विभिन्न भावों में शनि की स्थिति का प्रभाव
विभिन्न भावों में शनि की स्थिति का प्रभाव
प्रथम भाव में शनि तुला, मकर या कुभ राशि में प्रथम भाव मे शनि अत्यत भाग्यशाली, सुख-समृद्धि कारक है तथा राजकीय सेवा का अवसर देता है। अन्य राशियों में होने पर दुबला शरीर विलंब की प्रवृत्ति के साथ ही आत्मविश्वास प्रदान करता है किसी लक्ष्य की प्राप्ति में विलंब होगा, परंतु आखिरकार सफलता मिलेगी।
द्वितीय भाव में शनि द्वितीय भाव मे तुला, मकर या कुभ राशि में : स्थित शनि आर्थिक स्थिति सुदृढ करता है। अन्य राशियो में स्थित होने पर कठिन परिश्रम से कम आय देता है, परंतु व्यक्ति युवावस्था 'युवावस्था के बाद घर से दूर रहकर धन कमाता है।
तृतीय भाव में शनि साहसी, उदार, बुद्धिमान, शासन में उच्च पद, आर्थिक स्थिति के लिए शुभ, निराशा की प्रवृत्ति ।
चतुर्थ भाव में शनि बचपन में बीमारी / मो. अचल संपत्ति व वाहन के लिए अशुभ स्थिति, आलसी ।
पंचम भाव में शनि : शठ, दुष्ट बुद्धि, अस्थिर प्रारंभिक शिक्षा या माध्यमिक शिक्षा में व्यवधान सतान, ज्ञान, धन व पारिवारिक सुख मे कमी ।
षष्ठम भाव में शनि साहसी शत्रुओं पर विजय, अधिक भोजन करने वाला , लंबी चलने वाली परंतु कम कष्टवाली बीमारी अन्यथा स्वास्थ्य सामान्य ।
सप्तम भाव में शनि पारिवारिक जीवन में कठिनाई, कमजोर पाचनतंत्र . कूटनीतिज्ञ, विदेश यात्रा ।
अष्टम भाव में शनि दीर्घायु, आलस्य, दुर्बल शरीर, कर्तव्यनिष्ठ , श्वास सबधी बीमारी, कम सतान।
नवम भाव में शनि बलवान् होने पर धार्मिक क्षेत्र में उच्च आदर पाएगा, परंतु प्रतिकूल स्थिति होने पर भाग्य में कमी, अधर्मी व बडो का आदर न करनेवाला होगा।
दशम भाव में शनि शासन में उच्च स्थान, सुप्रसिद्ध कृषि कार्य में निपुण । गरीब व निर्बल व्यक्तियो की सहायता हेतु तत्पर, धार्मिक स्थानों की यात्रा।
एकादश भाव में शनि भाग्यशाली सुदृढ़ आर्थिक स्थिति सुखी परिवार, शासन सहायक, अनेक सेवको का स्वामी।
द्वादश भाव में शनि निराशावादी, भाग्य व धन में कमी, शत्रुओं में वृद्धि ।
शुभम् भवतु…
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