क्यों समझ से बाहर है "स्त्री" ?

क्यों समझ से बाहर  है "स्त्री" ? 
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''त्रिया-चरित्रम्'' अर्थात तीन प्रकार के चरित्र !  

१ - सात्विक, 
२- राजसिक ,  
३- तामसिक !

ब्रह्माण्ड का सञ्चालन सुचारु रूप से चलाने के लिये उन्होंने तीन प्राकृतिक गुणों की रचना की जो सत्व, राजस तथा तम नाम से जनि जाती हैं। साथ ही इन त्रिगुणों के ''परिचालन'' हेतु, त्रि-देवो की संरचना की। 

निर्माण या रचना, पालन तथा संहार, ये तीनो ही सञ्चालन हेतु ''संतुलित'' रूप में अत्यन्त आवश्यक हैं।

त्रिगुणात्मक प्रकृति, शक्ति या बल, "सात्विक (सत्व), राजसिक (रजो) तथा तामसिक (तमो)" तीन श्रेणियों में विभाजित हैं। हिन्दू वैदिक दर्शन के अनुसार संसार के प्रत्येक जीवित और निर्जीव तत्त्व, की उत्पत्ति या जन्म इन्हीं गुणों के अधीन हैं। ब्रह्मांड के सुचारु ''संचालन'' हेतु, इन ''तीन गुण'' अत्यंत ''अनिवार्य'' हैं, इनके बिना ''ब्रह्मांड'' का सञ्चालन संभव नहीं हैं। 

निर्माण, पालन और विनाश के बिना संभव नहीं है । 

किसी भी एक बल की अधिकता या न्यूनतम, संसार चक्र सञ्चालन के संतुलन को प्रभावित कर, समस्त व्यवस्था को अच्छादित, असंतुलित कर सकता हैं। विनाश के बिना नूतन उत्पत्ति या सृष्टि करने का कोई लाभ नहीं हैं ! 

आद्या शक्ति, जिन्होंने समस्त जीवित तथा अजीवित तत्व का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से निरूपण किया हैं, वे भी इन्हीं तीनो गुणों के अधीन भिन्न भिन्न रूपों में अवतरित हुई।

महा काली, पार्वती, दुर्गा, सती तथा अगिनत सहचरियों के रूप में, वे ही तामसिक शक्ति हैं, महा सरस्वती, सावित्री, गायत्री इत्यादि के रूप में वे ही सात्विक शक्ति हैं, महा लक्ष्मी, कमला इत्यादि के रूप में वे ही राजसिक शक्ति हैं ! 

साथ ही इन देवियों के भैरव क्रमशः भगवान शिव, ब्रह्मा तथा विष्णु, क्रमशः तामसिक , सात्विक  और राजसिक बल से सम्बंधित हैं !

शक्ति में जब ''राजसिक गुण'' होता है तब यह ''दुर्गा'' कहलाती है , जब ''तमोगुण'' प्रखर होता होता है तब है ''काली'' कहलाती है और जब ''सत्वगुण'' का प्रभाव बड़ जाता है तब यह ''ब्रह्मचारिणी'' कहलाती है !!

कोई भी स्त्री इन तीनो गुणों को ''कभी भी'' धारण करने की क्षमता रखती है इसलिए कहा जाता है की स्त्री को कोई भी, कभी भी नहीं ''समझ'' सकता है !!

इसलिए ''त्रिया-चरित्रम्'' शब्द को ''गाली'' की तरह उपयोग न करे बल्कि इस शब्द का असली मतलब जाने ! 
कोई भी स्त्री  इन तीनो गुणों के बिना ''सम्पूर्ण'' नहीं होती है, यही  ''प्रकृति'' का नियम है बस जरुरत है तो इन तीन गुणों में सही ''संतुलन'' की !

चूकि: स्त्री में चन्द्र तत्व अधिक होता है इसलिए स्त्री इन तीनों गुणों को  बहुत जल्दी से "धारण" कर लेती  है । 
इसलिए आपकी "समझ'' से बाहर हो जाती है  ।
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