पूर्व दिशा में दोष:

🔴पूर्व दिशा में दोष:-


* यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा

 यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है. 

अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं. 

बचाव के उपाय:-

*पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा. 

* पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर 'सूर्य यन्त्र' स्थापित करें ।

* पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी. 

🔴पश्चिम दिशा में दोष:-

* यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है. 

* यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो घर के पुरूष की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा. 
 पडेगा. 

* यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा. 
 

बचाव के उपाय:

*ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर 'वरूण यन्त्र' स्थापित करें. 

* पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढलान न बनबाए. 

* पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें. 

🔴उत्तर दिशा में दोष-
 
यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं. 

* यदि उत्तर दिशा अधिक ऊंची हो, तो परिवार की स्त्रियों को रोग का शिकार होना पडता है. 

बचाव के उपाय :-
यदि उत्तर दिशा की ओर ढलान रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा. 

* इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में 'बुध यन्त्र' स्थापित करें, नहीं तो चांदी या सोने का स्वास्तिक बनबा कर उसे उत्तर दिशा में लगाए, यहां धातु का बना कछुआ भी रख सकते हैं

भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें. 

🔴🙆🙆दक्षिण दिशा में दोष:-

दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. 

* यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है. 

* यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक खुला स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. 

* यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो तो उस मेनगेट के ऊपर बिल्कुल बीचों-बीच हनुमान जी की गदा अभिमंत्रित करके लगाएं,या दरवाजे के दोनों ओर कुंकुम या रक्त चंदन से रोज स्वास्तिक चिन्ह बनाते रहें, इससे काफी लाभ मिलता है

बचाव के उपाय:-
* यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें.
 इस दिशा में किसी प्रकार का दोष होने की स्थिति में छत पर, दक्षिण दिशा की ओर लाल  रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें. 

* घर के पूजनस्थल में 'श्री हनुमंतयन्त्र' स्थापित करें. 

* दक्षिणमुखी द्वार पर प्रतिष्ठित एक ताम्र धातु का 'मंगलयन्त्र' भी लगा सकते हैं 

* प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.लेकिन इस पर धूल मिट्टी नहीं जमनी चाहिए, वहाँ रोज पूजा कर सको, धूप दीप दिखा सको तभी प्रतिमा मुख्य द्वार पर लगानी चाहिए नहीं तो उनके प्रतीक चिह्न ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं

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