भारतीय ज्योतिष अनुसार पूर्व जन्म में मृत्यु के समय जो वासनायें या इच्छायें अतृप्त रह जाती है ,
भारतीय ज्योतिष अनुसार पूर्व जन्म में मृत्यु के समय जो वासनायें या इच्छायें अतृप्त रह जाती है , उन्हे पूर्ण करने के लिये फिर से जीवमात्र को जन्म लेना पड़ता है
वासनायें , इच्छायें कौनसी और किस लिये थी इसका सूक्ष्म विचार आवश्यक है ।
मनुष्य प्राणी जो भी कर्म भोगता है वे कर्म आठ प्रकार के है और इन आठ कर्मों पर अलग - अलग ग्रहो का प्रभाव है ।
✤ पहला- पूर्व जन्म कर्म , यह कर्म जीवात्मा को भोगना पड़ता है । इस कर्म पर शनि का प्रभाव रहता है ।
✤ दूसरा - धराणे का कर्म , हिन्दू तत्वज्ञानानुसार यह शरीर परदादा , परदादी , माता , पिता के रक्त से बना हुआ होने से उनके कर्मों का असर अपने शरीर पर होता है । इनके खराब फल नष्ट नहीं होते , उन्हे पुत्र पोत्रादि को भुगतना पड़ता है । इसे family trait भी कहते है । इस कर्म पर राहु का प्रभाव है ।
☛ " महाभारत शान्तिपर्व ” मे भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि , जो मनुष्य पाप कर्म करके भी पाप कर्म के अनिष्ट फल भोगने का भागी नहीं होता , तो भी वे खराब फल नष्ट नहीं होते , उन खराब फलों को उसके पुत्र पोत्रादि को को भोगना पड़ते है ।
✤ तीसरा - पिता के कर्मों का फल पुत्र को भोगना पड़ते है । इस कर्म पर सूर्य ग्रह का प्रभाव है ।
✤ चौथा - माता के कर्मों का फल पुत्र को भोगना पड़ते है । इस कर्म पर चन्द्र ग्रह का प्रभाव है ।
✤ पांचवा - इस जन्म की पत्नी के सम्बन्ध मे जो जो अच्छे या बुरे कर्म पूर्व जन्म मे अपने हाथ हुये है , उन सब कर्मों का समावेश इस प्रकार मे है । इस पर शुक्र ग्रह का प्रभाव है । 𝐴𝑠𝑡𝑟𝑜 𝐶𝑎𝑓𝑒
✤ छठा - इसमे संतति और खुद के परस्पर हुये और होने वाले सम्बन्ध तथा कर्मों का समावेश किया जाता है । इस पर गुरु का प्रभाव है ।
✤ सांतवा - इसमे इष्ट मित्रो के कर्मों का समावेश किया जाता है । इस पर बुध ग्रह का प्रभाव है । बुध प्रबल हो , तो साधु की संगति और निर्बल हो , तो नीच की संगति होती है ।
✤ आठवां - इसे भूमि कर्म कहते है । जिस जिस भूमि से सम्बन्ध आता है , उस पर हुये और होने वाले कर्मों को इसमे अन्तर्भूत किया जाता है । इस पर मंगल का प्रभाव है । 𝐴𝑠𝑡𝑟𝑜 𝐶𝑎𝑓𝑒
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु -
☛ यदि मंगल और शनि शुभ योग मे हो , तो जिस मकान में रहते है या जिस जमीन पर खेती करते है , उससे भाग्योदय होता है । यदि मंगल शनि अशुभ योग मे हो , तो भाग्य नष्ट हो जाता है । ।
☛ यदि शनि उत्पाद राशि यानि वृषभ , कन्या , मकर इनमे से एक मे हो , तो जातक का पूर्व जन्म से ही संसार अच्छा नही रहता , विवाह नहीं होता , विवाह हो , तो संतति नहीं होती , संतति हो , तो दारिद्र योग रहता है , वैराग्य उत्पन्न करना इसका प्रधान धर्म होता है ।
☛ यदि शनि कर्क , वृश्चिक , मीन राशि में रहा तो प्रपंच और परमार्थ दोनो साध्य रहते है । 𝐴𝑠𝑡𝑟𝑜 𝐶𝑎𝑓𝑒
☛ यदि शनि मेष , मिथुन , तुला , धनु , कुम्भ मे हो , तो जातक पूर्व जन्म से महात्मा बनकर नहीं आता लेकिन इस जन्म में महात्मा बनने का प्रयास करता है ।
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