ग्रह पीड़ा निवारण और जड़ें

ग्रह पीड़ा निवारण और जड़ें

जब आप किसी ग्रह की पीड़ा निवारण के लिए उपासना नहीं कर सकते,रत्न पहनना आपकी सामर्थ्य में नहीं हैं,उपरत्न भी क्रय नहीं कर सकते हैं और यन्त्र बना नहीं सकते हैं तो ऐसे में निराशा आप पर हावी होने लगती है आपको कोई उपाय नहीं सूझता हैं| ऐसे में आप कुछ विशिष्ट वनस्पतियों की जड़ों (मूल) को धारण करके ग्रह की पीड़ा शांत कर सकते हैं| आपको तो यह पता होना चाहिए कि कौन से ग्रह के लिए किस वनस्पति की मूल (जड़) प्रभावशाली रहेगी|

   यह जान लें कि यह जड़े उतना ही प्रभाव दर्शाती हैं जितना कि एक रत्न|
     

        कौन से ग्रह के लिए कौन सी जड़ पहनें

अब बताते हैं कि किस ग्रह के लिए किस जड़ को प्रयोग में लाते हैं| 

   ग्रह
             जड़    
  सूर्य
          बेल
  चन्द्र
          खिरनी
  मंगल
          अनंत मूल
  बुध
          विधारा
  गुरु
          हरिद्रा,भारंगी या केले की मूल
  शुक्र
          सरपोंखा (सिंह पुच्छ)या अरण्ड मूल
  शनि
          बिच्छु(हत्था जोड़ी)
  राहु
          श्वेत चन्दन मूल
  केतु
          अश्वगंधा की जड़
  
जड़ी प्राप्त करने की रीति

 जिस दिन जड़ी लानी हो,उससे पूर्व दिन स्नानादि के बाद अर्थात् शुद्ध होकर जड़ी को निमंत्रित कर आयें| इसके लिये सम्बंधित वृक्ष के पास संध्या में जाकर ‘मम कार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा’ मन्त्र बोलते हुए उस पर पीले चावल चढायें| साथ ही उसकी जड़ में गंगाजल मिश्रित एक लौटा जल चढ़ायें और धूप या एक दीपक जला दें| 
अगले दिन शुभ मुहूर्त में स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर भगवन शिव का ध्यान करते हुए उस वृक्ष या झाड़ तक जाये| वह खड़े होकर,हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

     ‘हे वृक्ष मैं अत्यंत विश्वास के साथ आपकी मूल (जड़) को ले जा रहा हूँ| आप मुझ पर कृपा रखना| यदि आपके वृक्ष से सम्बद्ध कोई राक्षस,वेताल,पिशाच,सर्पादि हो तो कृपा करके भगवान शिव की आज्ञा से वे सब यहाँ से चले जाएँ|’  तदोपरांत नीचे लिखा मन्त्र बोलो-

        ॐ बेतालाश्च पिशाचाश्च राक्षताश्च सरिश्र्पा |
 
        अपसर्पन्तु ते सर्वे वृक्ष दिस्माच्छिवा ज्ञर्या   ||

                    
                      (बाद में नमस्कार मन्त्र बोलें)
                      
                  नमस्कार मन्त्र  
         ॐ नमस्तेमृत सम्भूते बल वीर्य विवर्द्धिनी |
         बलमायुश्च मे देहि पापान्मे त्राहि दूरतः ||
                    
                     (इसके बाद जड़ खोदने का मंत्र बोलें)
             
                खोदने का मन्त्र
        येन त्वां खनते ब्रम्ह ,येन त्वां खनते भ्रगु |
      येन हीन्दोय वरुणो ,येन त्वामपचक्रमे |
      तेनाहं खनिश्यामि मंत्रपूतेन पाणिना |
      मा पातेमानि पतित जोन्यथा माते भवेत् |
      अत्रैव तिष्ठ कल्याणि मम कार्यकारी भव |
      मम कार्य सिद्धे ततः स्वर्ग  गमिष्यामि ||

प्रार्थना के बाद किसी नुकीली लकड़ी की सहायता से धीरे-धीरे मिट्टी हटाकर उस झाड़ की मूल निकाल लें| मूल को वृक्ष से अलग करने के लिए लोहे के किसी यंत्र का प्रयोग न करें| उसे हाथ से ही पृथक करें या फिर उसके लिए चाँदी का चाकू प्रयोग में लायें| मूल को पृथक करने के उपरान्त उसके सम्मुख निम्नलिखित मन्त्र का सात बार उच्चारण करके उसे घर ले आएं| 
 
                  मन्त्र
            ‘ओ३म वनदण्डे महादण्डाय स्वाहा’
           (मन्त्र का सात बार उच्चारण करें)
          

     मूल (जड़) कब लाएँ?

किसी भी जड़ को रवि-पुष्य,गुरु-पुष्य,शनि-पुष्य योग में अभीष्ट जड़ी के वार वाले दिन उसी ग्रह की होरा में उखाड कर लायें| ग्रह सम्बन्धी वार इसी प्रकार समझें-

  ग्रह
  वार
  समय
  सूर्य
  रविवार
सूर्य की होरा में
  चन्द्र
  सोमवार
चन्द्र की होरा में
  मंगल
  मंगलवार
मंगल की होरा में
  बुध
  बुधवार
बुध की होरा में
  गुरु
  गुरुवार
गुरु की होरा में
  शुक्र
  शुक्रवार
शुक्र की होरा में
  शनि
  शनिवार
शनि की होरा में
  राहु
  बुधवार या शनिवार
बुध या शनि की होरा में
  केतु
  बुधवार या शनिवार
बुध या शनि की होरा में   

ब्रम्हमुहूर्त या सायंकाल किसी जड़ी-बूटी को प्राप्त करने का शुभ समय होता है| जड़ी को छाया में ही सुखाकर प्रयोग में लाना चाहिए| जड़ी को घर लेट समय उस पर अपनी परछाई न पड़ने दें| इसके लिए सबसे अच्छा यही है कि शुद्ध कोरे वस्त्र में लपेट करके लायें| जड़ी लाते समय पीछे मुड़कर कदापि न देखें|

जड़ी किसी कुएँ ,बिल, देव-मंदिर, श्मशान व गलत मार्ग में पड़ने वाले वृक्ष के नीचे उगने वाली गली-सड़ी जड़ी न लायें| जड़ी लाने का स्थान साफ और मनमोहक हो| वन में उगी जड़ी या साफ स्थान जड़ी ही प्रयोग में लायें| 

जड़ी कैसे धारण करें ?

लायी हुई जड़ का छोटा भाग ताबीज में भरकर धारण करें| उसी ग्रह के रंग के कोरे कपड़े में बांधकर भी बाजू में बांध सकते हैं| गले में भी उसी रंग के धागे में पिरोकर पहन सकते है| एसा न करने पर विशेष स्थिति में जेब में भी रख सकते हैं|

आवश्यक नोट: जड़ी प्राप्त करने से पहले परामर्श अवश्य ले |

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