चंद्र बारह भाव
चंद्रमा का कुण्डली के बारह भाव में शुभाशुभ होने का क्या है फल
चन्द्रमा का प्रभाव जन्मकुंडली के विभिन्न भाव में भिन्न भिन्न रूप में पड़ता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा का विशेष महत्त्व है। चंद्रमा को वैदिक ज्योतिष में मंत्री पद प्राप्त है एवं चन्द्रमा को मन का कारक कहा जाता है |
जिस प्रकार मन के बिना हम कोई भी कार्य नहीं कर सकते उसी तरह से चन्द्रमा के बिना ज्योतिष शास्त्र अधूरा है। ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार सूर्य राजा है उसी प्रकार चंद्रमा मंत्री है। चंद्रमा हमारे मन और भावना का प्रतीक है। चन्द्रमा का अपना घर कर्क राशि है तथा वृष राशि में चन्द्रमा उच्च का होता है।
चन्द्रमा का स्वभाव बहुत ही संवेदनशील है। इस ग्रह की प्रकृति ठंडी है। ज्योतिष में चन्द्रमा निम्न विषयों का कारक होता है मन,जल, गर्भाधान, शिशु अवस्था, व्यवहार, उत्तर पश्चिम दिशा, माता, दूध, और मानसिक शांति, विदेश यात्रा इत्यादि का कारक है।
चंद्रमा जन्मकुंडली में स्थित बारह भावो में किस प्रकार का फल देता है। वैसे यह फल सामान्य फल ही होगा क्योकि ग्रह का फल अन्य ग्रह के दृष्टि या साथ होने पर बदल देते हैं जब चंद्रमा किसी घर में अकेला बैठा होता है और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि नहीं है तो जातक सौम्य प्रकृति का होगा परन्तु यदि चन्द्रमा मंगल के साथ बैठा है या दृष्टि सम्बन्ध है जातक झगड़ालू या क्रोधी स्वभाव का हो जायेगा।
वह व्यक्ति पराक्रमी और राजवैभव को प्राप्त करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति बहुत ही भावुक और संवेदनशील होता है। व्यक्ति सुन्दर और चंचल होता है। व्यक्ति में सृजनात्मक तथा रचनात्मक कार्यों मे विशेष रूप से रुचि होती है। प्रथम भाव का चन्द्रमा व्यक्ति को कल्पनाशील बना देता है।
चन्द्रमा प्रथम भाव में विदेश यात्रा देता है | ऐसे जातक को घूमना फिरना एवं भ्रमण करना पसंद होता है। ये जातक अपने पुरे जीवन काल में अनेक यात्रायें करता है। विदेश यात्रा भी करता है। यदि व्यक्ति गांव का रहने वाला है तो अपने देश या राष्ट्र के बड़े नगर की यात्रा अवश्य करता है। चन्द्रमा यदि द्विस्वभाव राशि में हो तो ये सुख अवश्य ही प्राप्त होता है। क्योंकि ऐसा जातक प्रवासी, अस्थिर बुद्धि, विलासी, शान्त, दयालु मिलनसार स्वभाव का, मोहक, उदार और सज्जन व्यक्ति होता है। यह स्त्रियों और स्त्री हे तो पुरुषों को एवं मित्रों का प्यारा होता है। ऐसा जातक सामाजिक कार्यो में रूचि लेता है। और समाज में विशेष रूप से नीच वर्ग के लोगों में इसे अच्छा सम्मान मिलता है।
ऐसे जातक को जल/पानी से डर लगता है और उसे पानी जैसे नदी, तालाब समुद्र आदि से बचकर रहना चाहिए। ऐसे जातक को रोग से भी बहुत डर लगता है। इस भाव का चन्द्रमा यदि बलवान हो तो व्यक्ति बहुत ही चतुर और धूर्त होता है। इसे स्त्री /पत्नी वियोग भी झेलना पड़ सकता है।
प्रथम भाव यदि कर्क,वृष, अथवा मेष लग्न का हो तो मनुष्य चतुर, रूपवान, कामी,धनी, ऐश्वर्य से युक्त तथा कई प्रकार के भोग को भोगने वाला होता है। अन्य राशियों में हो तो व्यक्ति मुर्ख,रोगी तथा निर्धन हो सकता है। इसे पशुओं से चोट लगने का भय भी होता है। इस प्रकार के जातक को खासी, श्वासरोग तथा वातरोग होने की प्रबल सम्भावना होती है।
