो 3 6 8 11 12 भावो में शुभ ग्रह थोड़ी बहुत पीड़ा तो देंगे ही। 

छह भाव दूसरा सबसे पापी भाव है जो क्रोध को नियंत्रण करता है। शत्रु पक्ष का है। षष्टम में बैठा चंदत बताएगा कि वैश्य समुदाय से शत्रु पक्ष बन सकते है।

षष्टम का चन्दर बुद्धिमान भी बनाता है। क्यो क्योंकि बुद्धि का द्वितीय भाव है। और शुक्र जैसे अगले भाव की शुभ वृद्धि करता है वैसे ही चन्दर पिछले भाव की वृद्धि करता है।

अब यहां पक्ष बल में हीं चन्दर पापी बन जायेगा और शुभ फल देगा ही।

पक्ष बलि पूर्ण चन्दर शुभ का हो जाएगा तो अशुभ फल देगा।

षष्टम भाव भोजन की योजना का है तो यहां बैठा चन्दर शनि या राहु से पीड़ित हुआ तो ज्यादते मामलों में जातक को शराबी वना देता है। बाकी तो कुंडली देखकर ही पता चलता है।

6 8 12 में बैठा चन्दर जातक को थोड़ा सा दर्पण भी बनाता है।

बाकी अपनी कुंडली के हिसाब से विश्लेषण कर लो महेंद्र बाहुबली।

छठे भाव का शुक्र

शुक्र गुरु के बाद सबसे शुभ ग्रह। काल पुरुष में यहां नीच का। 6 भाव रोग का। 6 8 12 में कोई भी ग्रह हो थोड़ी बहुत परेशानी तो होगी ही। 6 ओर 8 में शारीरिक और मानसिक रोग।

षष्टम का शुक्र निष्फल होगा। क्यो....क्योंकि अपने कारक भाव से 12 वे भाव मे होगा। जैसे सप्तम का शनि अष्टम के लिए निष्फल है लेकिन सप्तम के अहभ फलों में जोरदार व्रद्धि करता है। इसी तरह षष्टम का शुक्र सप्तम के लिए शुभ फलदायी नही होगा। लेकिन यहां भी शुक्र उतना तकिल्फ़ नही देगा क्योंकि किसी भी भाव से 12वे भाव मे शुक्र अपने अगले भाव की व्रद्धि करता है। तो यहां 6 का शुक्र सप्तम के लिए थोड़ा सा पीड़ा दाई हो सकता है। शुक्र से सम्बंधीत बीमारी हो सकती है।

बैद्यनाथ के अनुसार 3 4 6 12 में शुक्र शुभ बलि ओर राजयोग देता है। 6 भाव का शुक्र जीवन साथी के 12 भाव मे होगा और आपके 12 भलव पे शुभ दृष्टि डालेगा तो ये भी एक प्रबल राजयोग बन गया। शुभ ग्रह विद्यमान हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो या शुभ ग्रह के नक्षत्र, ननवांश, राशि हो एक ही बात है।

आपकी बुद्धि में चार चांद लगाएगा षष्टम का शुक्र।

माता जी बन ठन के रहेगी। ज्योतिषी भी हो सकती है।

छोटा भाई के पास सुख। घर। मकान गाड़ी हो सकती है। गायक हो सकता है छोटा भाई। आपकी भावनात्मक इच्छयाये प्रबल हो सकती है।

पिताजी डॉक्टर। लक्ज़री व्ययवस्य करने वाले। होटल। सॉफ्टवेयर engg हो सकते है। पूर्व जन्म में आप बड़े सम्मानित व्यक्ति हो सकते है।

बड़े भाई बहन को पैतृक संपत्ति मिल सकती है। कोई मूत्र के रोग हो सकते है उनको। बड़ी बहन को यूटरस का रोग हो सकता है।

परिवार वाले ग्लैमर पसंद लोग हो सकते है। परिवार में कई लोग ज्योतिषी हो सकते है। परिवार के लोग उच्च कोटि की बुद्धि के लोग हो सकते है।

तो इस तरह षष्टम का शुक्र बाहत तरह के फल देगा। बाकी तो कुंडली की स्थिति और शुक्र की अवस्था। स्थिति। बल। षडवर्ग बल की स्थिति से पता चलेगा।

छठे भाव का गुरु

6 भाव रोग, ऋण, शत्रु, सेवक, नोकरी, कॉम्पिटिशन, पूर्व जन्म के कर्म, अर्थ त्रिकोण, रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि का है। गुरु स्थान हानि करता है। मतलब रोग ऋण शत्रु की हानि करेगा। मतलब रोग को खत्म करेगा। ऋण को खत्म करेगा। शत्रु को खत्म करेगा। यही गुरु दसम पे दृष्टि डाल के कर्म भाव को हष्ट पुष्ट करेगा। यही गुरु वाणी भाव पे दृष्टि डाल के वाक सिद्धि देगा। ज्ञान युक्त वाणी देगा। आपके काम का पूरा ज्ञान देगा। ज्योतिष की विद्या देगा क्योंकि द्वितीय भाव तो आकाश की विद्या का भाव जो जी। आकाश की योजना का भाव जो है। परिवार का भाव जो है। मतलब गुरु अर्थ त्रिकोण को शुभ फल देगा।

यही गुरु बताएगा कि पिछले जन्म में आप मार्गदर्शक थे। गुरु थे। कोषाध्यक्ष थे। राजगुरु थे पिछले जन्म में। इसी जन्म में भी शायद आप टीचर हो सरकारी। मतलब पिछले जन्म में भी टीचर इस जन्म में भी टीचर। मार्गदर्शक। गुरु।

भले ही यहां गुरु अच्छा फल देगा लेकिन गुरु केंद्र या त्रिकोण का अधिपति होकर बैठ गया तो उन भावो को तो नुकसान या तकिल्फ़ देगा ही। क्योंकि केन्द्राधिपति दोष से भी पीड़ित होगा और शुभ भावो का स्वामी होकर असगुभ में बैठ गया तो उन भावो को तो दिक्कत देगा ही भले ही अर्थ त्रिकोण के लिए शुभ फल दाई हो।

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