ग्रह कुण्डली

देहश्चावयवः सुखासुखजरास्ते ज्ञानजन्मस्थले कीर्तिः स्वप्नवलायती नृपनयाख्यायूंषि शान्तिर्वयः ।

केशाकृत्यभिमानजीवनपरद्यूताङ्कमानत्वचो निद्राज्ञानधनापहारनृतिरस्कारस्वभावारुजः ॥ १ ॥

निम्नलिखित बातें प्रथम भाव लग्न से विचारनी चाहिएँ।  इन  बातों का कारक प्रथम भाव है
 सामूहिक रूप से शरीर, शरीर के अवयव पृथक्-पृथक् (लग्नस्थ राशि तथा उसके स्वामी द्वारा), सुख, दुःख, जरावस्था, ज्ञान, जन्म का स्थान, यश, स्वप्न, बल, गौरव, राज्य, नम्रता, आयु, शान्ति, वय, बाल आकृति (Appearance), अभिमान, काम-धन्धा, दूसरों से जुआ, निशान, मान, त्वचा, नींद, दूसरों का धन हर लेना, दूसरों का अपमान करना, स्वभाव, आरोग्य, वैराग्य, कार्य का करण ( Agency), पशु पालन, मर्यादा का सर्वनाश, वर्ण तथा निज अपमान ।

(१) प्रथम भाव में 'सामूहिक रूप से शरीर आदि का विचार किया जाता है। सामूहिक शरीर से तात्पर्य न केवल समस्त शरीर है, बल्कि शरीर के धातु, चर्म आदि वे पदार्थ जो सामूहिक अथवा व्यापक रूप से शरीर में पाए जाते हैं, हो सकता है। उदाहरणार्थ जब किसी व्यक्ति का सिंह लग्न हो तो उसका स्वामी सूर्य यद्यपि आँख, हृदय, हड्डी सबका प्रतिनिधि है तथापि जब हम सामूहिक शरीर का विचार करेंगे तो लग्नेश सूर्य को आँख तथा दिल की अपेक्षा हड्डी का प्रतिनिधि मानेंगे। क्योंकि वह आंखि तथा हृदय की अपेक्षा शरीर में अधिक व्यापक है। इसी प्रकार कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र यद्यपि मन, छाती तथा खत सभी का प्रतिनिधि है, तथापि सामूहिक शरीर में चन्द्र 'रक्त' का अधिक प्रतिनिधित्व करेगा, क्योंकि रक्त शरीर में मन तथा छाती की अपेक्षा अधिक व्यापक क्षेत्र में कार्य करता है। इसी प्रकार लग्नेश मङ्गल से बुध से चर्म, लग्नेश गुरु से मेदा, लग्नेश शुक्र से वीर्य, लग्नेश शनि से नसें (Nerves) को सामूहिक शरीर के अर्थ में लेना चाहिए।

श्लोक संख्या १ में 'त्वचा' का सम्बन्ध प्रथम भाव अर्थात् लग्न से माना है। स्पष्ट है कि जब लग्न में (अथवा सूर्य लग्न में अथवा चन्द्र लग्न में) त्वचा का कारक 'बुध' पड़ा होगा तो लग्न त्वचा का दुगुना प्रतिनिधित्व करेगी। ऐसी स्थिति में यदि लग्न पर राहु का प्रभाव हो तो व्यक्ति के शरीर में त्वचा के रोगों की सृष्टि हो जावेगी । जैसे फुल बहरी आदि का हो जाना ।

(२) लग्न तथा दशम भाव दोनों से मनुष्य की कीर्ति अथवा यश का विचार किया जाता है। यश में नाम की प्रसिद्धि आवश्यक है, अतः प्रसिद्ध नाम का विचार भी प्रथम भाव से होना चाहिए।

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