पंचमहापुरुष योग,

दुनिया में हम सभी सफलता, यश और सम्मान चाहते है

सामान्यत: प्रत्येक व्यक्ति में महत्वाकांक्षा की भावना देखी जा सकती है। सफल होना और केवल सफल होना, एक इसी भावना में रहकर लोग काम कर रहे है। सफलता अर्जित करने के लिए हर संभव प्रयास भी लोग कर रहे है। फिर वह प्रयास चाहे सही तरीके से किया जा रहा हो या गलत तरीके से किए जा रहा हो। आज सफलता प्राप्ति हेतु साध्य मुख्य हो गया है, साधन की सात्विकता आज गौण हो गई है। हम सफलता के उपासकों की दुनिया में रहते हैं। आज दुनिया में हर पल कई हजार लोग जन्म ले रहे है। इस प्रकार यदि हम विश्लेषण करें तो सारी दुनिया में प्रसिद्ध होने वाले लोगों का प्रतिशत १ से भी कम है। स्थिति यह हो गई है कि प्रत्येक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि क्या वो सफल होगा? अगर सफल होगा तो कब होगा? और क्या वह धनी होगा? कुछ ऐसे ही प्रश्नों से आज का व्यक्ति घिरा रहता है। क्या ऐसे प्रश्नों का समाधान कुंडली से कैसे किया जा सकता है? आज इस आलेख में हम यही जानने का प्रयास करेंगे-

कुंडली में पंचमहापुरुष योग, राजयोग, चंद्रादि योग, धन योग और अन्य शुभ योग होने का अर्थ भी यह नहीं है कि व्यक्ति सफल, धनी और मान-सम्मान से युक्त होगा। क्योंकि हम जानते है कि ऐसे योग भी हजारों, लाखों कुंडलियों में बनते है और ऐसे योगों से युक्त कुंड्लियों वाले सभी जातक सफलता की ऊंचाईयों को नहीं छू पाते है। शनि ग्रह एक राशि में लगभग ढ़ाई साल रहता है और गुरु लगभग एक साल। इस प्रकार शनि तुला, मकर और कुम्भ राशि में होने पर या तो स्वराशिस्थ होता है या फिर तुला में होने पर उच्चस्थ होता है।

इस प्रकार इन तीन राशियों में शनि की स्थिति होने पर लगभग साढ़ेसात सालों में जन्म लेने वाले जातकों की कुंडली में शनि अतिशुभ होकर सफलता के योगों में वॄद्धि करता है। शनि, गुरु या राहु का उच्चस्थ, स्वराशिस्थ या मूलत्रिकोणस्थ होना व्यक्ति को धनी बना सकता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं कि धनी व्यक्ति सफल व्यक्ति भी हो। करियर में सफलता, उन्नति, मान-सम्मान प्राप्ति में धन योग आंशिक भूमिका निभाते हैं, इन्हें पूरक कहा जा सकता है। परन्तु केवल धन योग किसी व्यक्ति की सफलता का मापदंड नहीं होते है। हम अपने आसपास अक्सर देखते हैं कि कुछ लोग सारा जीवन धन और सफलता के लिए संघर्ष करते हैं और व्यक्ति को मरने के बाद सफलता मिलती है। मृत्यु भी व्यक्ति को कई बार प्रसिद्धी दे देती है।