उस जातक के घर में लक्ष्मी का सदा वास होता है। ऐसा जातक स्त्री या पुरुष सुन्दर नेत्रों वाली या वाला होता है। ऐसे जातक की विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोगो में आशक्ति अधिक होती है। ये भी कहा जाता है की उसके घर में प्रसन्नतापूर्वक लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करती है।
लग्न से द्वितीय भाव या स्थान को धन भाव या धन स्थान कहा जाता है जिस कारण यदि चन्द्रमा यहाँ उच्च का या शुभ भाव का स्वामी होकर बैठा है तो उस जातक को अवश्य ही धनवान बनाएगा इसमें कोई संदेह नहीं। चन्द्रमा अधिकांशत: ही लाभ देगा। जातक की आय अच्छी होगी साथ ही धन की बचत भी कर पाएंगा। किन्तु यह सब कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर रहेगा यदि चन्द्रमा अशुभ ग्रहों से युक्त होगा तो चन्द्रमा के फलादेश में कमी होगी। मनुष्य की आर्थिक स्थिति में समय-समय पर उतार-चढाव भी सम्भव है। ऐसे जातक का परिवार बहुत बड़ा हो सकता है।
इस भाव में चंद्रमा वाणी तथा नेत्र दोष भी दे सकता है।
यदि चन्द्रमा ठीक स्थिति में नहीं हे तो जातक की प्राथमिक शिक्षा में कुछ व्यवधान हो सकता है इसका मुख्य कारण है कि दूसरा भाव प्राथमिक शिक्षा का भी होता है। ऐसा देखा गया है कि चन्द्रमा यदि षष्ठ भाव, अष्टम भाव तथा बारहवें भाव का स्वामी होकर द्वितीय भाव में स्थित है तो जातक को वाणी तथा नेत्र दोष होता है। साथ ही पारिवारिक क्लेश भी बना रहता है।
यदि चन्द्रमा द्वितीय भाव में वृश्चिक या मकर राशि में हो तो अच्छा फल नहीं मिलता है। ऐसे जातक को धन के सुख में कमी होती है। जातक स्वभाव से ही खर्चीला होता है। बार-बार नुकसान के अवसर आते रहते हैं। वृश्चिक राशि में चन्द्रमा नीच का होता है ऐसा जातक अपना नुक्सान स्वयं के किसी गलत निर्णय लेने के कारण करता है। यदि चन्द्रमा वृष अथवा कर्क राशि का हो तो धन की प्राप्ति होती ही है।
उपाय:-
इसलिए जातक को परदेश प्रवास अवश्य करना चाहिए। यदि जातक विदेश में जाता है तो उसका भाग्योदय अवश्य होगा। ऐसे व्यक्ति को किसी न किसी सामाजिक संस्था से जुड़कर अवश्य ही रहना चाहिए।
ऐसा जातक अपने पराक्रम से धन लाभ प्राप्त करता है। उसे अपने भाई बंधुओ से अधिक सुख मिलता है। उसकी प्रवृत्ति धार्मिक होती है। उसका आदर सम्मान होता है। उसे कलात्मक गुण प्राप्त होता है।
जातक को जिज्ञासु बनाता है। वह सभी विषय वस्तु की जानकारी रखने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति बिना किसी कारण के खर्च नहीं करना चाहता है। बचत करना उसका स्वाभाविक गुण होता है। अपने शान-शौकत के लिए खर्च करने में कोई संकोच भी नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति बहुत ही शौक़ीन होता है और इनका शौक भी परिवर्तनशील होता है। यही नहीं यदि व्यवसायी है तो व्यवसाय में भी बार-बार परिवर्तन होता रहता है।
ऐसे जातक को यात्राएं बहुत पसंद होती हैं, यात्रा जातक के जीवन का एक हिस्सा बन जाती है। चन्द्रमा इस स्थान में बैठकर भाग्य स्थान को देखता है अर्थात अपने भाग्य वृद्धि के लिए व्यक्ति छोटी-छोटी यात्रा अवश्य करता है। ऐसा जातक लोक प्रसिद्धि पाने के लिए भी प्रयासरत रहता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा कुछ नया करना चाहता है। भविष्य के लिए योजनाए बनाना तो इनके लिए साधारण खेल होता है। इनमें एक कमी ये होती हे की जातक अपने विचारों को दूसरे के सामने सही तरीके से अभीव्यक्त नहीं कर पाता है।
जातक को भाई-बहन का सुख अवश्य ही मिलता है। ऐसे जातक का पड़ोसियों से सम्बन्ध अच्छा रहता है और उनसे लाभ भी मिलता है। जीवन काल के 28 वें वर्ष से कीर्ति और प्रसिद्धि प्रारम्भ हो जाती है।
