चंद्र
जय श्री बालाजी
चन्द्रमा
चन्द्र .....भारतीय वैदिक ज्योतिष का सबसे मुख्या गृह.....पृथ्वी का उपग्रह...पृथ्वी के चारो और चक्कर लगाने वाला गृह....लग्न कुंडली या चन्द्र कुंडली में सी कौन सी कुंडली देखनी चाहिए ये अभी भी एक रहस्य है.....सबसे तेज़ गति से चलने वाला गृह...२४ घंटे में एक नक्षत्र पूरा करने वाला गृह.....महीने भी इसी की वजह से बने.....लगभग सारा फलादेश इसी चन्द्र की वजह से चल रहा है हमारा....सबसे चंचल गृह..रोमांस का कारक गृह...मन..माता...का कारक गृह...पार्वती माता...सबसे कोमल गृह...किसी से कोई दुश्मनी नहीं.....सबसे मित्रता या सम भाव रखने वाला गृह.....मन के हारे हार है..मन के जीते जीत है..मतलब चन्द्रमा ही चन्द्रमा सब जगह....जल का कारक गृह....पृथ्वी पे ७०% जल ..हमारे शारीर में ७०% जल......सब ग्रहों का के बल का बीज....सब ग्रहों के बल का वीर्य......पृथ्वी के सबसे समीप गृह....२७ नक्षत्रो का पति..कहते है चन्द्रमा के २७ रानिया है....जिसमे सबसे प्रिय इसको रोहिणी है.......महीने इसकी वजह से बने..तिथिया इसकी वजह से बनी....नक्षत्र पे इसका अधिकार..चन्द्र कुंडली ....चंद्रकला नाडी भी चन्द्रमा की वजह से....लग्न कुंडली के बराबर चन्द्रमा के योग....हर जगह ये ही छाया हुआ...चन्द्रमा के साथ कोई तारा गृह हो तो उसका भी बल बढ़ जाए...लेकिन सूर्य के साथ ये अपना बल खो दे अमावश्य बना के.....सूर्य से दूर पूर्णिमा का चंद्रमा बलि....कर्क में..वृषभ में..नवांश में भी बलि चन्द्रमा सब ग्रहों का बल बढ़ता है..जिस गृह के साथ हो..जिस गृह की द्रष्टि हो वैसा हमारा मन बन जाए....पीड़ित चन्द्रमा हमको दुनिया भर की परेशानिया दे दे...ग्रहों के बल को तो कम करता ही करता है...हमारे मन को भी परेशान कर देता है......चंद्रमा का एक नवांश और एक नाडी अंश बराबर...मतलब चन्द्रमा को समझे बिना वैदिक ज्योतिष अधूरी है....रहू केतु भी तो इसकी वजह से ही बनते है.....पृथ्वी के आगे काटे तो सर्प का मुह..पृथ्वी के पीछे काटे तो सर्प की पूंछ.......चन्द्रमा पृथ्वी के चारो और चक्कर काटे..और पृथ्वी के साथ साथ सम्पूर्ण सर मंडल का भी चक्कर काटे मतलब २ २ काम ..बहुत ना इंसाफी है कालिया.....कहते है जब चन्द्र ग्रहण हुआ तब समय बहुत तेज़ी से भागने लगा....हम बूढ़े होने लगे....ओषधियो का राजा चन्द्रमा .....कहने का मतलब है...पृथ्वी पर घटित होने वाली हर एक घटना के पीछे चन्द्रमा का हाथ अहि...पृथ्वी होने का कारण ही चन्द्रमा हो सकता है...सिर्फ एक बलि चन्द्रमा पूरी कुंडली को अपने दम पे चला सकता है..सूर्य को छोड़ के सब ग्रहों के दोष दूर करता है......बलि चन्द्रमा राहू केतु को भी झेल लेता है......मन मजबूत है...दृढ इछ्या शक्ति हो तो लक्ष्य अपने आप छोटा नज़र आने लगता है...माता का आशीर्वाद मिल गया तो फिर और क्या चाहिए..माँ से बड़ा और कोण है इस दुनिया में....इस लिए माता का आशीर्वाद रोज़ लेते रहो और चंद्रमा को बलि करते जाओ....इसीलिए तो जो अपनी माँ को दुखी रखते है वो जिन्दगी में सुख..भूमि..भवन..वाहन हर तरह के सुखस वंचित रहते है..क्योंकि इन सबका कारक भी तो चंद्रमा ही तो है..अपना मन भी तो दूषित कर लेते है.....लाल किताब तो कहती है इसके घर या इसकी राशि में तो राहू केतु भी चुपचाप बैठ जाते है..अब बताओ..