राहु केतु
*फलित ज्योतिष और रहस्यमय छायाग्रह राहु- केतु
रहस्यमय छाया ग्रह है राहु और केतु। मगर दोनों का फलित मान्यता ज्योतिष शास्त्र में है। विशेषतः पाराशरी फलित गणना में दोनों को बहुत गुरुत्व देकर स्थानस्थिति को आधार कर शुभाशुभ प्रभावों को परिभाषित किया गया है।।
ज्योतिष शास्त्र में-- (१) राहु :-- कन्या राशि का अन्यतम अधिपति, मिथुन राशि का 20° में उच्च (मतान्तर में वृष), कुम्भ राशि में मूलत्रिकोणस्थ, धनु (मतान्तर में वृश्चिक) राशि में नीच, शुक्र- शनि मित्र, बुध- गुरु सम, रवि- चन्द्र- मंगल शत्रु माना जाता है।।
ऐसे, (२) केतु :-- मीन राशि का अन्यतम अधिपति, वृश्चिक 6° में उच्च ( मतांतर में धनु), सिंह राशि में मूलत्रिकोणस्थ, वृष (मतान्तर में मिथुन) राशि में नीच, रवि- चंद्र- मंगल मित्र, बुध- गुरु सम, शुक्र- शनि शत्रु माना जाता है।।
(नोट्स :-- इस मतान्तर- तथ्य को अनेक मुर्द्धन्य ज्योतिषी मान्यता नहीं देते हैं।।)
*कुंडली में "सर्प दोष" (तथाकथित कालसर्प दोष) अर्थात पाराशरी "पितृ दोष" विचार राहु- केतु- स्थिति को लेकर किया जाता है।।*
'बृहत्संहिता' ग्रन्थ के राहु- चाराध्याय में प्रमाण स्वरूप लिखा है--
*"मुखपुच्छविभक्तार्गंभुजङ्गकारपुमदिशन्त्यन्ये"* ,
अर्थात मुख एवं पुच्छ से अलग शरीर जिसका 'सर्प' का आकार है, वही राहु का आकार है। 'कामरत्न' ग्रन्थ के अध्याय- 64 श्लोक- 47 में सर्प को ही 'काल' कहा गया है; यथा--
*"न पश्येद्विक्षणमाणेपि काल दृष्टो न संशयः।*
*सर्प दंशों विषं नास्ति काल दृष्टो न संशयः।"*
इतना ही नहीं, 16वीं शताब्दी के "मानसागरी" ग्रन्थ में 'अरिष्ट योगों' की चर्चा करते हुए अध्याय- 4 के श्लोक- 10 में लिखा है-- "लग्नाश्च सप्तम स्थाने शनि- राहु संयुतौ। सर्पेण बाधा तस्योक्ता शय्यायां स्वपितोती च।" अर्थात, सातवें घर में शनि- सूर्य- राहु की युति हो तो बिस्तर पर सोते हुए व्यक्ति को सांप काटने की संभावना बन जाता है। ये भी फलित में देखा गया है कि सभी ग्रहों राहु- केतु अक्षरेखा के मध्य किसी एक राशि को छोड़कर अवशिष्ट पांच राशियों में अव्यवस्थित होने पर जातक का जीवन ज्यादा पीड़ित रहता है, जिसको इस युग के विद्वानों 'कालसर्प योग' कहते हैं। वस्तुतः "सर्पदोष" या "पितृदोष" को भयंकर "कालसर्प योग" नामकरण कर भ्रामक अफवाह फैलाना उचित नहीं है। क्योंकि पाराशरी पितृदोष को शांत करने के लिए पाराशरी में अलग- अलग उपाय उपलब्ध है।।
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