यदि तृतीय भाव में चन्द्रमा पापग्रह जेसे :- मंगल,शनि,राहु और केतु की राशि में हो तो जातक बकवास या बक-बक करने वाला होता है। भाई-बंधुओ को भी हानि पहुँचाता है।
चन्द्रमा यदि शुभ ग्रह जेसे :- गुरु, चन्द्र, शुक्र, बुध की राशि में हो तो मनुष्य सर्व सुख भोगने वाला होता है। और चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृष का हो या अपनी स्वराशि कर्क का हो तो व्यक्ति सभी प्रकार से धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। वह काव्य शास्त्र में भी रूचि लेने वाला होता है।
ऐसे जातक को पुत्र, स्त्री, धन और विद्वान होने का सुख प्राप्त होता है। जातक का सर्वत्र गुणगान होता है। समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है। समय-समय पर दान देते रहता है। सभी प्रकार के सुख को प्राप्त करने वाला होता है। इसके मित्र अच्छे होते है। ऐसे जातक को वाहन सुख अवश्य ही मिलता है।
ऐसा जातक सरकार में मंत्री पद या सरकारी नौकरी को प्राप्त करता है ,मंत्री पद या नौकरी चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। ऐसा जातक स्वभाव से दयालु, परोपकारी और भावुक होता है। उसमे आत्मविश्वास तथा संतोष कुछ अधिक होता है।
साथ में ऐसा जातक मातृभक्त होता है और माता से उसे संपत्ति प्राप्त होती है तथा माता के कारण ही उसका भाग्योदय भी होता है।
और ऐसा जातक जल से संबंधित कोई कार्य करता है तो वह अचूक धन सम्पत्ति प्राप्त करता है। समुद्री व्यापार से अर्थात जहाजों के द्वारा सामान लेकर दूसरे देश में बेचकर धन कमाता है।
ऐसे व्यक्ति को आयात-निर्यात का कार्य करना चाहिए। ऐसा जातक रत्नो के कारोबार से भी बहुत धन कमाता है।
चतुर्थ भाव में वृष राशी का चंद्रमा जातक को ससुराल से धन संपत्ति प्राप्त करवाता है। ऐसे जातक का भाग्योदय विवाह के बाद ही होता है।
यहाँ चन्द्रमा मेष,सिंह,धनु, का हो तो पैतृक सम्पत्ति नहीं मिलती या उसे किसी कारणवश छोड़ना पड़ेगी |
अंतः जिस भी जातक के कुंडली में चन्द्रमा चतुर्थ भाव में हो उसे अपनी माता को देवी मानकर प्रतिदिन उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। किसी भी कार्य करने से पहले माता का आशीर्वाद लेना न भूलें। माता के आशीर्वाद से आपके बिगड़ते काम बन जाएंगे। अपनी माता का दिल कभी भी नहीं दुखाना चाहिए।
ऐसे जातक को संतान सुख अवश्य होता है। जातक की संतान ख़ुशी प्रदान करने वाली होगी। जातक को कन्या रत्न का सुख अवश्य मिलेगा। जातक अपनी संतान एवं पत्नी से बहुत प्रेम करेगा। जातक तेजस्वी और बलवान होगा। सभी कार्यो में सावधान रहने वाला होगा। यदि चन्द्रमा शुभ स्थिति में है तो जातक उत्तम आचरण वाला होगा।
ऐसा जातक प्रेमी या प्रेम के पुजारी कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जातक का मौज मस्ती करने वाला स्वभाव होगा बुद्धिमान होने के साथ-साथ साहसी भी होगा।
ऐसा जातक जितेन्द्रिय, सत्य बोलने वाला, सदैव प्रसन्न रहने वाला होता है। और विविध वस्तुओ को संग्रह करने वाला होता है।
अशुभ चन्द्रमा अवसाद या मानसिक रोग देता है।
पंचम भाव का चन्द्रमा यदि पाप प्रभाव में हो तो जातक दुष्ट बुद्धि वाला हो जाता है। कोई भी कार्य बिना रुकावट के नहीं हो पाता है। जातक जिद्दी स्वभाव का निराशावादी हो जाता है। नकारात्मक विचारो के कारण कभी-कभी मानसिक रोग से प्रभावित हो जाता है।
