जन्म कुंडली में चौथे घर को चतुर्थ भाव कहा जाता है । इसके स्वामी को चतुर्थेश कहते है
💢जन्म कुंडली में चौथे घर को चतुर्थ भाव कहा जाता है । इसके स्वामी को चतुर्थेश कहते है
👉चतुर्थ भाव से माता , भूमि , भवन , जमीन - जायदा , वाहन सुख , घरेलू सुख , जन्म स्थान से दूर निवास , जन सेवा , सीने (छाती ) से संबंधित बीमारी के बारे में विचार किया जाता है ।
👉चंद्रमा , बुध एवं शुक्र को इसका कारक ग्रह माना जाता है ।
👉जब कुंडली में चतुर्थ भाव का स्वामी , चतुर्थ भाव एवं इसके कारक चंद्रमा पीड़ित हो जाते हैं तो इस भाव से संबंधित समस्या ज्यादा होती है । मन में भय भी बना रहता है । घरेलू सुख में अशांति बानी रहती है ।
👉यदि चतुर्थ भाव , चतुर्थेश , चंद्र तथा कर्क राशि इन सब पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो तो ऐसे में छाती के रोग जैसे निमोनिया खासी तपेदिक आदि होने की संभावना रहती है ।
👉चतुर्थ भाव पर राहु केतु जैसे क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो या वहां विराजमान हो तो ऐसे व्यक्ति को मातृभूमि का वियोग सहना पड़ता है मतलब उनको जन्म स्थान से दूर निवास करना पड़ता है ।
👉शनि राहु के साथ द्वादशेश का भी प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति को बार-बार अपना रहने का स्थान बदलते रहना पड़ता है । यदि सरकारी कर्मचारी हो तो अधिक तबादलों का सामना करना पड़ता है ।
👉चतुर्थ भाव के साथ शुक्र भी पीड़ित हो या कमजोर हो तो वाहन का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता है ।
👉चतुर्थ भाव सर्वजन का भाव होता है किसी भी व्यक्ति को जनता का प्रिय नेता बनने के लिए चतुर्थ भाव की स्थिति ठीक होनी चाहिए ।
👉चतुर्थ भाव चतुर्थेश एवं चंद्र के साथ लग्नेश की युति अथवा दृष्टि संबंध हो एवं चतुर्थ भाव बलवान तथा शुभ दृष्ट हो तो व्यक्ति सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने वाला जनप्रिय व जनहितकारी नेता होता है । ( सिर्फ इस योग के कारण कोई राजनेता नहीं बन सकता है यह सिर्फ जनता से लगाव का भाव है। )
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