दशम भाव
जय श्री बालाजी
दसम भाव और ग्रह
दसम भाव कर्म भाव के रूप में मुख्यतया जाना जाता है। कर्म जो हम करने के लिए पैदा हुए है। कर्म जिनके किये बिना हम एक क्षण भी नही रह सकते। दसम भाव जिसका सीधा प्रभाव लग्न पे होगा। दसम भाव जो बताएगा कि आप किस तरह के कर्मो के लिए पैदा हुए हो।
दसम भाव को 4 ग्रह दिए गए है। बुध, गुरु, सूर्य, शनि। सूर्य तो आत्मविश्वास और मान सम्मान का कारक वैसे ही है। बुध जो वाणी और धन और ग्रहण करने की क्षमता है जो बताएगा कि आप अपने कर्म क्षेत्र में कितने दक्ष हो। गुरु तो समझदारी ओर सोचने की क्षमता है उसके बिना आप कर्म कैसे करोगे। शनि तो कर्म है ही। गंभीरता है ही। तो इस तरह इन चारों ग्रहों को दसम का कारकत्व दे दिया गया।
दसम में सूर्य मंगल दिग्बली होते है। दोनो ही बड़ा शुभ फल देते है। मंगल कुलदीपक योग बनाता है। सूर्य तो मान सम्मान राज्य कृपा दिलाने की पूरी कोशिश करता है।
दसम भाव मे राहु बड़ा गजब फल देता है। मिथुन कन्या का तो सुपर डुपर।
तो इस तरह दसम भाव बाहत सारे ग्रहों का प्रभाव दर्शाता है। केंद्र में सबसे बलि होता है। शायद इसलिए इसकी इतनी महत्ता गाई गयी है।
यही दसम भलव मृत्यु का व्रद्धि स्थान है। नाश का लाभ है इसीलिए आपकी आयु में भी मुख्य भूमिका निभाता है।
परिवार का भाग्य। पराक्रम की मृत्यु। सुख का प्रतिद्वंदी। बुद्धि का रोग। रोग की योजना। पत्नी का सुख। भाग्य का धन। लाभ का नाश। नाश का लाभ।
अब ये देखो की सन्त कहते है कर्म करो। सद्कर्म करो। क्यो ...क्योंकि नवम भाव तक सब फिक्स रहता है। नो महीने में बच्चा पैदा है। यानी भाग्य भाव तक सब फिक्स। लेकिन कर्म भाव फिक्स नही। कर्म आप अपने हिसाब से कर सकते हो। इसीलिए कहते है ऐछे कर्म करो। कर्म बंधे नही है। कर्म आप अपने हिसाब से कर सकते हो।
बस तो कर्म करते जाओ वत्स। फल की चिंता काहे करते हो।
सबसे बली केंद्र। केंद्र में सबसे बली दसम भाव। मतलब कुंडली का सबसे बलवान भाव दसम हो गया। अब ये दसम भाव लग्न पे अपना सीधा प्रभाव डालता है। यू कहे की दृष्टि डालता है। तो दसम भाव का हमारे ऊपर सीधा प्रभाव होता है।
इसी भाव मे सूर्य ठीक 12 बजे आसमान में ऊपर रहता है। कर्म का भाव जो है। सब कुछ हमारे जर्मो के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है। इन्ही कर्मो की वजह से जीव का चक्र घूमता रहता है। जन्म पे जन्म लेते रहते है हम।
कर्म करेंगे क्या वो ये भाव सीधा सीधा दर्शा देता है। दशमेश बता देगा कि क्या कर्म करने के लिए पैदा हुए है। कर्म करना क्या है। षष्टेश बताएगा पिछले जन्म में क्या कर्म किये थे । कैसे किये थे। दशमेश बता देगा क्या करना है इस जन्म में।