यदि चन्द्रमा वायव्य तत्त्वीय राशि में है तो पुत्र सुख में कमी होती है। चन्द्रमा यहाँ जुड़वा संतान भी देती है। यदि चन्द्रमा पृथिवी तत्त्व राशि में है तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है और यदि अग्नि तत्व राशि में चन्द्रमा है तो शिक्षा अधूरी रह जाती है। वायु तत्व राशि में चन्द्रमा है तो जातक कम बोलने वाला तथा अधिक कार्य करने में विशवास रखता है। जातक की पत्नी रूपवान तथा गुणवान होती है।
ऐसे जातक सेवक के रूप में कार्य करते हैं। यहाँ चन्द्रमा कभी अच्छा फल नहीं दे पाता है इसका मुख्य कारण है की षष्टम भाव रोग, ऋण,रिपु, लड़ाई-झगड़ा,शोक आदि का भाव होता है। वेसे माता के साथ इनका संबंध सामान्य ही होता है यदि माता रोग दुख या किसी अन्य कारण से परेशान हैं तो व्यक्ति इससे बहुत ही दुखी होता है और यथा शीघ्र अपनी माता के कष्टों को दूर करने का प्रयास करता रहता है।
षष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा व्यक्ति को मानसिक संताप देता है। ऐसा व्यक्ति सदा कुछ न कुछ सोचता रहता है और इसी कारण इनके चेहरे पर चिन्ता की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती रहती है। ऐसा व्यक्ति बाहर से सख्त दिखने का प्रयास करता है परन्तु मन से बहुत ही भावुक होता है।
यही नहीं समाज तथा परिवार में हो रहे सामाजिक विषमताओं के प्रति भी अत्यंत ही संवेदनशील होता है किन्तु आवाज़ उठाने से डरता है। न्याय की बात तो करता है परन्तु न्याय के लिए लड़ नही पाता है।
इस स्थान का चन्द्रमा जातक को अपने कार्य से कभी भी सन्तुष्ट नहीं होने देता यदि व्यक्ति नौकरी करता है तो बार-बार नौकरी में बदलाव करता है। जातक अचानक कोई निर्णय नहीं ले पाता है यदि कोई निर्णय लेना है तो अपने इष्ट मित्रों से पूछने के बाद ही कोई फैसला कर पाता है। वेसे जातक शत्रुओं की पहचान बड़े आसानी कर लेता है।
षष्टम भाव में चन्द्रमा का सम्बन्ध लग्नेश तथा कर्मेश से सम्बन्ध बनता है जो जातक को एक अच्छा डॉक्टर बना सकता है। यदि किसी डॉक्टर की कुंडली में इस भाव में चन्द्रमा है तो वह मान-सम्मान और यश को अवश्य ही प्राप्त करता है। साथ ही एक अच्छा समाज सेवक बन सकता है। सामाजिक कार्यक्रम में जातक का बहुत ही मन लगता है। यदि कोई भाई-बंधु किसी काम के लिए कहता है तो जातक मना नहीं कर पाता है।
ऐसा जातक सदा पेट से संबंधित रोग से पीड़ित रहता है। आंखों की बीमारी आंखों की पुतली का सिकुड़ जाना या आंखों में दर्द इत्यादि की शिकायत होने लगती है।
जातक विदेश जाने की इच्छा रखता है तो कुछ ही प्रयास से जातकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। सप्तम भाव का चन्द्रमा यहाँ बैठकर कुंडली में यात्रा योग बनाता है इसी कारण जातको यात्रा करना भी अच्छा लगने लगता है। जातक नौकरी कर रहा हैं तो उसको किसी न किसी कारणवस यात्रा करना पड़ता है। और ऐसे जातक को अपने जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है। जातक रतिक्रिया में प्रवीण होता है तथा परस्त्रीगामी भी होता है। यदि चन्द्रमा बली है तो दो स्त्रियों का सुख भी मिलता है। यदि पूर्ण बली चन्द्रमा इस भाव में हे तो जातक स्वयं भी सुन्दर होता है और उसकी पत्नी भी सुन्दर होती है। और ये शीघ्र ही वैवाहिक बंधन में बंध जाते हैं।
सप्तम भाव का चन्द्रमा जातक को नम्र और मीठी वाणी बोलने वाला बनाता है। ऐसे जातक कंजूस होते हैं। इनकी वाणी में गंभीरता होती है। इनमे नेतृत्व करने की क्षमता होती है। जातक बहुत ही सुसंस्कृत तथा सुसभ्य होता है उच्च श्रेणी के लोगों के साथ रहना पसंद भी करते हैं। जातक पहले परेशान हो जाता हैं उसके बाद अपने धैर्य का परिचय देता हैं।