जिन राहू केतु से हम इतने डरते है वो भी चन्द्रमा से डरते है तो फिर क्यों न चन्द्रमा को बलि बनाया जाए...माता का आशीर्वाद लिया जाए..क्यों न माँ पारवती की उपासना किया जाए....बुध तो इसका बेटा है..बुध के साथ..बुध की राशियों में बहुत ही खुस होता है..बेटे को भी खुस कर देता है....सबके साथ सुंदर योग बनता है....शनि राहू केतु के साथ दुर्योग तो सुयोग भी बनता है....है तो जल ही..जिसके साथ मिलेगा वैसे बन ही जायेगा..जल में हम जो मिलायेंगे..तो जल को क्या फर्क पड़ेगा....मित्र होगा तो मिल जायेगा...शत्रु होगा तो तेल की तरह उपर आ जायेगा......मंगल रूपी..क्रोध रूपी अग्नि को भी यही शांत करता है.....भले ही सर्दी जुखाम हो जाए..धुआ उठ जाए...कर्क रूपी पानी से निकल कर अग्नि रूपी सिंह राशि में प्रवेश करेगा तो जुखाम तो होगी ही..फिर गडांत दोष तो अपने आप बनेगा ही.......इसी तरह वृश्चिक धनु मीन मेष में.....इसी लिए तो ४ ५ १२ भावो में सब गृह अशुभ हो जाते है.....सूर्य की तपिश ग्रहण करके कितनी शीतल चांदनी बिखेरता है....इसीलिए तो माता को इतना महान कहते है...अब सूर्य से प्रकाश लेता है तो सूर्य के साथ तो शांत बैठेगा ही..सूर्य के बिना इसका क्या अस्तित्व..इसीलिए तो अमावश्य दोष बन गया
चन्द्र ओर योग और हम
अनफा, सुनफा, दुर्धरा, केमद्रुम, अधी योग, अमला योग, सकट, सूर्य चन्द्र योग, ढैया, साढ़े साती, गोचर, चन्द्र लग्न, चन्द्र बल, पक्ष बल, चन्द्र युति आदि आदि।
चन्द्र इग्नोर कर देते है हम। कौन उलझता है इन पचड़ों में। लग्न के झंझट ही पल्ले नही पड़ते तो चन्द्र तक कहा नज़र पड़ेगी। लेकिन फिर वही सवाल। क्या चन्द्र सिर्फ मन है....???
अनफा सुनफा दुर्धरा केमद्रुम तो हम सबको पता ही है। इसी से पता चल जाता है क्यों चन्दर को ग्रहों की जरूरत है। क्या इसी से चन्द्र की महत्ता का हमे पता नही चलता। चन्द्र की तरफ ध्यान देना बहुत जरूरी है। चन्द्र मन है तो ओर भी बहुत कुछ है। क्योना केमद्रुम को सबसे खराब योग माना गया है ये भी सोचने वाली बात है। केमद्रुम योग का बहुत कंडीशन में प्रभाव कम भी हो जाता है। लेकिन खत्म कभी नही होता। केमद्रुम वालो को तड़फते देखा है मेने। लेकिन बहुत सारी जगह ये कम प्रभावी भी हो जाता है।
अधी योग तो बड़ा गजब योग है। बड़ा राजयोग है। बाहत ऊंचाइयों तक लेके जाता है। केमद्रुम को भी कम कर देता है।
गजकेसरी योग तो केमद्रुम को लगभग खत्म कर देता है। ये राजयोग भी बहुत बड़ा है। स्थान परिवर्तन हो गुरु से। केंद्र में गुरु हो। साथ मे गुरु हो। गुरु की दृष्टि हो। बड़ा गजब राजयोग बनाता है गजकेसरी तो। शुभ बुध, शुक्र के साथ भी कुछ हद तक फायदा ही देता है। बाकी फलित तो बाद कि बात है।
अमला योग तो प्रबल राज योग है। दसम में शुक्र, शुभ बुध, गुरु बैठे हो तो बल्ले बल्ले। कहने ही क्या। कर्म क्षेत्र में शुBहत्व ही शुभत्व। सीधा चन्दर पे प्रभाव जमाने वाले।
शकट योग यहां चन्दर के बल को बहुत प्रभावी करता है। गजकेसरी योग और शकट योग सीधे सीधे बता रहे है कि गुरु और चन्द्र के घनिष्ट संबंध कितने गहरे है। कैसे ये योग निर्धनता ओर खराब करता है। लेकिन फिर वही बात केंद्र त्रिकोण में भंग।
अब चन्द्र युति। 5 तारा ग्रहों को तो एकदम बलवान बना देता है चन्द्र युति करे तो। उनके बल को बढ़ाता है लेकिन खुद....!!!
