काल सर्प योग


💐काल सर्प योग 💐 के विषय पर !

💐💐  काल सर्प दोष  प्रमाणिक है या काल्पनिक है  ज्योतिष में इस विषय पर ज्योतिषचार्य के विभिन्न मत है 

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💐💐कालसर्प' दोष भी 'कर्तरी' दोष के समान ही है। वराहमिहिर ने अपनी संहिता 'जानक नभ संयोग' में इसका 'सर्पयोग' के नाम से उल्लेख किया है, 💐काल सर्पदोष नहीं। 💐वहीं, 'सारावली' म💐ें भी 'सर्पयोग' का ही वर्णन मिलता है। यहां भी काल और दोष शब्द नहीं मिलता। पुराने मूल या वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।💐💐

💐हालांकि आधुनिक ज्योतिष में काल सर्प दोष को पर्याप्त स्थान मिला हुआ है। फिर भी विद्वानों की राय इस बारे में एक जैसी नहीं है। आधुनिक ज्योतिष मानता है कि मूलत: सूर्य, चंद्र और गुरु के साथ राहू के होने को कालसर्प दोष बनता है। 💐

💐राहू का अधिदेवता 'काल' है तथा केतु का अधिदेवता 'सर्प' है। इन दोनों ग्रहों के बीच कुंडली में एक तरफ सभी ग्रह हों तो 'कालसर्प' दोष कहते हैं। राहू-केतु हमेशा वक्री चलते हैं तथा सूर्य चंद्रमार्गी। 💐मानसागरी ग्रंथ के चौथे अध्याय के 10वें श्लोक में कहा गया है कि शनि, सूर्य व राहु लग्न में सप्तम स्थान पर होने पर सर्पदंश होता है।💐 💐

💐 परन्तु आज कल के विदवान ज्योतिषाचार्य ने  इस दोष को इस तरह से मण्डन आरम्भ करदिया है कि जातक इस दोष मात्र से बहुत भयभीत हो जाता है और इसके उपाय करने के लिये बहुत धन व्यर्थ में ठगा देता है 💐

💐 क्या ये योग 💐 राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह जातक  की कुंडली मे होने से निर्मति होता है     या 

केतु ओर राहु के मध्य सभी ग्रह होने से भी होता है  💐 ये भी स्थिति स्पष्ट नही है??

💐 अतः इस योग को इतना विकराल रूप से प्रस्तुत करते है कि जातक अत्यंत भयभीत होकर इन लोगो को आसानी से अपनी कमाई का पैसा लुटा दे !

💐 अतः प्राचीन शस्त्रों में सर्प दश नाम से जो योग था उसको मोडिफाई करके 💐
कालसर्प 💐 का नाम दे दिया है  इससे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नही है

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