कहानी
(((( माता शबरी की कथा ))))
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बात भगवान राम के जन्म से पहले की है, जब भील आदिवासी कबीले के मुखिया अज के घर बेटी पैदा हुई थी।
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उसका एक नाम श्रमणा और दूसरा नाम शबरी रखा गया। शबरी की मां इन्दुमति उसे खूब प्यार करती थी।
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बचपन से ही शबरी पशु-पक्षियों की भाषा समझकर उनसे बातें करती और जब सबरी की मां उसे देखती, तो कुछ समझ नहीं पाती थी।
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कुछ समय बाद एक पंडित ने शबरी के परिवार को बताया कि वो आगे चलकर संन्यासी बन सकती है।
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इस बात का पता चलते ही शबरी के पिता ने उसका रिश्ता तय कर दिया।
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जैसे ही शादी का दिन नजदीक आया, शबरी के घर वालों ने खूब सारी बकरियां और अन्य जानवर घर के पास लाकर बांध दिए।
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एक दिन शबरी का मां जब उसके बाल बना रही थी, तो उसने मां से पूछा, “इतने सारे जानवर हमारे घर क्यों लाए गए हैं।”
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मां ने जवाब दिया, ‘बेटी, तुम्हारा विवाह होने वाला है, इसलिए हम लोगों ने इनका इंतजाम बलि के लिए किया है।
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तुम्हारी शादी के दिन ही बलि प्रथा होगी और फिर इनसे स्वादिष्ट भोजन बनाकर सबको परोसा जाएगा।’
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यह सब सुनकर शबरी दुखी हो गई। काफी देर तक शबरी ने उन जानवरों को आजाद करने के बारे में सोचा।
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सोचते-सोचते शबरी के मन में हुआ कि अगर ये जानवर यहां नहीं होंगे, तो इनकी बलि रूक सकती है। ऐसा नहीं हुआ, तो मेरे घर से कहीं चले जाने पर ही यह बलि रुकेगी।
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जब मैं ही नहीं रहूंगी, तब न विवाह होगा और न ही बलि प्रथा। इससे मासूम जानवर बच जाएंगे।
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इसी सोच के साथ जानवरों को रखी गई जगह पर सबरी पहुंची। उसने सोचा कि उन्हें खोल देती हूं, लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई।
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उसके बाद शबरी जंगल की तरफ भागने लगी। भागते-भागते शबरी ऋषिमुख पर्वत पहुंच गई।
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वहां करीब दस हजार ऋषि रहा करते थे। शबरी को लगा कि वो भी इसी जंगल में किसी तरह ऋषि-मुनियों की सेवा करके अपना जीवन जी लेगी।
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वो चुपचाप उसी जंगल में एक हिस्से में किसी तरह से रहने लगी। शबरी रोजाना ऋषि-मुनियों की झोपड़ी के आगे झाड़ु लगाती और हवन के लिए लकड़ियां भी लाकर रख देती।
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ऋषि-मुनियों को समझ नहीं आ रहा था कि जंगल में उनके काम अपने आप कैसे हो रहे हैं।
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एक दिन शबरी को किसी ऋषि ने देख लिया। उसे देखते ही उसका परिचय पूछा।
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जैसे ही शबरी ने बताया कि वो भील आदिवासी परिवार से संबंध रखती है, तो उसे ऋषियों ने खूब डांट लगाई।
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शबरी को इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं था कि उसकी जाति छोटी है और उसे ऋषियों द्वारा जाति की वजह अपमान सहन करना पड़ेगा।
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इतना सब होने के बाद भी शबरी हर ऋषि-मुनि के दरवाजे पहुंचती और उनके आंगन में झाड़ू लगाकर उनसे गुरु दीक्षा देने के लिए कहती।
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हर कोई शबरी को उसकी जाति की वजह से अपने आश्रम से भगा देता था। ऐसा होते-होते काफी समय बीत गया। उसके बाद शबरी मतंग ऋषि की कुटिया में पहुंची।
