चंद्र पंचम भाव मे


ऋषि कहते हैं कि चन्द्र यदि पञ्चम भाव में हो तो जातक देवताओं को प्रसन्न करने में सफल होता है।
टिप्पणी: पञ्चम भाव मन्त्र सिद्धि, उपासना, इष्टदेव आदि का भाव है। यदि आपका चन्द्र इस भाव सहित 10-11 से लिंक्ड हो तो आप सिद्धि आदि कार्यों में अवश्य सफल होंगे, जिसे यहाँ ईश्वर का प्रसन्न होना कहा गया है।

ऋषि: जातक की पत्नी सुंदर होगी, किन्तु वह आशुक्रोधी (quick tempered) होगी, उसके स्तनों के मध्य एक जन्मजात चिन्ह होगा।
टिप्पणी: पत्नी  विषयक ज्ञान हेतु सप्तम को यदि भार्या (spouse) का लग्न माना जाए तो आपका पञ्चम भाव, पत्नी का एकादश बनेगा, अतः चन्द्र का लिंक सप्तम से आरम्भ होकर एकादश के अतिरिक्त अन्य भाव 3-4-5-8 सहित शुक्र से हो तो वह सुंदर होगी।

एकमात्र चन्द्र की स्थिति आशुक्रोधी या जातक की मनोवृत्ति (temper) जानने के लिए अपर्याप्त है। लग्न चाहे स्वयं का हो या पत्नी का, लग्न ही मनोवृत्ति का ज्ञान देता है। लग्न की राशि, नक्षत्र आदि की समीक्षा ही स्वभाव का रहस्य खोल सकती है।

हमारे शरीर में चिन्ह आदि दो प्रकार से बनते हैं, पहला जन्मजात, दूसरा जन्म लेने के उपरांत, जो चोट, फोड़ा, ऑपरेशन आदि से बनता है।

'स्तनों के मध्य चिन्ह' का रहस्य यह है की प्रत्येक राशि हमारे शरीर की प्रतिनिधि होती है।
मेष: सिर
वृष: कर्ण, गला, कंठ
मिथुन: भुजा, हाथ, कन्धे
कर्क: स्तन...

और चन्द्र कर्क राशि का स्वामी है। चिन्ह निर्माण के लिए इनकी समीक्षा आवश्यक है।
1. लग्न राशि
2. लग्न की स्थिति
3. चन्द्र की स्थिति
4. पापग्रहों की स्थिति
5. षष्ठ भाव की समीक्षा
आदि के उपरांत ही कुछ कहा जा सकता है।

ऋषि: जातक को पशुधन प्राप्त होगा। उसकी दो पत्नियाँ होगीं। वह सदाचारी होगा तथा परिश्रमी होगा। उसके घर दूध की अधिकता होगी।

टिप्पणी: पशुधन की प्राप्ति अनेक कारणों से सम्भव है, जिसमें से एक यह है कि पशु का भाव षष्ठ है। पञ्चम भाव उसका द्वादश है, अर्थात व्यय (उसका बिक जाना) है। अतः षष्ठ भाव से आरम्भ होता हुआ यह लिंक पञ्चम सहित 6-12 से जुड़ा हो तो पशु के क्रय से धनलाभ होता है।

पशु को वाहन भी माना जा सकता है। अतः चतुर्थ भाव से यह लिंक आरम्भ होकर पञ्चम सहित 3-10 से जुड़ा हो तो वाहन क्रय से धन प्राप्ति होती है।

पञ्चम भाव एक से अधिक सम्बंधों का ज्ञान देता है, जिसमें अनेक प्रकार के नैतिक-अनैतिक सम्बंधों का समावेश होता है, किन्तु एकमात्र चन्द्र ऐसा करने से असमर्थ है, अतः एक से अधिक पत्नी हेतु सप्तम, नवम एवं द्वितीय भाव की लिंकेज का विश्लेषण अनिवार्य है।

सदाचार हेतु चन्द्र सहित बुध, गुरु, शुक्र की समीक्षा आवश्यक है, क्योंकि यदि ये पीड़ित हों, तो जातक सदाचारी नहीं रहता है।