सप्तम स्थान में स्थित चन्द्रमा यदि स्त्री राशि का हो तो कफ, सांस के रोग और रक्त दूषित होता है।
अधिकतम इनको दिन में एक ही नासिका से सांस लेना पड़ता है। भोजन के बाद रात को नाक बंद होना तो इनके लिए आम बात है।
जातक एक व्यवसायी व्यक्ति होता है जातक को व्यापार में सफलता भी मिलती है। जातक के सप्तम में चन्द्र हो वह जातक यदि किराना, दुध, दवाइयों, मसाले या अनाज का व्यापार करें ओर होटल, बेकरी, इन्श्योरेंस या कमीशन एजेंट का काम करें तो लाभ मिलेगा। जातक साझेदारी में व्यवसाय कर सकते हैं। परन्तु साझेदारी में भी जातक सदा परिवर्तन का प्रयत्न करते रहते हैं। वैसे भी जिस प्रकार जातक एक स्थान पर ज्यादा दिन तक रूकना पसंद नहीं है उसी प्रकार जातक एक ही व्यवसाय पर आश्रित नहीं रहना चाहता है। जातक वकील बन सकता है व्यवसाय के रूप में वकालत को अपना सकते हैं। किसी कम्पनी में जातक मार्केटिंग का काम कर सकता है और इस कार्य में जातक बहुत उन्नति कर सकता है साथ ही मान सम्मान भी मिलता रहेगा।
अष्टम भाव में चंद्रमा अशुभ माना गया है। जिस भी जातक की जन्म कुंडली में चन्द्रमा आठवें भाव में है तो जातक जन्म समय से ही किसी न किसी रोग से पीड़ित रह सकता है।
इसका मुख्य कारण है कि ज्योतिष शास्त्र में अष्टम भाव को, मृत्यु तथा बाधा उत्पन्न करने वाला भाव माना गया है।
अष्टम भाव का चन्द्रमा नेत्र रोग देता है। शीतज्वर की पीड़ा से भी पीड़ित होता है। शरीर में वायु प्रधान रोग होने की भी सम्भावनायें रहती है। यदि अशुभ ग्रहों के प्रभाव में भी चन्द्रमा है तो जातक को मिर्गी या मूर्छा रोग होता है यह भी देखा गया है कि यदि मूर्छा या मिर्गी रोग से पीड़ित नहीं भी है तो उस जातक के अंदर क्रोध बहुत होता है कभी कभी क्रोध में ही मूर्च्छा वाला रूप दिखाई देने लगता है।
यदि चन्द्रमा छठे या आठवें भाव में बैठा है और कोई पाप ग्रह के प्रभाव में हो तो व्यक्ति अल्पायु होता है। सामान्यतः ज्योतिषी किसी अन्य योग को देखें बिना ही मृत्यु या बहुत अरिष्ट के रूप में अपना निर्णय सुनाने लगते हैं जो कि ठीक नहीं है।
मानसागरी के अनुसार यदि लग्न से अष्टम भाव में चन्द्रमा यदि शुभ ग्रह गुरु, बुध या शुक्र के साथ या द्रिस्टी में हो तो चन्द्रमा मृत्यु से रक्षा भी करता है। अत: यह स्पष्ट है कि अष्टम चन्द्र न केवल मृत्यु देता है अपितु दीर्घायु भी प्रदान करता है।
यदि चन्द्रमा मेष,सिंह तथा धनु राशि में हो तो व्यक्ति को किसी न किसी रुप में धन का लाभ होता ही है।
मिथुन तुला अथवा कुम्भ में चन्द्र हो तो जातक को पत्नी अच्छी मिलती है। और दाम्पत्य जीवन में नोकझोक चलती रहती है जिसके कारण जातक सदा पीड़ित रहता है।
अष्टम में कर्क, वृश्चिक और मीन का चन्द्रमा हो तो मनुष्य योग अभ्यास करने वाला, उपासक तथा वेद वेदान्त (आध्यात्म) में रूचि रखने वाला होता है।
जातक को विशाल वाहन का सुख मिलता है। चन्द्रमा अपने उच्च राशि में है तो दीर्घायु होता है। जातक को स्त्री के कारण अपने बंधू बांधव का त्याग करना पड़ता है या उनसे अनबन बनी रहती है।
ऐसे व्यक्ति को नदी, तालाब, कुआ आदि से बचकर रहना चाहिए मृत्यु भय होता है।
यदि ऐसा जातक बुद्धि-युक्त कार्य करता है तो सफल होता है।
नवम भाव में चंद्रमा है तो जातक भाग्यनिर्माता, लोकप्रिय, धार्मिक, विद्वान और साहसी एवं भाग्यशाली होगा।