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वहां पहुंचकर मतंग ऋषि को सबरी ने बताया कि वो उनसे गुरु दीक्षा लेना चाहती है।
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उन्होंने खुशी-खुशी उसे अपने गुरुकुल में रहने दिया और भगवान से जुड़ा ज्ञान देते रहे। शबरी ने भी अपने गुरु मतंग ऋषि की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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वो गुरुकुल के भी सारे काम करती थी। शबरी से खुश होकर मतंग ऋषि ने उसे बेटी मान लिया था।
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समय के साथ मतंग ऋषि का शरीर बूढ़ा हो गया। उन्होंने एक दिन शबरी को अपने पास बुलाया और कहा, ‘बेटी मैं अपना देह त्यागना चाह रहा हूं। बहुत साल हो गए इस शरीर में रहते-रहते।’
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शबरी ने दुखी मन से कहा, ‘आपके ही सहारे मैं इस जंगल में रह पाई हूं। आप ही चले जाएंगे, तो मैं जीकर क्या करुंगी। आप अपने संग मुझे भी ले जाइए। मैं भी देह त्याग दूंगी।’
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मतंग ऋषि ने जवाब दिया, ‘बेटी, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। राम तुम्हारी चिंता करेंगे और ध्यान भी रखेंगे।’
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शबरी ने ‘राम’ का नाम सुनने के बाद पूछा, ‘वो कौन हैं और उन्हें मैं किस तरह से ढूढूंगी।’
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मंतग ऋषि ने बताया, ‘राम कोई और नहीं भगवान हैं। वो तुम्हें सारे अच्छे कर्मों का फल देंगे। तुम्हें उन्हें ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है।
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वो एक दिन खुद तुम्हें खोजते हुए इस कुटिया में आएंगे और तु्म्हें उनके हाथों ही मोक्ष मिलेगा। तब तक तुम इसी आश्रम में रहो।’
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इतना कहते ही मंतग ऋषि ने अपना शरीर त्याग दिया।
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शबरी के मन में मंतग ऋषि के जाने के बाद से एक ही बात थी कि भगवान राम स्वयं उससे मिलने आएंगे।
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वो रोज भगवान राम से मिलने के लिए बाग से अच्छे-अच्छे फूल लाकर पूरा आश्रम सजाती और भगवान के लिए बेर तोड़कर लाती।
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भगवान के लिए बेर चुनते हुए शबरी उन्हें चख लेती थी, ताकि भगवान वो सिर्फ मीठे बेर ही दे।
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रोजाना शबरी इसी तरह भगवान के दर्शन की आस में फूल और बेर इकट्ठा करती रहती थी।
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इसी तरह इंतजार में कई साल बीत गए। शबरी का शरीर एकदम वृद्ध हो गया।
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एक दिन आश्रम के पास के ही तलाब में शबरी पानी लेने के लिए गई। तभी पास के ही एक ऋषि ने उसे अछूत कहते हुए वहां से भागने के लिए कहा और एक पत्थर मार दिया।
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वो पत्थर जब शबरी को लगा, तो उसे चोट लगी और खून बहने लगा।
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बहते हुए खून की एक बूंद उसी तलाब के पानी में गिर गई। तभी पूरा तालाब का पानी खून में बदल गया।
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ये सब होता देखकर ऋषि ने शबरी को ही डांटा और कहा कि पापीन तुम्हारी वजह से पूरा पानी खराब हो गया।
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रोज ऋषि उस पानी को साफ करने के लिए अपनी कई तरह की विद्याओं का इस्तेमाल करते।
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कई सारे जतन करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। फिर उन्होंने गंगा जैसी कई पवित्र नदियों का जल भी उस तालाब में डाला।
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फिर भी तालाब का पानी साफ नहीं हो पाया और वो खून जैसा ही रहा।