लग्न भाव मजबूत हो तो व्यक्ति व्यक्तित्व से मजबूत होता है। विपरीत परिस्थितियों से घबराता नहीं है। जब लग्न और लग्नेश मजबूत हो तो कुंड्ली काफी हद तक मजबूत हो जाती है।
कुंडली का एकादश भाव सफलता, उन्नति, यश और सम्मान का भाव है। यह भाव इच्छाओं की पूर्ति, कामनाओं और लाभ का भाव भी है। एकादश भाव हमें हमारे कर्मों की मेहनत का फल देता है। कार्य करने के लिए आपको अपने ही कार्यों को कुशलता से करना होगा। एकादश भाव मान्यताओं, पुरुस्कारों और लाभ का भाव है। सबसे पहले लग्न भाव का अध्ययन करते हैं। लग्न मजबूत हों तो कुंडली में स्थित अन्य ग्रह योग भी अपना फल दे पाते है। कोई व्यक्ति सफल होगा या नहीं इसके लिए निम्न नियम देखते हैं-
सर्वप्रथम हम एकादश भाव को देखते हैं। एकादश भाव और एकादश भाव के स्वामी की स्थिति का विचार किया जाता है। एकादश भाव का स्वामी अगर केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो तो अनुकुल फल देने वाला होता है। स्वराशि में एकादश स्थित हो तो वह सबसे अच्छा फल देता है। छ्ठे, आठवें और बारहवें भाव और इन भावों के स्वामी शुभ नहीं माने गए है।
एकादश भाव से जो भी ग्रह और भावेश जुड़े हों वो सभी सफलता, और उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एकादश भाव या भावेश पर दृष्टि डालने वाले ग्रह जितने अधिक होंगे, उसी मात्रा में व्यक्ति के सफल होने के योग बनते है।
एकादशेश यदि कुंडली में शुभ स्थित हो तो जातक सदैव प्रसन्न रहता है और दूसरों को भी खुश रखने की कोशिश करता है। इसके विपरीत यदि एकादश भाव का स्वामी अशुभ प्रभाव में हो तो व्यक्ति स्वयं भी विचलित रहता है और सफलता प्राप्ति में दिक्कतें बने रहती है। एकादश भाव और एकादशेश का अशुभ ग्रहों के प्रभाव में होना व्यक्ति के जीवन को संगर्षमय बनाता है। इसकी वजह से व्यक्ति के लाभ सीमित होते है एवं सफलता भी सहज प्राप्त नहीं होती है।
सहज शब्दों में यह कहा जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता की धूरी एकादश भाव और इसके स्वामी ग्रह के आसपास घूमती है। दुनिया में आज तक जो भी लोग सफल हुए है, उन सभी की कुंडली में एकादश भाव और एकादश से एकादश अर्थात नवम भाव शुभ एवं बली होना चाहिए।
दूसरा भाव धन भाव है यह भाव धन आगमन की जानकारी न देकर धन संचय की जानकारी देता है।
कुंडली का तीसरा भाव किसी भी चुनौती का सामना करने का साहस और पहल करने का है।
छ्ठा भाव विरोधियों और प्रतिरोधियों का है। हमारे शत्रु किस प्रकार हमें परेशान करेंगे और हम उनका समाधान किस प्रकार करेंगे यह सब छठे भाव से जाना जा सकता है। दशम भाव कर्म और मेहनत का भाव है। और एकादश भाव दशम भाव का परिणाम है। अर्थात हमारी प्राप्तियां है।
एकादश भाव में शनि, मंगल या राहु ग्रह बलवान होकर स्थित हो तो व्यक्ति को मिलने वाली सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती है। कई बार सफलता अपने साथ प्रसिद्धि लेकर आती है और कई बार प्रसिद्धी हमें सफल बना देती है। परन्तु दोनों अलग अलग है, एक दूसरे के पूरक हो सकते है, फिर भी दोनों एक दूसरे का स्थान नहीं ले सकते। एकादश भाव का स्वामी धन भाव द्वितीय भाव में हो तो व्यक्ति को बड़ी मात्रा में वित्तीय लाभ प्राप्त हो सकता है।
आमजन में प्रसिद्ध होने के लिए शनि ग्रह बहुत मजबूत होना चाहिए। शनि आमजन का कारक ग्रह है। राहु, शुक्र के साथ स्थित हो तो व्यक्ति विवादों के कारण प्रसिद्ध होता है। एक लोकप्रिय लीडर या एक राजनीतिज्ञ की तरह। प्रसिद्धि का विचार करने के लिए चंद्र की स्थिति का भी विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त गुरु/शुक्र या शुभ बुध चंद्र को देखता हो तो व्यक्ति को अपनी योग्यता और ग्यान के फलस्वरुप प्रसिद्धि मिलती है। पंचम भाव में चंद्र स्थित हो तो या चंद्र सुस्थित होकर दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति जल्द प्रसिद्ध होता है। यह सिर्फ योग है, यहां यह नहीं समझना चाहिए कि जिस भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र पंचम या दशम भाव में हो तो वह व्यक्ति सफल या प्रतिष्ठित हो जाएगा। ऐसा नहीं है, यह केवल संकेत है, योग है, एक संभावना है।
जैसे यदि सूर्य मेष राशि में उच्चस्थ स्थित है और मेष राशि का स्वामी मंगल कर्क राशि में नीचस्थ है तो इससे सूर्य की शुभता में भी कमी होगी। इसके अतिरिक्त मंगल उच्चस्थ स्थित हो तो यह यहां से उच्चस्थ सूर्य पर चतुर्थ दृष्टि डालें तो इससे मंगल के साथ साथ सूर्य की शुभता में भी बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार के योग धन और प्रसिद्धि के योगों को बेहतर करते हैं। कर्म भाव और एकादश भाव में स्थिति राहु व्यक्ति को प्रसिद्धि देने की योग्यता रखता है।

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