जातक में कुछ विशेष कार्य करने की क्षमता होती है अत: जातक अपनी क्षमता को अवश्य पहचाने| जातक आध्यात्मिक व्यक्ति होता है हमेशा धर्म का समर्थन देने वाला होता है। दान पुण्य जैसे कार्यों के प्रति आपकी पूरी आस्था है। दान-पुण्य से जातक के कार्य का विस्तार होता है। कुछ हद तक जातक जिद्दी स्वभाव का व्यक्ति होता है। जातक सदा न्याय का पक्ष लेता है और कर्मठ व्यक्ति होता है।
जातक का कर्म सिद्धांत युवा अवस्था से ही आरंभ हो जाता है। आयु के 22 वें वर्ष के बाद से ही जातक की भाग्योन्नति आरंभ हो जाती है। जातक जहाँ भी कार्य करेगा देर सबेर सफलता प्राप्त कर ही लेगा। जातक केवल मात्र लोगों के द्वारा ही सम्मानित नहीं होगा बल्कि सरकार या सरकार से जुड़ा कोई सम्मानीय व्यक्ति जातक को सम्मानित करेगा।
जातक अपने माता-पिता के प्रति समर्पित रहता है। जातक की संतान बहुत ही लायक होगी और उसके प्रति समर्पित भी रहेगी। जातक अपने जीवन में कई बार विदेश यात्राएं करता है और अस्पताल, एवं जलाशयों के माध्यम से समाज की मदद करता है। जातक अपने जीवन काल में प्रचुर मात्र में धन अर्जित करता है। जातक को यात्राएं करने का शौक हो या न हो छोटी बड़ी यात्रा तो करनी ही पड़ती हैं।
नवम भाव में स्थित चंद्रमा जातक को शारीरिक रूप से स्वस्थ्य करता है। यदि अशुभ ग्रहों तथा अशुभ भावेश की दृष्टि है तो कोई न कोई रोग जेसे सर्दी-खांसी, या जोड़ के दर्द से दुखी हो सकता है। यदि चन्द्रमा जलीय राशि का है और अशुभ ग्रहों से सम्बन्ध भी बना रहा है तो क्षय रोग से पीड़ित हो सकता हैं। किन्तु बचपन में जातक शारीरिक रूप से चुस्त-दुरूस्त और बलिष्ठ होगा।
जातक को पद,प्रतिष्ठा दोनों दिलाता है। ऐसा व्यक्ति धर्मात्मा जेसा होता है। इसे अपने बन्धु बान्धवों से बहुत सुख प्राप्त होता है। जातक का बचपन कुछ कष्ट में बीतता है किन्तु यौवन में सब प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है। यदि जातक के दो पुत्र है तो ज्येष्ठ (बड़े) पुत्र से कष्ट की संभावना बनी रहती है।
जातक बुद्धिमान व्यक्ति होता किन्तु साथ ही दयालु और निर्मल स्वाभाव का भी होता है। जातक का स्वभाव संतोषी होता है। जातक बहुत ही कार्यकुशल व्यक्ति होता है इसलिए जातक जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करता है। जातक सकारात्मक विचार से युक्त होता है। दशम भाव में चन्द्रमा जातक को सर्वत्र विजय प्राप्त करवाता है। जातक जिस काम को भी हाथ में लेता है उस काम में सफलता मिलती है। यदि कोई अशुभ ग्रहों कि दृष्टि या अशुभ ग्रह की युति से युक्त न हो तो ऐसा जातक सदा शुभ कर्मों में लगा रहता है।
ऐसे जातक की समाज एवं कार्यस्थल पर लोकप्रियता भी बहुत होती है। जातक अपनी वाणी से व्यापार में वृद्धि करता है।
जातक अपने व्यापार और व्यवसाय के मामलों में भी अत्यंत कुशल होता है। जातक नौकरी भी ऐसी करता है जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जनता से सम्बन्ध बनता हो। जनता जातक से प्रेम करती है और जातक भी जनता से प्रेम करता है। जातक को सरकार से धन की प्राप्ति होती है अर्थात् जातक अधिकतम सरकारी नौकरी करता है। जातक को अपने व्यवसाय में कई बार परिवर्तन करना पड़ता है। जातक को कई बार विदेश यात्रा करने का भी अवसर मिलता है। माता के साथ जातक के संबंध अच्छे रहते हैं यही नहीं बंधू बांधव भी जातक के प्रेमी होते हैं।
दशम भाव का चन्द्रमा शत्रु क्षेत्री हो या अशुभ ग्रहों से युक्त हो तो मनुष्य सर्दी-खांसी जैसे रोग से पीड़ित रहता है। ऐसे जातक का शरीर निर्बल होता है। दूषित चन्द्रमा यहाँ अनेक प्रकार के रोग को जन्म दे सकता है। यदि चन्द्रमा नीच का होकर दशम भाव में स्थित है और अशुभ ग्रहों से भी सम्बन्ध बन रहा है तो मनुष्य अपने व्यवसाय को लेकर अवसाद जैसे घातक रोगों का शिकार हो जाता है।
