शनि के अचूक फल

#448  ༒ शनि के अचूक फल ༒ 

1 . शनि की दृष्टि अपने घर के सिवाय सर्वत्र हानि करती है । 

2. छठे , आठवें तथा बारहवें भाव का कारक शनि इन भावों में हो तो लाभ करेगा । 

3 . आठवें भाव में शनि नीच का हो तो धनपति बनाएगा । शनि नीच का होकर वक्री हो तो करोड़ों का स्वामी बनाएगा । 

4. शनि , मीन , मकर , तुला व कुंभ राशि में लग्नस्थ हो तो व्यक्ति चिंतनशील , सुखी एवं ख्याति प्राप्त होता है । पर भाग्योदय मंद गति से होता है । 

5 . वृषलग्न में शनि नवम या दशम भाव में हो तो राजयोग बनेगा । ऐसा शनि सूर्य व बुध षष्ठ संबंध में से कोई संबंध कर ले तो अति योगप्रद होगा । अगर संयोग से जन्म राशि भी मकर या कुंभ हो तो उसको जब ढैया पनौती आएगी तो वह लाभप्रद होगी । यदि अनिष्ट का कुछ प्रभाव गोचर से बनता है तो वह अंत में होगा , क्योंकि राजयोगकारी ग्रह के प्रारंभ में प्रभाव प्रबल होता है । 

6 . वर्ष प्रवेश के लग्न वृष या तुला हो तो शनि शुभ फल देगा । यदि पनौती उसे चल रही हो तो भी नाम मात्र का कष्ट होगा । 

7. शुक्र + शनि में अभिन्न मित्रता है । अतः वृष या तुलालग्न में शनि शुभ फल प्रदान करेगा । 

8 . वर्ष में वृषलग्न हो और जलराशि मकर हो तो धनु व मीन का शनि अनिष्टप्रद रहेगा । मकर व कुम्भ का शनि शुभप्रद रहेगा । 

9 . जन्म या वर्ष में वृषलग्न हो और शनि + गुरु योग बनता हो या शनि की बृहस्पति से प्रतियुति हो तो भाग्यनाशक योग होगा । 

10. वृष या तुलालग्न हो और विंशोतरी शनि की महादशा चल रही हो साथ में पनौती भी आ जाए तो भी वह अधिक अनिष्टप्रद नहीं होगी । 

11. शनि में शुक्र की महादशा या शुक्र में शनि की दशा हमेशा अनिष्टप्रद होगी । 

12. नीचस्थ या वक्री गोचर का शनि जब जन्म राशिगत हो तो अनिष्टप्रद होगा । 

13. शनि प्रायः राशि के अंत में फल देता है । सिंह लग्नस्थ शनि मंगल से दूषित हो तो जातक अपघात , आकस्मिक मृत्यु , कारावास या रिश्वत के आरोप में पकड़ा जाता है । 

14. शनि + सूर्य का योग पितृ स्थान में होने से पिता से द्वेष व शत्रुता बढ़ाता है । 

15 . चंद्र + शनि युति कर्क राशि में उत्साहहीनता व व्यसन देती है । चंद्र + शनि युति सिंह राशि में बड़ों से विवाद कराती है । चंद्र + शनि युति मेष राशि में होने से झगड़े करवाती है । 

16. चंद्र + शनि युति अनिष्टप्रद है । इससे जीवन का उत्साह ओज , कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है । यह यश रोकता है । 

17. सूर्य से 5 , 6 , 8 , 9 भाव में राशि पर शनि आएं तो अनिष्टकारी होगा । 

18. जन्म में शनि स्थित राशि में या उससे छठवें आठवें स्थान या त्रिकोण में गोचर का बृहस्पति आए तो अनिष्ट करेगा ।

19. जन्मकालिक सूर्य से सप्तम स्थान पर गोचर का शनि आए तो रोगग्रस्त करेगा । 

20. जन्मकालीन बुध तथा चंद्रमा को यदि गोचर का शनि अपनी दसवीं दृष्टि से देखे तो अनिष्ट अवश्य करेगा ।

21. जन्म कालिक मंगल तथा शनि स्थित राशियों पर अथवा उससे सप्तम स्थान की राशि पर ग्रहण आए तो जीवन में संकट आते हैं ।

22. अष्टम भाव स्थित राशि पर गोचर का शनि विशेष अनिष्ट करता है । 

23. जन्म की विंशोतरी दशा से चौथी दशा शनि की हो तो अनिष्टप्रद होती है । 

24. मीन , तुला और धनु राशि का शनि लग्न में हो तो जातक समृद्धशाली होता है । 

25. लग्न का शनि राशि 1 , 2 , 5 , 10 का हो या 4 , 8 , 12 राशि का हो तो भाषण शक्ति में बाधा करेगा । 

26. शनि चतुर्येश होकर दशम भाव में बैठे तो मनुष्य छोटी स्थिति से उठकर महान् पदवी प्राप्त करेगा । 

27. शनि लग्नेश या अष्टमेश होकर बली हो तो दीर्घ आयुष्य का सुख देगा ।

28. शनि की दृष्टि द्वितीय भाव , भावेश , पंचम भाव , भावेश अथवा बुध पर हो तो अल्प विद्या या विघ्न युक्त विद्या प्राप्ति होगी । 

29. एकादश भवन में स्थित शनि मनुष्य की मृत्यु सन्निपात व स्नायु रोगों से कराता है । 

30. मकर अथवा कुंभलग्न का स्वामी शनि यदि कुण्डली में पीड़ित हो तो जंघाओं में कष्ट देगा । 

31. सप्तमेश शनि हो और सप्तम भाव तथा शुक्र पर उसकी शुभ दृष्टि हो तो विवाह देरी से होता है । 

32. पंचमेश शनि बलवान हो तो लड़कियों की भरमार रहती है । 

33. शनि चंद्र पर अपनी दृष्टि का प्रभाव डाले तो जातक वैरागी होगा । 34. चतुर्येश शनि बलवान हो तो जमीन जायदाद का सुख प्राप्त होगा । 

35. नीच राशि में शनि प्रायः नौकरी करवाता है । 

36. शनि + सूर्य की युति पिता पुत्रों में मनोमालिन्य रखती है । अलग फल होते हैं , पर अष्टम भाव में दरिद्रता देती है । यह युति पिता व पुत्रों में से एक को हानि देती है । 

37 . शनि + चंद्र की युति योग माता - पुत्र में मनोमालिन्य देता है पर अलग - अलग भावों में अलग - अलग फल प्राप्त होता है फिर भी अष्टम भाव में जलोदर रोग देता है । 

38. शनि + मंगल की युति भयंकर अवरोध योग है । अलग - अलग भावों में अलग कर पाएं तो सम्पत्ति नष्ट होती है । 

39. शनि + बुध युति योग वाला व्यक्ति अन्वेषक होता है , पर निर्णय लेने में अस्थिरता रहती है । अष्टम स्थान में दीर्घायुष्य बनती है । 

40. शनि + गुरु युति योग इसके विचित्र परिणाम प्राप्त होते हैं । सुयश , सम्पत्ति व संतति में से एक का अभाव रहेगा । वंशश्रम की ज्यादा संभावना । 

41. शनि + राहु युति योग महाविचित्र परिणाम आते है । आयु के 42 वें वर्ष में भाग्योदय होता है । अकस्मात धन प्राप्ति व हानि होती है । 


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