दसम में बैठे ग्रह भी बोलेंगे की हम भी सहयोग करेंगे।
दसम पे द्रष्टि डालने वाले ग्रह भी कर्म के भागीदार होंगे।
सप्तम में बैठा ग्रह भी कर्म का कर्म होगा।
द्वितीय षष्टम तो इसके त्रिकोणेश होंगे।
दशमेश का नवांश पती मुख्य न्यायाधीश होगा कर्म निर्धारण का।
दशमांश कुंडली मे लग्न लग्न अधिपति की स्थिति बताएगी की कर्म किस तरह के है। स्थिति क्या है कर्म क्षेत्र की। दशमांश में दसम भलव ओर भावेश भी बताएंगे कि क्या क्या कर्म कर सकते है।
द्रेष्काण कुंडली बताएगी की कर्म फल क्या होगा। खट्टा। मीठा या खारा।
तो दसम भाव। भावेश। दसम वे द्रष्टि दलालने वाले ग्रह। त्रिकोण केंद्र के ग्रह। सप्तम भाव। दशमांश ओर द्रेष्काण कुंडली। दशमेश का नवांशपति। भाव कारक ये सब मिलकर आपके कर्म क्षेत्र का निर्धारण करेंगे।
भाव कारक को तो हम भूल ही गए सूर्य आत्म सम्मान। में सम्मान। प्रत्यक्ष में। सूर्य को साक्षी मानकर ही तो हम कर्म करते है। गुरु हमे विवेक शक्ति से कर्म करने की प्रेरणा देगा। बुध हमारी बूद्धि को नियंत्रित करता रहेगा कि ऐछे कर्म करो वरना फिर अगले जन्म में छिपकली न बनना पड़े। शनि तो निर्णय क्षमता है जो कहेगा कि सोच समझ कर ऐछे कर्म करो ताकि फिर निर्वाण की यात्रा चालू हो सके। तो इसीलिए सूर्य, शनि, बुध, गुरु दसम भाव के कारक ग्रह बन गए।
सूर्य मंगल इस भाव मे दिग्बली होते है। सूर्य यहां शुभ का बैठा हो तो माँ सम्मान दिलाता है खूब। पिता को भिंख़ूब पैसे दिलाता है। मंगल तो पराक्रमी योद्धा बनाता है। कुलदीपक का चिराग बनाता यही।
राहु तो इस भाव मे सबसे बलि होता है। यहां बिअथ राहु जातक को सरस्वती कृपा प्रदान करता है। क्या जबरदस्त सोशल सर्किल बनवाता है। शतरंज का माहिर खिलाड़ी बनाता है। वृषभ। मिथुन। कन्या। कुम्भ का राहु हो तो कहने ही क्या।
एकादश इसका धन है। द्वादश इसका पराक्रम। लग्न इसका सुख। द्वितीय इसकी विद्या। तृतीय इसका रोग। चतुर्थ इसका प्रतिद्वंदी। पंचम इसकी आयु। षष्टम इसका भाग्य। सप्तम इसका ककर्म। अष्टम इसका लाभ। भाग्य इसका नाश।
अब यहां गोर कीजिये त्रिक भाव इसके लिए सबसे शुभ है। एक इसका पराक्रम है। एक भाग्य और एक लाभ। मतलब ये त्रिक लग्न को हानि पहुंचा कर कर्म को उंगली करते है कि अब अगला जन्म लो। अभी कहा रुकना है।
दशम भाव जातक के कर्मो का ज्ञान कराता है..तथा जातक क्या कार्य करेगा यहाँ जान्ने के लिए की गयी अधिकतर प्र्छाओ के विश्लेषण का यहाँ केंद्र बिंदु होता है..जैसा की हां जानते है दशम भाव , कर्म के अलावा, जातक के जीवनमान पर भी अधिकार रखता है तथा हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए.
