द्वितीय भाव के कारकत्व

जय श्री बालाजी

द्वितीय भाव के कारकत्व

दूसरा भाव वाणी का है ये तो हमने अच्छे से रट्टा मार रकह जिसलिये बताने की जरूरत ही नही है। जैसी राशी, जैसा ग्रह उस प्रकार की वाणी। शुभ ग्रह तो शुभ मीठी वाणी। पाप ग्रह तो पापी वाणी। कटु वाणी।

धन का है ये भी सबको पता है। लेकिन धन कौनसा। संचय किया हुआ धन। सेविंग का। एकादश का घर है तो वही हो गया।

दुसरो का या अपना पालन पोषण। लग्न से पैदा हुए तो हमारा पालन पोषण भी तो जरूरी है। पालन पोषण होगा परिवार में मतलब परिवार का भाव भी हो गया। अब चूंकि ये पालन पोषण चाहे अपना हो या दूसरे का। पालन पोषण यही से देखेंगे। पीड़ित हुआ तो न तो अपना पालन पोषण ढंग से होगा न हम किस ओर का ढंग से कर पाएंगे।

नाखून का भाव यही है। इसके पीछे का क्या लॉजिक है समझ नजी आया। लेकिन सामुद्रिक शास्त्र में आप पाएंगे कि जातंक के नाखून से बहुत कुछ फलित बताया गायक है तो अब समझ जाओ की द्वितीय भाव का महात्म्य।

खाने पीने का भाव है तो वो सर्व विदित है तो खाने का, खुजाने का, बत्ती बुझाने का ओर सो जाने का। ज्यास्ति टेंशन नही लेने का।

सच ओर झूठ का भाव है। अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे ये पीड़ित हुआ तो पक्का झूठा होगा। राहु का प्रभाव हुआ तो भूल के भी भरोसा न करना। गुरु हुआ तो आंख बंद करके करो भरोसा।

जीभ है ये भाव । तलवार के घाव भर जाए लेकिन जीभ के घाव न भरे।

आंख भी है। खासकर दांयी आंख। शराबी आंखे।

चेहरे का भी भाव है। शुक्र का प्रभाव हुआ तो मजे ही मजजे है।

कपड़े का भी भाव है। शुक्र चन्दर जो ठहरे काल पुरुष के स्वामी। दशमेश से संबंध कपड़े हीरे जवाहरात का काम।

हीरा, तांबा, मणि, मोती सब यही से रो देखेंगे। संचय किये धन का भाव जो है। शुक्र चन्दर का भाव जो है।

हठ का भाव भी यही है। क्यो क्योंकि पकिड़ होक बक्सचे बनके हठ ही तो करते है बचपन मे। तो आप कितने हठी हो इसी भाव से देख लो।

अगरबत्ती ओर धूप भी यही से देखो। अगरबत्ती का काम यही से। घर मे अजबत्ति ज्यादा जले तो इस भाव को बलि समझो। मेने तुझे प्यार किया सरस्वती समझ कर, तेरे बाप ने मुझे जला दिया अगरबत्ती समझ कर।

क्रय विक्रय का भाव मतलब धन का भाव मतलब व्यापार का भाव हुआ कि नही। फाइनेंस का भाव यार।

मीठे मीठे बोल का भाव तो अपने आप हो गया।

दान शीलता का भाव मतलब कितना दान करेंगे। मतलब धन होगा या न होगा भाव पे शुभ ग्रहों का प्रभाव हुआ तो दानशीलता रहेगी।

सहायता का भाव भी है ये। मतलब हम किसी की कितनी हेल्प करेंगे या हमारी कोई कितनी हेल्प करेगा यही से देखेंगे। चतुर्थ का लाभ स्थान है ये ओर चतुर्थ इसका पराक्रम स्थान है। 

मित्रता का भी भाव है ये। बचपन के मित्र तो जगत प्रसिद्ध है।

भाषण या प्रवचन तो अपने आप हो गया।

विद्या का भी भाव माना गया है इसको। चाहे वो परिवार के संस्कार के रूप में मील हो या स्कॉल से। इसीलिए तो गुरु इसका कारक बनाया गया है।

सोना चांदी का भी भाव है ये। गुरु कारक जो ठहरा। शुक्र चन्दर काल पुरुष में तो सोना चांदी हो गए अपने आप।

नाक टेढ़ी है मेढ़ी है। नकल ऊंचा है इसी भाव से देखो। ज्यादा नक़्क़ कोई सिकोड़े तो समझ जाओ पयाप प्रभाव है।

मन की स्थिरता इस भाव को क्यो दी गई है ये समझने वाली बात है। अब देखो चतुर्थ का लाभ भलव है ओर काल पुरुष में चन्द्रमा स्थिर वृषभ राशी में आत्मा के नक्षत्र में परिवार भलव में माता बनकर यहां स्थिर वास करता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात बोलना तो भूल ही गया। लाल किताब हो या पाराशरी मंदिर का भाव भी बताया गया है। मंदिर में जाएंगे कि नही यही भाव बताएगा।

तो मित्रों ये भाव देता है तो लेता बजी मित्रों मारक बनकर। लेता है कि नही लेता मित्रों। मारक भाव भी तो है।

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