उचित रत्नों का चुनाव और सफलता

उचित रत्नों का चुनाव और सफलता
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कर्कलग्न में जन्मा एक व्यक्ति मेरे पास आया । उसकी जन्मकुण्डली में चन्द्रमा 11 th स्थान में पड़ा था एवं मंगल पनचं स्थान में पड़ा था । गुरु आठवें स्थान में था । जातक को कोई भी प्रयत्न करने पर उसका फल नहीं मिल रहा था । धन की बड़ी भारी समस्या थी । नौकरी नहीं मिल रही थी । आर्थिक स्थिति विकट थी । जातक मानसिक रूप से भी बहुत परेशान था । स्वतन्त्र रूप से कई रत्न पहनने पर कर्कलग्न कोई काम नहीं कर रहा था ।
👍मानसिक परेशानी कम करने के लिए मोती पहनाना बहुत जरूरी था । किसी ने पुखराज उसे पहना रखा था पर उसे पहनने के बाद तो जातक और अधिक परेशानियों में उलझता जा रहा था । ऐसा स्वभाविक भी था क्योंकि कर्क लग्न वालों के लिए गुरु 6th Lord होता है । षष्ठेश होने से उसका रत्न पहनना लाभकारी हो ही नहीं सकता ।मैंने पुखराज रत्न को निकालने को कहा /
👌फिर मैंने इस व्यक्ति को लग्नेश चन्द्र का रत्न मोती ' एवं कर्कलग्न वाले परमयोग कारक ग्रह मंगल का मूंगा संयुक्त रूप में ' बीसा यन्त्र ' में जड़वा कर गले में धारण कराया । 

क्योंकि इन ग्रह स्थितियों में लग्नेश एवं योगकारक ग्रह को ज्यादा अनुकूल ( Strong ) करना बहुत जरूरी था । मंगल को ताकतवर ( Strong ) करने से विद्या व व्यवसाय में सफलता , उन्नति के मार्ग खुलते तथा मोती पहनने से किये गए प्रयत्नों में सफलता मिलनी शुरू होने के साथ - साथ मानसिक तनाव भी कम होगा । 
👌फिर इस कुण्डली में चन्द्र + मंगल का परस्पर दृष्टि सम्बन्ध होने से लक्ष्मीयोग ' की सृष्टि भी हो रही थी पर लक्ष्मी योग मुखरित नहीं हो रहा था । 

अतः चन्द्र + मंगल योग का रत्नजड़ि लक्ष्मीयन्त्र पहनाने से जातक का भाग्य ही बदल गया।  जिन लोगों की जन्म कुण्डली में मंगल व चन्द्र की युति हो , अथवा दोनों एक दूसरे के सामने हों अथवा परस्पर केन्द्र में हों तो मोती,,+मूंगा सँयुक्त रूप में बीस यन्त्र के साथ रत्न पहने उन लोगों को यह यंत्र अवश्य धारण करना चाहिए ।

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