कुंडली में लग्न दोष निर्माण
कुंडली में लग्न दोष निर्माण
यदि किसी कुंडली में लग्न की राशि का स्वामी अस्त हो गया हो और लग्न में बैठे ग्रह भी अस्त हो गए हों तो कुंडली में लग्न दोष का निर्माण होता है।
यदि कुंडली में लग्न की राशि का स्वामी छठे, आठवें, बारहवें भाव में चला जाता है तो लग्नेश कमजोर हो जाता है, तो कुंडली में लग्न दोष बन जाता है।
यदि कुंडली में लग्नेश के अंश 0,1, 2, या 28, 29, 30 हो और लग्नेश अशुभ ग्रहों से प्रभावित हो तो लग्न दोष का निर्माण होगा।
यदि लग्नेश जिस भाव में है उसके आगे और पीछे क्रूर ग्रह हो तो यह लग्न दोष बनाएगा।
यदि कुंडली में छठे, आठवें और बाहरवें घर के स्वामी ग्रह का और शनि, मंगल, राहु का लग्नेश के साथ बैठना लग्नदोष बनाता है।
इसके अलावा छठे, आठवें और बाहरवें भाव में लग्नेश शनि परेशान तो करते हैं लेकिन बल भी प्रदान करते हैं।
लग्न दोष के प्रभाव
कुंडली में लग्नदोष बनने से जीवन संघर्षमय बन जाता है।
लग्नेश जिस घर में बैठकर लग्न दोष बनाता है, तो भाव के फल को भी प्रभावित करता है।
इसके बनने से मान-सम्मान में कमी, सेहत में खराबी और आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है।
साथ ही कुंडली में लग्नदोष होने पर अन्य शुभ ग्रह भी पूरी तरह से शुभ फल देने में सक्षम नहीं होते हैं।
लग्न दोष निवारण उपाय
यदि लग्नेश छठे, आठवें या द्वादश भाव में अस्त हो रहा है तो लग्नेश का रत्न धारण करना चाहिए और हो सके तो लग्नेश का मंत्र जाप भी कराना चाहिए।
यदि लग्नेश जिन पाप ग्रहों के प्रभाव में हो उन ग्रहों का जप और संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए ताकि ग्रह शांत हो सकें।
यदि लग्नेश नीच राशि का होकर लग्नदोष निर्माण करता है तो लग्नेश का रत्न धारण नहीं करना चाहिए। ऐसी स्थिति में केवल लग्नेश का मंत्रजाप करना उचित है।
यदि लग्नेश शुभ ग्रहों के प्रभाव में आ रहा हो तो उस ग्रह के शुभ फल की प्राप्ति के लिए उपाय करने चाहिए।
यदि लग्नेश को कोई ग्रह पीड़ित या दोष युक्त बना रहा हो तो उन ग्रहों की शांति के लिए हवन कराना चाहिए।
आपको लग्न दोष अपवाद और उपचार के लिए एक वास्तविक ज्योतिषी से परामर्श करने की सलाह दी जाती है।
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