जातक को शुभ फल देता है। यह स्थान धन स्थान है अतः धन स्थान में चन्द्रमा का होना जातक को अवश्य ही शुभता प्रदान करता है यदि चन्द्रमा अशुभ ग्रहों से युक्त न हो तो ही शुभ फल प्रदान करेगा। यदि किसी प्रकार से अशुभ ग्रह शनि,मंगल आदि के साथ हो या उसके घर में हो या इन ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसी स्थिति में चन्द्र का शुभ फल समाप्त हो जाता है और अशुभ ग्रहो के फल के अनुसार अशुभ फल देने मंप समर्थ हो जाता है।
जिस भी जातक की कुंडली में चन्द्रमा एकादश भाव में स्थित है तो वह जातक स्वभावतः चंचल होता है। सदा कुछ न कुछ सोचता रहता है। जातक योजना बहुत बनाता है और प्रत्येक योजना का सम्बन्ध लाभ देने वाला होता है ऐसा जातक बिना लाभ के कोई भी कार्य करना नहीं करता है। ऐसा व्यक्ति विदेश अथवा अन्य प्रदेश में रहना या जाना अधिक पसंद करता है। जातक प्रत्येक भौतिक सुख-सुविधाओं का भरपूर उपभोग करना चाहता है और उनका उपयोग करता भी है।
जातक एक धनवान और ईमानदार व्यक्ति होता है| जातक एक दीर्घायु व्यक्ति है। जातक गुणवान और संतान का सुख प्राप्त करने वाला होता है। जातक नौकर चाकर से युक्त अपनी संतान के साथ प्रसन्नता पूर्वक रहता है। जातक की संतान बालक की अपेक्षाकृत कन्या अधिक हो सकती हैं।
एकादश भाव में चन्द्रमा जातक को धनि,पुत्रवान, दीर्धायु वाला सुन्दर, नौकर-चाकर वाला, वीर, कांतिमान, मनस्वी,होता है। ऐसा जातक विलासी जीवन व्यतीत करता है। वह बहुत मेहगें वाहनों का सुख भोगने वाला होता है। धन सम्पति के मामले में बहुत समृद्ध होता है। वह अपने जीवन काल में सभी सुख सुविधाओं का उपभोग करता है।
जातक समाज में मान-सम्मान प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला रहेगा। ऐसा जातक सरकारी नौकरी करते हुये भी राजकार्यो के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी रखता है। राजनैतिक व्यवस्था में भी जातक भागीदारी निभाने में कुशल होता है। जातक राजनीति में भाग्य परखना चाहता है तो जातक को इसमें सफलता मिल जाती है। जातक को सरकारी काम करने का अवसर भी मिल जाता है। साथ ही सरकार की ओर से सम्मान और पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति हो जाती है। जातक किसी स्वमंसेवी संस्था के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बना सकता है।
ये जातक एक विशेष सलाहकार भी हो सकता है इसका मुख्य कारण है की एकादश स्थान में बैठकर चन्द्रमा पंचम स्थान को देखता है और यह स्थान बुद्धि तथा त्रिकोण का भाव है यही कारण है की वह सलाह देने में समर्थ हो जाता है। एकादश भाव में स्थित चन्द्रमा जातक को बुद्धिजीवियों की श्रेणी में ले जाता है।
एकादश भाव में अशुभ चन्द्रमा हो तो बुध से संबंधित कार्य न करें,शनिवार के दिन मकान की खरीद बिक्री या मकान निर्माण जैसे कार्य नहीं करें। ऐसा जातक यदि दूध का दान या मंदिर दूध में चढ़ाये तो धन-धान्य की वृद्धि होती है।
जातक यह को शुभ कम अशुभ फल ज्यादा देता है। बारहवां भाव व्यय तथा मोक्ष भाव होने से इस भाव में चंद्रमा व्यय एवं हानि का सूचक है। जिस जातक के जन्मलग्न से बारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो दुर्बल शरीर वाला होता है। यह जातक रोगी,क्रोधी और दरिद्र होता है। चन्द्रमा यहां अपने घर का हो या गुरु अथवा बुध की राशि में हो तो जातक इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला, दान देने वाला,सुन्दर शरीर वाला और सभी प्रकार के सुख भोगने वाला हो जाता है। और चन्द्रमा अशुभ हो तो जातक नीच प्रवृत्ति वाले लोगों के साथ मित्रता रखने वाला होता है।