सूर्य चन्द्र युति वही अमावस्या। बचा क्या चन्दर में। लेकिन नवम दसम में ये भी राजयोग। लेकिन चन्दर का पीड़ित होना नुकसान तो देगा ही कही न कही।
चन्दर से केंद्र, पनफर, आपोक्लिम में सूर्य की स्थिति भी बहुत सारे योगों का निर्माण करेगी। ये नही भूलना चाहिए।
सूर्य के ठीक सामने चन्द्र पक्ष बलि होगा ये सभी जानते है और उसका गुणगान लगभग सभी जगह गाया गया है।
साढ़े साती, कंटक शनि, अष्टम शनि का गोचर कितना प्रभावी होता है सबको पता है। लेकिन इनका डर तभी जायज है जब आपकी कुंडली मे ये विपरीत फल दे रहे है। आधे से ज्यादा जातकों के इनका प्रभाव ही नही होता क्योंकि बलवान चन्दर, कमजोर शनि, अष्टकवर्ग, कुंडली के राजयोग, दशा आदि आदि इनके अशुभ प्रभाव को कम कर देते है। इसलिए कुंडली के तारतम्य बैठा कर ही इनका फल बताये नही तो फिर ज्योतिष पे सवाल उठेगा।
चन्द्र लग्न तो लग्न कुंडली से बलवान मानता हु में अगर फलित चन्द्र लग्न से निकल रहा है। सबसे पहले तो शुरुआत ही यही से होती है कि लग्न चन्द्र में से बलवान कौन है।
गोचर तो चन्दर से ही देखते है। लेकिन सोचने वाली बात है कि एक ही राशि होते हुए भी लोगो के फलित अलग अलग क्यो। इसका उत्तर गर्न्थो में मिल जाएगा गर्न्थो में। बस चन्दर तो मानसिक और लग्न की स्थिति बताएगा कि बढ़ना किस तरफ है।
चन्द्रकला नाड़ी को तो भूल ही गए। हमारी ज्योतिष की अंतिम सूक्ष्मता । सब कुछ निलने वाला इस नाड़ी से। हर 24 सेकंड में फलित बदलने वाली गणना।
अंत मे फिर वही सवाल। क्या चन्द्रमा सिर्फ मन है....!!!
चन्द्रमा मनसो जात
चन्द्रमा वे हम सैंकड़ो बार चर्चा कर चुके है। मन के हारे हार है। मन के जीते जीत। हमारी परवर्ती हमारे मन से तय होती है। हमारे मन मे क्या चल रहा है वही सब कुछ निर्धारित करती है। हमारे भारतीय शास्त्र, भारतीय दर्शन, हमारे संत, हमारे गुरु हर कोई इस चन्द्रमा को शुद्ध करने में लगे रहते है, इस चन्द्रमा को स्थिर करने में लगे रहते है। चन्द्रमा पे पाप ग्रह के प्रभाव को दूर करने में लगे रहते है सब।
चन्द्रमा सबसे ज्यादा शीघ्र गामी ग्रह है और मन भी स्थिर कहा है। जल भी तो निरन्तर बहता रहता है। स्थिर जल में दूषित। तो इस चन्द्रमा का बहाव किस तरह किया जाए कि ये मन की इच्छायों को समाप्त करके निर्वाण की ओर प्रस्थान कर ओर वो है परमात्मा का मार्ग। इसीलिए तो गुरु के साथ चन्दर गजकेसरी योग का निर्माण करता है क्योंकि गुरु के सानिध्य में ही तो इस चन्दर की उठा पठक से बाहर निकल कर सही रास्ता मिलता है या यूं कहें कि इस चन्दर को सही दिशा मिलती है।
चन्द्रमा एक सेकंड में स्थिर नही है। सबसे ज्यादा स्पीड में चलता है। पल पल इसकी परवर्ती बदलती रहती है विश्वास न हो तो चन्द्रकला नाड़ी पढ़ लो। 24 सेकंड का एक नाड़ी अंश। पूर्वार्ध ओर उत्तरार्ध 12 सेकंड। फिर 4 भाग यानी 6 सेकंड। फिर 6 भाग यही 3 सेकंड की गोचरीय स्थिति हमारे मन की पूरी मनः स्थिति को बदल देती है। यही तो ज्योतिष की विशेषता है। हमारे मनीषियों ने किसी भी विषय को नही छोड़ा। ज्योतिष से हम कुछ भी ज्ञात कर सकते है।
सिर्फ चन्द्रकला ही क्यो। हमारे ऋषियों ने अनेकों अनेक चक्र, अनेक प्रकार के गोचरीय स्थिति, योग बनाये है चन्दर से। चन्द्रादि चक्र, चन्द्रादि योग, चंद्रन का ज्योतिष में महत्व न न जाने कितने असंख्य बाते बताई है चन्द्रमा के बारे में।
किस राशि मे चन्द्र है। किस ग्रह के साथ है। किस ग्रह की चन्द्रमा पे द्रष्टि है। किस होरा, द्रेष्काण, सप्तमंशा, नवांश आदि में कन्द्रमा है और किस ग्रह की दृष्टि है। ये सब एक एओ बात हमारे ऋषियों ने बताई है बृहजातक सारावली आदि आदि गर्न्थो में । क्यो, क्योंकि यही मनः स्थिति तय करेगी हमारी स्थिति। पाप ग्रह का प्रभाव चन्द्रमा पे करोड़ प्रभाव डालेगा। पीड़ित करेगा। शुभ ग्रह का प्रभाव चन्द्रमा की कोमलता को परदृष्टि करेगा। सात्विकता को दिखायेगा।
गोचर चन्दर से ओर क्यो बोला गया है
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