शनि महादशा का विशेष फल
🌹शनि महादशा का विशेष फल🌹
शनि की महादशा उन्नीस वर्ष की होती है शनि पापी ग्रह अवश्य है, और न्याय और कर्म के देवता माने गए हैं लेकिन अपने प्रभाव से व्यक्ति को पापात्मा नही बनाता , दरिद्री भले ही बना दे यदि कुण्डली में शनि कारक होकर उच्च राशि मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि अथवा मित्र राशि में होकर बलवान अवस्था में केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो वह विशेष शुभ फलदायक होता है। जातक को शुभ शनि की दशा में राजकीय एवं सामाजिक सम्मान मिलता है उसके वैभव एवं कीर्ति की बढ़ोत्तरी होती हैं शनि की दशा जातक के भाग्योदय में पूर्णरूपेण सहायक होती है हालांकि जातक के भाग्योदय में पूर्णरूपेण सहायक होती है
यदि शनि कुण्डली में अकारक होकर नीच राशि, शत्रु राशि में तथा पापी ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तो जातक इस दशा में असहनीय कष्ट भोगता है जातक के प्रत्येक कार्य मे विघ्न आते है एवं उसके बने बनाये कार्यो का भी नाश हो जाता है समाज में व्यर्थ की अपवाहे फैलाती हैं झूठे अभियोग में फसकर कारागृह में रहना पड़ता है शत्रुपत्र प्रबल हो जाता है.
यदि शनि राहु से प्रभावित हो तो जातक सर्पदंश या विषपान से मृत्यु तुल्य कष्ट मिलता है दुर्घटना का योग एवं उसमें अंग भंग होने अथवा मृत्यु तक होने की आशंका बन जाती है जातक की नीच वर्ग के लोगों से मैत्री होती है तथा वह मदिरा, मांस जैसे पदार्थो का सेवन करता है जातक के मित्रों का व्यवहार भी शत्रुवत् हो जाता है मानसिक कलह से उसके चित्त को परिताप पहुंचता है। जातक की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि वह भिक्षुक बव जाता है अशुभ शनि स्थान में हो तो अपनी दशा में रोग विष, शत्रु तथा चोरों से जातक को आर्थिक दृष्टि से कमजोर एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अशक्त बना देता है। यदि अशुभ शनि व्यय स्थान में हो तो जातक विदेश भ्रमण करने को बाध्य हो जाता है। जातक का शय्या सुख का नाश, सन्तति नाश, माता के लिये दुर्भाग्यशाली समय और पिता की अवनति अथवा मृत्यु जैसे फल भी जातक को शनि की दशा में प्राप्त होते है
और सनी सिंह लग्न और कर्क लग्न वालों के लिए अपनी दशा के अंतर्गत जीवन
में संघर्ष परिश्रम करा देती है
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