परिश्रमी होना एक गुण है, जिसका संज्ञान लग्न एवं लग्नेश से होता है, कभी यह गुण जन्मजात होता है, तो कभी दशा-भुक्ति के प्रभाव वश जातक निठ्ठले से परिश्रमी बन जाता है। परिश्रम का कारक शनि है। अतः कुंडली में इन सबका विश्लेषण आवश्यक है।

चतुर्थ भाव गृह है, और उसका द्वितीय भाव रसवती (kitchen) का है, जो पञ्चम बनता है। चन्द्र जलीय पदार्थ सहित दुग्ध का कारक है। अतः चन्द्र का सम्बन्ध इसीलिए दुग्ध की अधिकता से जोड़ा गया है।

ऋषि: वह चिंतित रहेगा। उसकी कन्या सन्तान अधिक तथा एक पुत्र होगा। वह देवी का आराधक होगा।

टिप्पणी: चन्द्र मन का कारक है। उस पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव भय सहित चिंता को जन्म देता है। किंतु अन्य तथ्यों को भी देखना चाहिए। कालपुरुष की मीन राशि (द्वादश) की समीक्षा भी आवश्यक है।
मूक राशियों का प्रभाववश जातक सरलता से चिंतित हो जाता है। स्थिर राशियाँ सबसे कम चिंता देती हैं। जल एवं वायु राशियाँ सबसे अधिक चिंता उत्पन्न करती हैं।

यह आवश्यक नहीं कि जातक एकमात्र देवी भक्त हो। चन्द्र एक स्त्री ग्रह है, और पञ्चम भाव उपासना का है, अतः किसी देवी की आराधना से इसे जोड़ा गया है।

पञ्चम में चन्द्र बैठा हो और कन्या सन्तान अधिक और एक पुत्र हो, यह आवश्यक नहीं है। ज्योतिष में अभी तक ऐसा कोई पुष्ट सूत्र नहीं है, जो सन्तान के लिंग को 100℅ बता सके।
भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री इंद्रकुमार गुजराल के पञ्चम भाव में चन्द्र स्थित है। उनके मात्र दो पुत्र हुए।

ऋषि: यदि चन्द्र शुभ दृष्ट या शुभ प्रभावित हो तो वह परोपकार करेगा। यदि चन्द्र पाप प्रभावित हो तो जातक ऐसा नहीं करेगा। 

टिप्पणी: परोपकार का ग्रह गुरु है, अतः चन्द्र अथवा लग्न/लग्नेश यदि गुरु से लिंक हो तो जातक परोपकारी होगा। 

ऋषि: यदि चन्द्र पक्षबल में बलवान हो तो जातक दूसरों को भोजन कराने वाला, शक्तिशाली तथा विद्वान लोगों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वह पवित्र कर्म करता है, बहुत भाग्यशाली, समृद्ध, विद्वान तथा राजयोगी होता है।

दूसरों को भोजन कराना एक पुण्य कार्य है, जो नित्य या किसी दैवीय अनुष्ठान के पश्चात किया जा सकता है। 

बलवान का अर्थ प्रभावशाली है, जो जातक अपने उत्कृष्ट कर्म से उत्पन्न करता है। चन्द्र विभिन्न भावों की लिंकेज से जातक उत्तम ज्योतिषाचार्य, अभिनेता, बौद्धिक क्षमता, संगीत में लोकप्रियता आदि प्राप्त कर सकता है।

ईश्वर की आराधना एक पवित्र कर्म है, जिसके विषय में बताया जा चुका है।

इस भाव में भाग्यशाली का अर्थ है, सन्तान/स्वास्थ्य/प्रेम-प्रसंग/उपासना आदि में सफलता का होना। चन्द्र जिन भावों से लिंक होगा, जातक उसी योग का फल पायेगा।

समृद्ध होने का अर्थ है अत्यधिक धन की प्राप्ति जिसके लिए चन्द्र को गुरु से लिंक होकर 2-3-6-11 भावों से सम्बन्ध बनाना होगा।

राजयोगी एक प्रकार की आध्यात्मिक अवस्था है। पञ्चम भाव पूर्वपुण्य तथा आध्यात्मिक परिवर्तन का भाव है। यदि चन्द्र का लिंक 10-11 से जुड़ा हो तो जातक इस पथ में अग्रसर होता है।© ज्यो० हेमन्त भट्ट

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