ब्राह्मण_कौन_है?
#ब्राह्मण_कौन_है?
ब्राह्मण वह है जो वशिष्ठ के रूप में केवल अपना एक दंड जमीन में गाड़ देता है, जिससे विश्वामित्र के समस्त अस्त्र शस्त्र चूर चूर हो जाते हैं और विश्वामित्र लज्जित होकर कह पड़ते हैं-
धिग् बलं क्षत्रिय बलं, ब्रह्म तेजो बलं बलम्।
एकेन ब्रह्म दण्डेन, सर्वास्त्राणि हतानि मे।।
(क्षत्रिय के बल को धिक्कार है। ब्राह्मण का तेज ही असली बल है। ब्राह्मण वशिष्ठ के एक ब्रह्म दंड ने मेरे समस्त अस्त्र शस्त्र को निर्वीर्य कर दिया)
ब्राह्मण वह है जो परशुराम के रूप में एक बार नहीं, 21 बार आततायी राजाओं का संहार करता है। जिसके लिए भगवान राम भी कहते हैं-
विप्र वंश करि यह प्रभुताई।
अभय होहुँ जो तुम्हहिं डेराई।
ब्राह्मण वह है, जो दधीचि के रूप में अपनी हड्डियों से बज्र बनवाकर, वृत्तासुर का अंत कराता है।
ब्राह्मण वह है, जो चाणक्य के रूप में, अपना अपमान होने पर धनानन्द को चुनौती देकर कहता है कि अब यह शिखा तभी बँधेगी जब तुम्हारा नाश कर दूंगा... और ऐसा करके ही शिखा बाँधता है।
ब्राह्मण वह है जो अर्थ-शास्त्र की ऐसी पुस्तक देता है, जो आज तक अद्वितीय है।
ब्राह्मण वह है जो पुष्य-मित्र-शुंग के रूप में मौर्य-वंश के अंतिम सम्राट् बृहद्रथ को, तलवार उठाता है, और स्वाहा कर देता है, और भारत को बौद्ध होने से बचा लेता है। यवन आक्रमण की ऐसी की तैसी कर देता है।
ब्राह्मण वह है, जो मण्डन मिश्र के रूप में जन्म लिया और जिसके घर पर तोता भी संस्कृत में दर्शन पर वाद-विवाद करते थे। अगर पता नहीं है तो यह श्लोक पढो, जो आदि शंकर के मण्डन मिश्र के घर का पता पूछने पर उनकी दासियों ने कहा था-
स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं, कीरांगना यत्र गिरा गिरंति।
द्वारस्थ नीण अंतर संनिरुद्धा, जानीहि तं मण्डन पंडितौकः।
(जिस घर के दरवाजे पर पिंजरे में बन्द तोता भी वेद के स्वतः प्रमाण या परतः प्रमाण की चर्चा कर रहा हो, उसे ही मण्डन मिश्र का घर समझना।)
ब्राह्मण वह है जो शंकराचार्य के रूप में 32 वर्ष की उम्र तक वह सब कर जाता है, जिसकी कल्पना भी सम्भव नहीं है। अद्वैत वेदान्त, दर्शन का शिरोमणि।
ब्राह्मण वह है जो अस्त-व्यस्त अनियंत्रित भाषा को, व्याकरण-बद्ध कर पाणिनि के रूप में अष्टाध्यायी लिख देता है।
ब्राह्मण वह है, जो पतंजलि के रूप में अश्वमेध यज्ञ कराता है, और महाभाष्य लिख देता है।
ब्राह्मण वह है जो तुलसी के रूप में ऐसा महाकाव्य श्री राम चरित मानस, लिख देता है, जो जन जन की गीता बन जाती है।
और बताऊँ ब्राह्मण कौन है?
ब्राह्मण है वह नारायण, जिसने महाराणा प्रताप व उनके भाई शक्ति सिंह के मध्य युद्ध को रोकने के लिए, उनके समक्ष चाकू से अपनी ही हत्या कर दिया था। पता नहीं है तो श्याम नारायण पांडेय का महाकाव्य हल्दी घाटी, प्रथम सर्ग की ये पंक्तियां पढ़ो-
उठा लिया विकराल छुरा सीने में मारा ब्राह्मण ने।
उन दोनों के बीच बहा दी शोणित–धारा ब्राह्मण ने।।
वन का तन रँग दिया रुधिर से, दिखा दिया¸ है त्याग यही।
निज स्वामी के प्राणों की रक्षा का है अनुराग यही॥
ब्राह्मण था वह ब्राह्मण था¸ हित राजवंश का सदा किया।
निज स्वामी का नमक हृदय का रक्त बहाकर अदा किया॥
ब्राह्मण वह है जो श्याम नारायण पांडेय के रूप में जन्म लेकर, हल्दी घाटी, जौहर, जैसे हिंदी के महाकाव्य लिख डाले, जो अपनी दार्शनिकता व वीर रस के कारण अमर है। थोड़ा परिश्रम करो और जौहर के मंगलाचरण की प्रारंभिक पंक्तियाँ ही पढ़ लो, बुद्धि ठीक हो जाएगी-
गगन के उस पार क्या, पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?
दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?
ब्राह्मण वह है जो सूर्य कांत त्रिपाठी के रूप में अवतरित हुआ और अपने साहित्य के निरालेपन, जीवन के अक्खड़पन से निराला बन गया। अमर है निराला की राम की शक्ति पूजा-
बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान-"रघुवर,
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त
तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन।
धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका,
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय,
ब्राह्मण को समझना चाहते हो तो अटल विहारी वाजपेयी के धाराप्रवाह भाषण को सुनिए।भारत रग रग में भर जाएगा।यह भी न हो सके तो सिर्फ ये पंक्तियां पढ़ लीजिये जनाब-
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
आग्नेय परीक्षा की
इस घड़ी में—
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’
ब्राह्मण ने तो भगवान को भी अश्रु बहाने को बाध्य कर दिया था। याद है गरीब ब्राह्मण सुदामा कृष्ण की मित्रता।
महाकवि नरोत्तम दास के शब्दों में-
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।
वर्तमान में स्वामी राम भद्रा चार्य पंडित गिरिधर मिश्र जी अब तक 100 से ज्यादा ग्रंथों के लेखक, 22 भाषाओं के ज्ञाता,संस्कृत में दो महाकाव्य-श्री भार्गव राघवीयम् और गीत रामायनम् लिख चुके हैं।
हिंदी में दो महाकाव्य-अष्टावक्र और अरुंधती।
प्रकृति के सुकुमार कवि, श्री सुमित्रा नन्दन पन्त जी को क्यों विस्मृत करें!
मित्रो!
हमें मंगल पाण्डे को भी नहीं भूलना चाहिए। वही स्वतंत्रता की पहली चिनगारी जलाने वाला वीर ब्राह्मण था।
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं, सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ||
अर्थात्:
अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है ,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है, और पाप से मुक्त करता है, चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है। (आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |
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