ऐसा कहा गया है की कर्मेश निर्बल होने पर जातक अछे काम नहीं करेगा..इस वाकया को शब्शः ग्रहण न करे..इसका वास्तविक अर्थ यहाँ है की ऐसी अवस्था में जातक में अछि लगन से कर्म करने के लिए योग्य उर्जा का अभाव रहेगा...परन्तु ऐसी स्थति यदि दशम भाव भी दूषित हो तथा दशमेश का नवांशेश भी ट्रिक स्थानों में होतो तो ऐसी शती में जातक के ..बुरे काम करने के अर्थ में किसी अछे काम का न करना या किसी भी काम का न करना यहाँ भविष्यवाणी सटीक हो सकती है..कर्म भाव या उसके अधिपति का शुभ दृष्ट होना..या शनि का कर्म भाव में स्थित में स्थित होना जातक के पास अनेक सेवक होना दर्शाता है..इन सिद्धांतो का प्रयोग करते समय कर्मभाव..उसके अधिपति, तथा शनि द्वारा अधिग्रहित राशियो के बलबल का फलो पर प्रभाव होता यहाँ बात ध्यान रहे..इस योग में अनेक सेवक होंगा..यहाँ जातक के अर्थ प्राप्ति के प्रमाण का संकेत मात्र होने से..इसे शब्दशः न ले ..परन्तु शनि के दशमस्थ होकर स्वराशी..उच्च राशी....या मित्र राशी में स्थित होने पर वह जातक को बड़े जनसमुदाय का नेतृत्व और अनेक सेवको की सेवा..अवश्य प्रदान करता है..कर्मेश के सुकस्थ ..होने के शती में जातक सुखी..ग्यानी..शुर..गुरु के प्रति समर्पित ...देवभक्त तथा प्रभावी होता है..कर्मेश की पुत्रभाव या लाभ भाव में स्थति होने से जातक बाल्य वस्था में रोगी होता है परन्तु प्रोढ़ अवस्था में वह कवी होकर उसका धान दिन प्रति दिन बढ़ता है ..कर्मेश के धन्भाव्स्थ ..सप्त्मष्ट...त्रितायास्थ होने पर जातक उदार मतवादी ..बह्गुनी...उत्तम वक्ता तथा सत्यप्रिय होता है.
कर्मधिपति के इन भिन्न भावो म स्थित होने से प्राप्त परिणामो का कारण सहज समझ आतः है..परन्तु परिणामो में जातक का जो सत्यप्रिय होना बताया है उसे समझना प्रायः कठिन प्रतीत होगा..यहाँ हमें भ्रमित होने की आवशकयता नहीं है..यदि हम समझ ले की कर्म अर्थात दसम भाव यह धर्म, अर्थान नवं भाव से दूसरा भाव होने से वह धर्म स्थान का धन स्थान है...हिन्दू दर्शन में धर्म की परिभाषा है की मनुष्य द्वारा करने योग्य कर्म या उनके कर्त्तव्य ही धर्म है. हमें यहाँ भी ध्यान है की द्वितीय भाव वाणी,,विद्या...परिवार..तथा धन इन नामो से भी जाना जाता है...इसलिए कर्म भाव ही धर्म भाव का धन,,वाणी,,आदि होगा ये स्पष्ट है....सत्य ही धर्म का आधार होने से वही धर्म का धन भी कहलायेगा और इसी कारण इन योगो का फल जातक का सत्यवादी..सत्यप्रिय आदि होना कहा गया अहि. हमें ये भी ध्यान रहे की सत्यवादी होना आदि परिणाम तभी होंगे जब कर्मेश स्वयं नैस्रागिक शुभ गृह होगा या कर्म भाव नैस्रागिक या तात्कालिक शुभ ग्रहों से प्रभावित होगा..अब हम जातक के कर्मक्षेत्र या व्यवसाय को कर्म अर्थात दसम भाव के विश्लेषण द्वारा कैसे समझा जाता है यह समझ ले....ऐसा काहा जाता है की जातक जो कर्म करेगा उसे जिन ग्रहों से दशम स्थान युत या दृश हो ..कर्मेश जिन ग्रहों से युत या दृष्ट हो या दशमेश का जो नवांशेश हो उसनके बलबल तथा उनसे सम्बंधित व्यवसायों से समझना चाहिए .
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