सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला शिव गायत्री मंत्र -रुद्र गायत्री मंत्र
शिव गायत्री और रुद्र गायत्री मंत्र अलग अलग होते हैं।
सामान्यतः शिव गायत्री मंत्र को ही रुद्र गायत्री मंत्र मान लिया जाता है।
यदि कालसर्प, पितृदोष एवं राहु केतु तथा शनि से पीड़ा है,
अथवा ग्रहण योग है ...
जो जातक मानसिक रूप से विचलित रहते हैं
जिनको मानसिक शांति नहीं मिल रही हो तो उन्हें भगवान शिव की गायत्री मंत्र से आराधना करना चाहिये।
कालसर्प, पितृदोष के कारण राहु केतु को पाप पुण्य संचित करने तथा शनिदेव द्वारा दंड दिलाने की व्यवस्था भगवान शिव के आदेश पर ही होती है।
इससे सीधा अर्थ निकलता है कि इन ग्रहों के कष्टों से पीड़ित व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करे तो महादेव उस जातक की पीड़ा दूर कर सुख पहुँचाते हैं।
भगवान शिव की शास्त्रों मे कई प्रकार की आराधना वर्णित है परंतु शिव गायत्री मंत्र का पाठ सरल एवं अत्यंत प्रभावशील है।
इस मंत्र के शुभ परिणाम शीघ्र ही दिखाई देने लगते हैं,
मेरा अनुभूत मंत्र है।
मंत्र निम्न है :-
" ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् "
इस मंत्र का विशेष विधि-विधान नहीं है।
यह स्वयंसिद्ध मंत्र है।
इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं।
इसी के साथ सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे।
शिवजी के सामने घी का दीपक लगाएँ।
जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें।
पितृदोष, एवं कालसर्प दोष वाले व्यक्ति को यह मंत्र प्रतिदिन करना चाहिये।
सामान्य व्यक्ति भी करे तो भविष्य मे कष्ट नहीं आएगा।
इस जाप से मानसिक शांति, यश, समृद्धि, कीर्ति प्राप्त होती है और शिव की कृपा का प्रसाद मिलता है।
लंबी बीमारी से त्रस्त हैं और कोई लाभ नहीं मिल रहा तो #रुद्र गायत्री मंत्र का जप करना चाहिये।
सोमवार को शिव मंदिर मे जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, फूल, दूध चढ़ा कर , दीपक जलाकर रखें और रूद्र गायत्री मंत्र का पाठ करें।
मंत्र इस प्रकार है –
" ॐ सर्वेश्वराय विद्महे, शूलहस्ताय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात् "
"हे सर्वेश्वर भगवान !
आपके हाथ मे त्रिशूल है,
मेरे जीवन मे जो शूल है, कष्ट है ... वो आपके कृपा से ही नष्ट होंगे,
मैं आपकी शरण में हूँ "
ऐसा करने से उस भक्त की रक्षा हो जाती है।
Comments
Post a Comment