विवाह में विलम्ब

.                       * विवाह में विलम्ब *
प्रस्तुत कुंडली एक स्त्री की है जिसकी उम्र 36 वर्ष हो चुकी है और अब तक विवाह नहीं हुआ है, तो बहुत ही संक्षेप में हम केवल विवाह में विलंब का कारण जानेंगे

सप्तम भाव में शुभ ग्रह गुरु स्थित है, और किसी अन्य पापी या क्रूर ग्रह की कोई दृष्टि भी नहीं है तो साधारण रूप से देखने पर विवाह में विलंब का कोई कारण नहीं नजर आता है

इसी तरह से चंद्र लग्न से हम देखते हैं तो सप्तमेश शनि है और वह चंद्र से वह नवम स्थान में स्थित है, यहां भी विलंब का कोई कारण दिखाई नहीं पड़ता है

लेकिन जब जरा गहराई में जा कर देखते हैं तो विवाह में विलंब के कई कारण नजर आते हैं

*  गुरु पंचमेश होने के साथ-साथ इस कुंडली का अष्टमेश भी है
*  सप्तमेश शनि और अष्टमेश गुरु का स्थान परिवर्तन है

*  गुरु की दोनों राशियों में चार पापी ग्रह स्थित है, धनु में सूर्य और मंगल यह दोनों क्रूर ग्रह तो हैं ही,  इनके साथ बैठा हुआ बुद्ध भी पापी बन जाता है, 

*  और मीन राशि में पापी ग्रह शनि स्थित है, इन सभी ग्रहों का प्रभाव गुरु पर पड़ता है कहने का अर्थ यह है कि यहां पर गुरु शुभ ग्रह नहीं रह गया, लेकिन यह गुरु शादी को रोक नहीं सकता है केवल विलंब करवा सकता है

*  चंद्र से सप्तमेश शनि अष्टम स्थान में चला गया है इसका अष्टम में जाना भी विवाह में विलंब का एक कारण है,

*  चंद्र से और लग्न से सप्तमेश शनि पर मंगल की दृष्टि भी है

यह कारण है जो इनका विवाह अब तक नहीं हो सका है लेकिन
लग्न से सप्तम भाव पर गुरु के अलावा अन्य कोई दुष्प्रभाव ना होना
और चंद्र से सप्तम भाव पर चंद्र लग्नेश शुभ चंद्र की दृष्टि होना, क्योंकि पक्ष बल से चंद्रमा बलवान एवं शुभ है

ये दो ऐसे कारण है जो इनके विवाह की पुष्टि करते हैं

तो इनके लिए, सात रत्ती का मोती, कम से कम एक पाठ प्रतिदिन आदित्य हृदय स्तोत्र और 5 माला प्रतिदिन ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करना जरूरी है, 

मोती इसलिए ताकि चंद्र लग्नेश स्वयं चंद्र जो अपनी शुभ दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहा है, वह और बलवान हो सके
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ इसलिए जरूरी है क्योंकि  सूर्य गुरु की राशि में स्थित है जो गुरु सप्तम भाव में है, यह सूर्य पृथकतावादी ग्रह है, इसके कारण गुरु में अलगाव का प्रभाव आ जाता है जिससे विवाह में विलंब हो रहा है

चंद्र कुंडली का लग्नेश चंद्रमा स्वयं है और लग्न में ही स्थित होकर सप्तम भाव को दृष्ट करता है,   चंद्रमा को और बलवान करने के लिए चंद्रमा के अधिदेवता भगवान शिव हैं, गुरु जो सप्तम भाव में स्थित है, गुरु के अधिदेवता भी भगवान शिव हैं, 
यह सभी उपाय इन्हे करने चाहिए, आने वाले समय में इनका विवाह निश्चित है

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