बारहवें भाव (व्यय भाव) में चन्द्रमा होने से धन का नाश होता है। ये मंदाग्नि रहती होता है और भूख कम लगती है। घर में क्लेश बना रहता है। जातक के आँखों में सदा विकार बना रहता है। जातक का जुडाव किसी अस्पताल या धार्मिक संस्थान के साथ हो जाता है।
व्यय भाव में चंद्रमा जातक को चिंतनशील व्यक्ति बना देता है जातक को एकांत में बैठकर सोचने के लिए बाध्य करता है और जातक अनुभव भी करता है की यह उसके लिए ठीक नहीं है। जातक एकांत प्रिय व्यक्ति हो जाता है और जातक सोचता है की मैं जैसा चाहूं वैसा ही हो और इसके लिए जातक भरपूर प्रयत्न भी करता है।
यदि किसी कारण जातक पसंद की योजना बनाने में असफल हो जाता है तो तुरंत दुखी भी हो जाता है। जातक मधुरभाषी होता है किन्तु आवश्यकता पड़ जाने पर कठोर वचन का प्रयोग करने में भी जातक परहेज नही करता है।
जातक बहुत खर्चीला हो सकता है यदि किसी शुभ ग्रह का सम्बन्ध है या किसी अन्य ग्रह से कोई सम्बन्ध नहीं है और चन्द्रमा अपने कर्क राशि में या वृष राशि में है तो जातक शुभ कार्यो में ही धन खर्च करता है। किन्तु ठीक इसके विपरीत यदि चन्द्रमा का अशुभ ग्रहों से किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनता है तो जातक अशुभ कार्यो में या अनर्थक कार्यो में खर्च करेगा।
जातक आलसी हो सकता है और कई बार तो आलसीपन के कारण बने बनाये कार्य बिगाड़ भी लेता है। जातक सौंदर्य प्रिय और प्रेममार्गी होता है प्रेम करना और प्रेमी के लिए कुछ भी करना जातक को प्रिय होता है। मौका मिलने पर जातक अंतरंग सम्बन्ध बनाने में भी परहेज नहीं करता है और अशुभ ग्रहों की युति या दृष्टि से सम्बन्ध हो तो सोने पे सुहागा वाली बात सिद्ध हो जाती है। जातक को जीवन में विदेश यात्राएं करने के अवसर भी मिलतें हैं।
बारहवां भाव व्यय(खर्च) का होता है और चन्द्रमा मन का कारक है इसलिए जातक खर्चे को लेकर दुखी रहता है। जातक के शत्रुओं की संख्या अधिक हो सकती है। जातक को अपने जीवन में कई कष्टों से निकलना पड़ता है।
इस भाव में चंद्रमा न केवल धन की हानि ही नहीं करता , ये जातक की आयु की भी हानि करता है। यदि चंद्रमा का सम्बन्ध किसी भी तरह से शनि से बनता है तो कहा गया है कि जातक पूर्व जन्म में अल्पायु में ही मृत हो गया होगा और मृत्यु भी विष खाने से हुई होगी इसका मुख्य कारण है कि शनि विष का कारक है और चन्द्रमा पानी का। इसी कारण यह योग विष के द्वारा मृत्यु का संकेत करता है।
व्यय भाव का चंद्रमा जातक को सृजनात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा जातक कोई न कोई ऐसा काम करना चाहता है जिससे समाज में नाम हो मान– सम्मान मिले। ऐसा जातक कला का धनी होता हैं।
बारहवें भाव में चन्द्रमा होने के कारण जातक को नेत्रों से सम्बंधित पीड़ा हो सकती है। यदि मंगल का किसी तरह सम्बन्ध बन रहा है तो आँख में चोट लग सकती है और उसके कारण नेत्र दोष हो सकता है। वही शनि के साथ योग बन रहा हो तो जातक को काला मोतियाबिंद या रतौधी जैसी बीमारी हो सकती है। यदि राहु से सम्बन्ध बनता है तो संक्रमण के कारण नेत्र दोष होगा। इसके अतिरिक्त कफ से सम्बंधित पीड़ा भी हो सकती है।
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