मंगल शुक्र
मंगल शुक्र
मंगल आपकी वीर्य शक्ति है...आपका ओज है...आपका साहस है....आपकी प्रजनन क्षमता है...शुक्र आपका रस है..आपका वीर्य है...आपका आकर्षण है...आपका भोग है...आपकी सुन्दरता है...
मंगल से आप पैदा होते हो यानी लग्न यानी मेष राशी......शादी के बाद आपका परिवार पनपता है तो दुसरे भाव का निर्माण होता है...यानी वृषभ राशी...
और आपके ठीक सामने तुला राशि है जो स्त्री का रूप लिए आको आकर्षित करती रहती है...उसके ठीक बाजू मे वृश्चिक राशी होती है जो फिर मंगल की राशी है गुप्त या जननांगो की राशी है....मतलब देह बना के आपने उसका उपयोग सामने भोग और परिवार बढ़ने मे किया...यही तो क्रिया चलती रहती है जीवन और मृत्यु की....
मंगल रज है स्त्री का और शुक्र वीर्य है पुरुष का इन दोनो के मिलन से आपके लग्न का निर्माण होता है...या निषेक लग्न का निर्माण होता है..मतलब मंगल और शुक्र आपकी उत्पत्ति का कारण है...
अब देखिये विपरीत भाव का आकर्षण फिर यहाँ काम आ गया..मंगल की कमजोरी शुक्र और शुक्र की कमजोरी मंगल...दोनो आमने सामने...दोनो प्रतिद्वंदी....और दोनो का एक दुसरे के बिने काम न सरे..ये मंगल पुरुष मे उर्जा पैदा करता है और स्त्री के अंदर रज जो की स्त्री को आकर्षित करता है पुरुष के प्रति..उधर शुक्र पुरुर्ष मे स्त्री के प्रति आकर्षण पैदा करता है और वीर्य का निर्माण करता है जो की अष्टम से बाहर निकलता है...तो फिर अष्टम को मृत्यु का भाव क्यों न कहा जाए...क्योंकि वीर्य का संचय होना चालू हो गया तो फिर आप ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मृत्यु यानी की आयु यानी की अष्टम भाव पे काबू जो पा लोगे...
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