शुक्र सप्तम भाव
शुक्र सप्तम भाव का कारक होता है लेकिन सप्तम भाव में अच्छा नहीं होता है
(वैसे तो सप्तम भाव का शुक्र अच्छा फल देता है लेकिन यहां पर टॉपिक के अनुसार चर्चा होगी)
🪔🪔🪔 सप्तम भाव दर्शाता है 🪔🪔🪔
👉 जीवनसाथी
👉 दूसरे लोग
👉 वैवाहिक जीवन
👉 यौन इच्छा
👉 व्यवसाय का दूसरा घर (दसम से दसम)
👉 व्यावसायिक साझेदार
👉 न्यायिक बंधन (legal bondage)
👉 साझेदारी
👉 प्रत्यक्ष शत्रु
👉 विरोधी
👉 युद्ध
❤️❤️❤️ शुक्र ❤️❤️❤️
👉 प्रेम
👉 रोमांस
👉 यौनक्रिया
👉 महिला
👉 संगीत
👉 इत्र
👉 आभूषण
👉 फैशन
👉 बिस्तर का सुख (bed pleasure)
👉 धन
👉 भौतिकता
🔥 कालपुरुष की कुण्डली में सप्तम भाव में तुला राशि पड़ती है जो कि संतुलन को दर्शाती हैं, अगर जीवन में सबकुछ संतुलन मे हो तो अच्छा होता है और यदि असुंतलित हुआ तो समस्या हो जाती है और सप्तम भाव मजबूत शुक्र की स्थिति असंतुलन पैदा करती है।
🍎 पुरुष की कुण्डली में शुक्र पत्नी का कारक होता है जिसकी उपस्थिति सप्तम भाव में "कारका भाव नाशय" के कारण अच्छी नहीं होती है क्योंकि यह सप्तम भाव के कुछ करकत्व को नष्ट कर देता है।
🌷 पुरुष के लिए शुक्र पत्नी और वैवाहिक सुख को दर्शाता है जबकि महिला के लिए केवल वैवाहिक सुख।
🌟 चाहे महिला हो या पुरुष सप्तम भाव का शुक्र जीवनसाथी को प्रभावित करता ही है।
💙 सप्तम भाव का शुक्र जब वही ऊर्जा नहीं प्राप्त करता है जो वो देता है तो असंतुलित हो जाता है जिससे वैवाहिक समस्या उत्पन्न होती है और उन दूसरे लोगों पर निर्भर होने लगता है जो उनके लिए अच्छे होते हैं और फिर चाहे साझेदारी हो या वौवाहिक जीवन, समस्या उत्पन्न होने लगती है।
💜 सप्तम भाव का शुक्र लग्न को भी देखता है जिससे यह सप्तम भाव के साथ लग्न को भी प्रभावित करता है।
💛 सप्तम भाव में शुक्र वाले जातक जल्दी ही प्रेम में पड़ जाते हैं इसलिए विवाह के बाद एक ही जीवनसाथी के प्रति समर्पित होना आसान नहीं होता है।
🔴 शुक्र सभी लग्न के पुरुषों के लिए पत्नी का कारक होता है लेकिन शुक्र सभी लग्न के लिए योगकारक नहीं होता है।
🔵 जीवनसाथी और साझेदारी के अलावा भी सप्तम भाव युद्ध और शांति, विरोधी और प्रत्यक्ष शत्रुओं का भी होता है।
⚫ कल्पना कीजिए कि आपका जीवनसाथी ही आपका प्रत्यक्ष शत्रु बन जाए और यह युद्ध अलगाव या तलाक के साथ खत्म हो, या फिर आपका साझेदार जो कि मित्र होता है वही सबसे बुरा शत्रु बन जाए।
🤎 इतिहास गवाह है कि ज्यादातर युद्ध सुंदर महिलाओं के लिए हुआ है और यहां सप्तम भाव ( युद्ध और विरोधी) का संबंध शुक्र (महिला और सुंदरता) के साथ हो जाए।
🤍 इसलिय कहा जाता है की सप्तम भाव में किसी भी ग्रह का ना होना अच्छा होता है।
🛑 सप्तम भाव के शुक्र के साथ नक्षत्र, बृहस्पति एवम् सप्तमेश की स्थिति और अन्य कारक एवम अकारक ग्रहों की स्थिति भी देखनी चाहिए।
🔶 हालांकि शुक्र रोमांस, प्रेम और सुख का कारक है लेकिन साथ ही आध्यात्मिकता और ज्ञान की दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, बृहस्पति की तरह शुक्र भी एक गुरु है ये नही मायने रखता की किसके गुरु है, शुक्र भगवान शिव और माता लक्ष्मी के परम सत्य है और संजीवनी विद्या के ज्ञाता भी है।
🔊🔊 उच्च शुक्र के कुछ अच्छी और खराब बातें 🔊🔊
🔷 जब शुक्र मीन राशि में होते है तो दुगने ताकतवर होते अपने दो भावो को नष्ट करने के लिए जिसके वो स्वामी है साथ ही अपने कुछ कारकत्व को भी नष्ट करते हैं क्योंकि उच्च के समय अपने मूलत्रिकोण राशि से छठवें जाते हैं।
