शनि देव
भाव, राशि, सातवे भाव का शनि और ज्योतिष
इस लेख के शुरू होने से पहले हम भाव और राशि में फर्क जान लेते हैं कुंडली में बारह भाव और बारह ही राशियां होती हैं, भाव स्थिर होते हैं लेकिन राशियां सूर्योदय के साथ बदलती रहती हैं।
कुंडली में जो आपको संख्या दिखती है वह राशि होती है और जो बारह खाने दिखते हैं वह भाव होते हैं बीच के चार खाने ऊपर से बायीं ओर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव होते हैं। इसी तरह के क्रम चलता रहता है जिसके जन्म के समय जो राशी उदित होती है वह उस व्यक्ति का लग्न बन जाती है और जिस राशि में जन्मकुंडली में चंद्रमा होता है वह उस व्यक्ति की राशि, उदाहरण के लिए अगर बीच के खाने में 6 नंबर है और और चंद्रमा 10 नंबर यानि पांचवे भाव में है तो हम कह सकते हैं जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ है और उसकी राशि मकर है।
वैसे तो मैं एक ग्रह के आधार पर होने वाले फलादेश का कभी पक्षधर नहीं रहा हूं लेकिन सातवे भाव में शनि का फलादेश मुझे बहुत रोचक लगता है इसलिए कुछ अनुभव साझा करना चाहता हूं, सातवें भाव में जब शनि होता है तो वह तीसरी दृष्टि से भाग्य भाव को देखता है सातवीं दृष्टि से लग्न को और दसवीं दृष्टी से सुख स्थान को देखता है, ज्योतिष में शनि मजदूरों/मेहनत का कारक होता है शनि व्यक्ति को प्रयत्नशील बनाता है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति लग्न में देखने में काफी ज्यादा खुद्दार होता है भाग्य में देखने पर सेल्फ मेड होता है और सुख स्थान में देखने पर हवाई महल नहीं बनाता जमीन पर रहता है।
शनि जब सातवें भाव में होता है तो उसके कई सारे फलादेश होते हैं लेकिन उन फलादेशोंं में से एक फलादेश ये भी होता है कि व्यक्ति बहुत कम उम्र में कमाने लगता है, अब इसे समझ लेते हैं कई बार व्यक्ति मजबूरी में कमाना पड़ता है, कई बार व्यक्ति शौक पूरे करने के लिए कमाने लगता है और कई बार प्रतिभा के दम पर व्यक्ति के पास लक्ष्मी चलकर आ जाती है।
मैंने कई कुंडलियां देखी और कई कुंडलियों में जिनमें सातवे भाव में शनि था उनमें पाया कि कुछ लोगों को परिवारिक समस्या की वजह से बेमन से बेमन का काम करना पड़ा, कुछ लोग जो पढ़े लिखे नहीं थे उन्होंने अपने खर्चे निकालने के लिए कम उम्र में ही दलाली/लाइजनिंग आदि करके कमाई की और कुछ लोग जो बहुत पढ़े लिखे थे उन्होंने कम उम्र में ही ट्यूशन आदि पढ़ाना शुरू कर दिया।
सभी स्थितियों में सातवे भाव में शनि होने से सबकी कम उम्र में ही आमदनी शुरू हुई थी सबकी देश, काल, परिस्थिति और बाकी ग्रहों की स्थिति अलग थी तो उनके कारण और स्रोत भी अलग-अलग थे।
इसका जो कारण मुझे लगता है वो ये की लग्न को देखता शनि व्यक्ति को खुद्दार और भाग्य भाव को देखकर सेल्फ मेड बनाता है ऐसा व्यक्ति हर किसी से मदद नहीं मांगता हाथ नहीं फैलाता, लेकिन भौतिकवादी युग में खर्चे सबके होते हैं तो वह जातक अपनी देश, काल, परिस्थिति अपनी काबिलियत के अनुसार अपनी आमदनी के रास्ते खुद बनाता है।
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