दूसरा भाव धन
जन्मपत्री में दूसरा भाव धन का कारक होता है। इसके अतिरिक्त पंचम, नवम, चतुर्थ, दशम भाव व एकादश भाव भी लक्ष्मी प्राप्ति के योगों का निर्माण करते है। प्रथम, पंचम, नवम, चतुर्थ, दशम और सप्तम भाव की भूमिका भी धन प्राप्ति में महत्वपूर्ण होती है। दूसरा भाव यानि धन के कारक भाव की भूमिका विशेष होती है। वैसे तो विभिन्न प्रकार के योग जैसे राजयोग, गजकेसरी योग, महापुरूष, चक्रवर्ती योग आदि में मां लक्ष्मी की विशेष कृपा या विपुल धन प्राप्त होने के संकेत देते ही है। लेकिन आधुनिक युग में उच्च पदों पर आसीन होने से ये योग लक्ष्मी प्राप्ति या महाधनी योग किस प्रकार घटित होते है ,ज्योतिष के अनुसार यदि निम्न प्रकार के सम्बन्ध धनेश, नवमेश, लग्नेश, पंचमेश और दशमेश आदि के मध्य बनें तो जातक महाधनी कहा जा सकता है।
यदि लग्नेश धन भाव में और धनेश लग्न भाव में स्थित हो तो यह योग विपुल धन योग का निर्माण करता है। इसी प्रकार से लग्नेश की लाभ भाव में स्थिति या लाभेश का धन भाव, लग्न या लग्नेश से किसी भी प्रकार का सबंध जातक को अधिक मात्रा में धन दिलाता है। लेकिन शर्त यह है कि इन भावों यो भावेशों पर नीच या शत्रु ग्रहों की दृष्टि न पड़ती हो। ऐसा होने से योग खण्डित हो सकता है। पंचम भाव का स्वामी यदि धन, नवम अथवा लाभ भाव में हो तो भी जातक धन होता है। यदि पंचमेश, धनेश और नवमेश लाभ भाव में अथवा पंचमेश धनेश और लाभेश नवम भाव में अथवा पंचमेश, धनेश और नवम भाव में युत हो तो जातक महाधनी होता है। यदि पंचमेश, धनेश, नवमेश और लाभेश चारों की युति हो तो सशक्त महाधनी योग होता है। किन्तु यह योग बहुत कम निर्मित होता है। नवमेश यदि धन या लाभ भाव में हो या धनेश नवमस्थ हो अथवा नवमेश और धनेश युक्त होकर द्वितीयस्थ, लाभस्थ, चतुर्थस्थ या नवमस्थ हो तो जातक महाभाग्यशाली होते है। किसी भी कार्य में हाथ डालकर अपार धन प्राप्त कर सकता है। यह युति यदि भाग्य में ही बने तो और अधिक बलवान हो जायेगा। धनेश और दशमेश का परिवर्तन, युति आदि होने से पर जातक पिता या राजा द्वारा या अपने कार्य विशेष द्वारा धन प्राप्त करता है। ऐसा जातक धनवान राजनेता होता है। मेरे रिसर्च में पंचमेश और नवमेश यानी पंचम का मालिक और नवम भाव के मालिक एक साथ केंद्र या पंचम नवम में बैठ जाए तो 100 करोड़ से ज़्यादा देता है कम से कम
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