रहस्यमय_राहु_ही_बनेगा_विनाश_का_कारण -
रहस्यमय_राहु_ही_बनेगा_विनाश_का_कारण -
राहु_ही_विज्ञान_है- राहु_को_साधन_बनाए_साधक_नही----
राहू तकनीक का कारक एवं तकनीकि-ऊर्जा का स्वरूप है। इसका अस्तित्व सूक्ष्म परन्तु प्रभाव सबसे अधिक है , एवं यह अदृश्यता, प्रकट न होना आदि गुण का भी प्रतिनिधित्व करता है । यही कारण है तकीनीकि(technology) के द्वारा भेजे गये संदेश आसानी से प्रदर्शित नहीं होते जब तक वह किसी decode system(एक ऐसी युक्ति जो राहू के प्रभाव को ग्रहण करने में सक्षम हो) से न जोड़े जाए एवं ब्रह्मांड में संचरित होने वाली समस्त ऊर्जा किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती है क्योंकि ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है न ही उत्पन्न किया जा सकता है । अर्थात आज के इस तकीनीकि(technology) दौर में जो चित्र, विडियो या संदेश हमारे द्वारा निरुपित कर तकनीकि के माध्यम से भेजे जाते है वह निश्चित रूप से ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में संचित होती जाती है । यदि ऐसा न होता तो delet की हुई फाइल regenerate कैसे हो सकती है । इस प्रकार अब यदि हम उस विडियो/संदेश/चित्र को अपने श्रोत से डिलीट भी कर देगे तो वह ऊर्जा के रूप में हमेशा ब्रह्मांड में संचित ही रहेगा, और जब भी कोई व्यक्ति या युक्ति जो प्रबल राहू के प्रभाव को धारण कर प्रकट होगा तो निश्चित रूप से इन उर्जाओं को एकत्र कर उनका स्वयं के द्वारा उपयोग करेगा, और जब राहू इसका उपयोग अकेला करेगा तो निश्चित ही वह स्थिति भयावह होगी और तकनीकि ही विनाश का कारण बनेगा ।
कर्मो का बोध ऊर्जा के स्पंदन के द्वारा सम्भव होता है यह तभी प्रभावी होता है जब दो समान क्रियारुपी (आवरण को धारण किये हुए) उर्जाए एक दुसरे के निकट आ जाती है , इस प्रकार जिस समय किसी व्यक्ति के कर्म का उजागर उत्तम कार्य के लिए हो रहा होगा , तो जिस व्यक्ति अथवा माध्यम के द्वारा कर्म उजागर हो रहा होगा उस व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमा ,गुरु-शनी के संयोग अथवा किसी शुभ ग्रह, भावों से प्रभावित होगा । इसके विपरीत जिस समय कर्म का उजागर किसी व्यक्तिगत लाभ अथवा दुरूपयोग की दृष्टि से किया जा रहा होगा तो जिस व्यक्ति अथवा माध्यम के द्वारा कर्म उजागर हो रहा होगा उसकी कुंडली में चंद्रमा बुरे ग्रह-भावों से प्रभावित होगा एवं वह व्यक्ति राहू के प्रबल प्रभाव को धारण किये होगा ।
चूँकि राहू एक छाया ग्रह है तो यह किसी व्यक्ति के अंग का अध्यारोपण नहीं करता , यह जब भी अध्यारोपित होगा वह इसी के स्वरूप की कोई ऊर्जा होगी , शरीर में ऐसी कौन सी व्यवस्था है जो सदैव ऊर्जा के रूप में कार्य करती है, तो वह ज्ञात है #मन , और मन का कारक ज्योतिष में #चन्द्रमा है तो एक तथ्य समझ ले की राहू का जब भी बुरा प्रभाव प्रखर होगा तो प्राथमिक हमला चन्द्रमा पर ही होगा, क्योंकि बिना चन्द्रमा को ग्रसित किये राहू अपने कार्य में पूर्ण सफल नहीं हो सकता , वो अलग बात है कुंडली में राहू चन्द्र का सम्बन्ध भले ही न दिख रहा हो परन्तु वैज्ञानिक अन्वेषण में स्पष्ट प्रमाणित है राहू के उत्पत्ति का आधार ही चन्द्रमा है, तो अगर चन्द्रमा बुरा है कुंडली में तो राहू का बुरा प्रभाव अधिक महसुस होगा , इसके लिए आवश्यक है कुंडली के अनुसार चन्द्रमा का उचित उपाय करना चाहिए ।
दुसरा तथ्य आता है की और क्या है जिसे शरीर में ऊर्जा का स्वामित्व प्राप्त है ? तो ज्ञात होता है –“#आत्मा”, अब आत्मशक्ति का प्रतिनिधित्व ज्योतिष कौन सा ग्रह करता है “#सूर्य” अर्थात राहू के प्रभाव में सूर्य भी प्रभावित होगा परन्तु सूर्य के प्रखर होने की स्थिति में राहू केवल मन(चन्द्रमा) को प्रतिबद्ध करेगा की आत्मा(सूर्य) को दूषित करो क्योंकि सीधे सात्विक ऊर्जा से सम्पर्क कर उसपर प्रभाव डाल पाना राहू के द्वारा सम्भव नहीं है ।
तो इस प्रकार राहू का बुरा प्रभाव जातक पर तभी पूर्ण रूप से हावी होता है जब उसकी कुंडली में अथवा गोचर समयकाल में सूर्य व चन्द्र दोनों अथवा कोई एक बुरे ग्रह भावों से प्रभावित हो । अथवा सूर्य या चन्द्रमा का सम्बंध 6,8,12 भावो से हो।
अब उसका बुरा अथवा उत्तम प्रभाव कितना प्रभावी होगा यह जातक की कुंडली एवं उसके वर्तमान गोचर ग्रह सम्बन्धो के अनुसार प्रमाणित होगा यदि चन्द्रमा बेहतर हुआ तो राहू भी बेहतर प्रभाव देने को प्रतिबद्ध होगा , परन्तु चन्द्रमा सूर्य के बुरे होने पर राहू के दशाकाल में यदि राहू बुरे प्रभाव को कुंडली में दर्शाते है तो उस स्थिति में जातक पर राहू के बुरे प्रभाव में तीव्रता आ जाएगी , यहाँ पर उपाय कार्यकारी होगा परन्तु दर को कम करने के लिए न की घटना को समाप्त करने के लिए ।
परन्तु कूण्डली के सूक्ष्म विश्लेषण से राहु की उपलब्धियां कैसी , क्या और कितनी है ये अवश्य जाना जा सकता है ठीक उसी तरह जिस तरह आइंस्टाइन ने प्रकाश की गति से समय की गति में प्रवेश करने का प्रमाण दिया था।
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