🎯 सबसे अच्छ उदाहरण भगवान राम की कुण्डली है 🎯
🐘 भगवान राम की कर्क लग्न की कुण्डली है, शुक्र चर्तुथ भाव जो कि सुख का होता है और एकादश भाव का स्वामी है, शुक्र चतुर्थ भाव से षष्ठम जा कर नवम भाव में उच्च का हो रहा है, जिससे सुख के कुछ कारकत्व का नाश किए और भगवान राम को वन में 14 वर्ष बिताना पड़ा।
🦣 लेकिन नवम भाव में स्थित शुक्र ने आध्यात्मिकता और ज्ञान भी दिया, बनवास के समय भगवान राम ने बहुत से ऋषियों से भेंट की ज्ञान अर्जित किया।
🪶🪶🪶 निष्कर्ष 🪶🪶🪶
🦞 सप्तम भाव भौतिक काम भाव होता है और शुक्र यौनक्रिय, उत्तेजना, सौंदर्य और प्रेम का कारक होता है, शुक्र यहां इन चीजों को बढ़ा देता है जिससे जातक नियंत्रण से बाहर हो जाता है और समस्या उत्पन्न होती है।
🦐 सप्तम भाव का शुक्र कुछ इन कारकत्व को नष्ट कर देता है और वैवाहिक जीवन एवम साझेदारी में समस्या देता है।
🖋️🖋️🖋️ सप्तम भाव के शुक्र का सभी लग्नों मे परिणाम 🖋️🖋️🖋️
♈♈♈ मेष लग्न ♈♈♈
👉 सप्तम भाव में तुला राशि पड़ती है जोकि चर व वायु तत्व राशि है और इसका स्वामी शुक्र होता है, यहां शुक्र जातक को संतुलित, विचारशील, आकर्षक व सुख देने वाला और बुद्धिजीवी बनाता है।
👉 शुक्र की द्वितीय व सप्तम भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में स्थिति धन और साझेदारी के लिए अच्छा होता है लेकिन विकर्षण (distraction) समस्या उत्पन्न करता है।
👉 लग्नेश मंगल है जिससे जातक ऊर्जावान, गुस्सैल और दूसरों को नियंत्रित करने वाला होता है और अगर हद से ज्यादा विकर्षित हुआ तो वैवाहिक जीवन या संबंधों में समस्या देता है।
♉♉♉ वृषभ लग्न ♉♉♉
👉 सप्तम भाव में वृश्चिक राशि पड़ती है, लग्न और सप्तम भाव राशि दोनो ही स्थित राशि होती है यहां का शुक्र जातक को तीक्ष्ण, कामुक, भावुक, सम्मोहक, आकर्षक और सतर्क बनाता है।
👉 अपने चाहने वालों के लिए दिल की गहराई से प्रेम और श्रद्धा रखते हैं।
👉 जो दिल और आत्मा की गहराई तक तैरने की चाहत रखते हैं उनके लिए यह शुक्र की स्थिति जोशपूर्ण और इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है।
👉 वृश्चिक जल तत्व राशि है और मंगल की ऊर्जा अत्याधिक प्रेम और भावना की अनुभूति करवाता है जिसकी अन्य लोग सिर्फ कल्पना कर सकते हैं, वृश्चिक राशि में स्थित शुक्र वाली लड़की से प्यार कीजिए उसे आप कभी नहीं छोड़ पाएंगे।
👉 दूसरों को नियंत्रित करने का स्वभाव, क्षमा न करना और थोड़ा सनकपन वैवाहिक जीवन और रिश्तों में समस्या दे सकता है।
♊♊♊ मिथुन लग्न ♊♊♊
👉 शुक्र पंचम और बारहवें भाव का स्वामी होता है और सप्तम भाव में धनु राशि पड़ती है जो की अग्नि तत्व और द्विस्वभावी राशि है, यहां शुक्र की स्थिति जातक को खुशमिजाज, करिश्माई व्यक्तित्व, उत्साही, इश्कबाज और मजाकिया बनाता है।
👉 प्रेम विवाह की संभावना बढ़ जाती है और धनु राशि धर्म राशि है, यहां शुक्र ज्ञान अर्जन में भी सहायक होता है।
👉 लम्बी अवधि के संबंध (relationship) के लिए शुक्र समस्या देता है।
👉 जैसा कि धनु अग्नि तत्व राशि है और यहां शुक्र जातक को स्वतंत्रता प्रिय बनाता है, जातक अपनी मर्जी का करने के लिए स्वतंत्रता चाहता है और चूंकि शुक्र पंचम और बारहवें भाव का स्वामी भी है और यदि मंगल, शनि या राहु से पीड़ित हुआ तो अत्यधिक या विवाहोत्तर संबंध देता है जो कि वैवाहिक जीवन में समस्या देते हैं।
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