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कई सालों तक तालाब के पानी को साफ करने की कोशिश के बाद भी कुछ काम नहीं आया, तो ऋषि ने थककर सबकुछ छोड़ दिया।
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इस घटना के कई सालों के बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता के हरण के बाद उन्हें ढूंढते हुए उसी तालाब के पास पहुंचे।
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ऋषि-मुनियों ने उन्हें पहचान लिया। भगवान को वहां देखकर ऋषियों ने तालाब का पानी साफ करने के लिए भगवान को अपने पैर उसमें डालने के लिए कहा, लेकिन पानी जैसे का तैसा ही था।
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ऋषि-मुनियों ने भगवान से भी कई अन्य जतन करवाए, लेकिन वो पानी जस का तस खून जैसा ही रहा।
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तब भगवान ने ऋषियों से पानी के रक्त में बदलने की कहानी पूछी।
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तब ऋषि ने शबरी को पत्थर मारने वाली सारी बात बता दी। उसके बाद कहा कि वो महिला ही अपवित्र है, छोटी जात की है, इसलिए ये सब हुआ है।
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उसी वक्त भगवान राम ने कहा, ‘ये सब आप लोगों के खराब वचनों से हुआ है। शबरी को इस तरह के शब्द बोलकर आप लोगों ने उसे नहीं, बल्कि मेरे दिल को घायल किया है।
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इसी घायल दिल के रक्त का प्रतीक यह तालाब का लाल पानी है।’
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आगे भगवान राम बोले, ‘कहा हैं वो माईं मैं उनसे मिलना चाहता हूं।’ तबतक शबरी उसी तलाब के पास पहुंच जाती हैं।
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इस दौरान शबरी के पैर को ठोकर लगती है और कुछ घूल उस तालाब में गिर जाती है। तभी सारा पानी साफ हो जाता है।
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भगवान सबसे कहते हैं कि देखिए, आप लोगों ने क्या कुछ नहीं किया, लेकिन पानी साफ नहीं हो पाया।
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अभी सिर्फ इनके पैर की थोड़ी-सी धूल ने ही तलाब का पानी साफ कर दिया।
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भगवान राम को शबरी पहचान चुकी थीं। उन्हें प्रणाम करके शबरी ने कहा, ‘भगवान! आप मेरे साथ कुटिया में चलिए।’ भगवान भी खुशी-खुशी शबरी के साथ चल पड़े।
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फूलों से शबरी ने भगवान राम का स्वागत किया। वो सीधे बेर तोड़ने के लिए बाग गईं और चख-चखकर उनके लिए बेर लेकर आई।
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उन्होंने बड़े ही प्यार से भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को बेर दिए। भगवान राम ने भी उतने ही प्यार से उन बेर को खाना शुरू किया।
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तभी बेर देखकर मुंह बनाते हुए लक्ष्मण ने कहा, ‘भैया ये बेर जूठे हैं, इन्हें आप कैसे खा सकते हैं।’
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भगवान ने जवाब दिया. ‘लक्ष्मण! ये जूठे नहीं, बल्कि बहुत मीठे हैं। शबरी माई हम सबके लिए ये बहुत प्यार से तोड़कर लाई हैं।’
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इतना कहकर भगवान राम प्यार से उन बेर को खाने लगे। भगवान ने जाते हुए शबरी माई से कहा, ‘आप मुझसे जो चाहे वो मांग सकती हैं।’
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शबरी ने उन्हें कहा, ‘मतंग ऋषि के कहने पर मैं आजतक सिर्फ आपके दर्शन करने के लिए जी रही थी। अब आप मुझे मोक्ष प्रदान कीजिए। मैं अपना शरीर आपके सामने ही त्यागूंगी।’
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उसी वक्त शबरी ने अपना शरीर त्याग दिया। भगवान राम ने अपने हाथों से उनका अंतिम संस्कार किया और सीता मां की खोज में आगे बढ़ गए।
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इस तरह से ऋषि मतंग की बात सच साबित हुई और शबरी को भगवान राम के दर्शन भी हुए। तभी से भगवान राम को शबरी के राम भी कहा जाने लगा।
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