गुरु बुध
गुरु बुध
गुरु तो हमको सबको पता ही है..सबसे शुभ गृह...अब गुरु के साथ बुध आ गया तो वो भी सात्विक गृह बन गया...यानी अब हमारे पास दो दो गुरु हो गए...डबल धमाका..जुड़वाँ..एक के साथ एक फ्री...गुरु ज्ञान है तो बुध बुद्धि..गुरु चिंतन है तो बुध ग्रहण करने की क्षमता..गुरु जिव है तो बुध ज्ञान...बुध के ज्ञान मे गुरु की शुभता मिल गयी तो कहने ही kya...मतलब ये तो तय है की शुभ ही होगा ..लेकिन गुरु बुध को शत्रु मानता है..एक ही राशी मे बैठ गए तो अधि शत्रु बन जायेंगे..मतलब गूर बुध से शत्रुता निभाएगा..लेकिन बुध तो गुरु के रंग मे रंगने की कोशिश करेगा...द्विस्वभाव लग्न हुआ तो लग्न इतना मजबूत और शुभ होगा की पूछो मत.
अब देखो दोनो ही लग्न मे दिग्बली होते है..तो इसका मतलब ये तो तय हो गया की दोनो का लग्न या लग्नेश से संबध हुआ तो लग्न को तो मजबूत करेंगे...बुध लग्नेश के साथ बैठेगा तो लग्न को एकदम मजबूत करेगा..क्योंकि बुध तो सामने वाले के रंग मे राम जाता है....गुरु वही शुभत्व का घोतक..मतलब लग्न को एकदम मजबूत करेंगे...ये अगर लग्न मेबैठे के बलि हुए तो लग्न को एकदम मजबूत करेंगे..क्योंकि वह ये दिग्बली भी होंगे...
अब अगर ये दोनो लग्न मे बैठ गए तो कहने ही kya...एक तो दोनो दिग्बली होंगे...दूसरा एक दुसरे के बल और शुभत्व को बढ़ाएंगे..क्योंकि गुरु तो निरंतर व्रद्धी का कारक है और शुभ गृह भी है...बुध उसको और बल देता रहेगा...मतलब लग्न के शुभत्व मे निरंतर वृधि होती रहेगी...और जब आप मे बलवान और शुभत्व आ गया तो फिर कहना ही kya..जीवन सफल हो जायेगा आपका....
मिहिराचार्य ने भी साफ़ साफ़ लिखा है की लग्न लग्नेश के साथ बुध या गुरु का सम्बन्ध लग्न को शुभ और मजबूत करता है....
बाकी चीजे तो कुंडली के हिसाब से भी फलित होगी की दोनो किस किस भाव के स्वामी है और अपने कारकत्व और भाव के जो करक है उनके हिसाब से भी फलित देखना होगा..यहाँ हमने सिर्फ बुध और गुरु के नैस्रागिक गुणों की चर्चा की है तो ठोको ताली इसी बात पे.
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