वैदिक ज्योतिष-कुंडली में शनि ग्रह
वैदिक ज्योतिष-कुंडली में शनि ग्रह
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि ग्रह को कर्म का कारक और फलदाता माना गया है। शनि न्याय का देवता है । लेकिन लोगों को शनि का भय दिखाकर ठगा जाता है| क्योंकि सदियों से लोगों के दिलों में शनि का भय गहरे तक बैठ चुका है । जब भी किसी को दुःख कष्ट घेरते हैं वह व्यक्ति किसी न किसी ज्योतिषी या भविष्यवक्ता के पास जाता है| ज्योतिषी भी परेशानियों का कारण कुंडली में शनि ग्रह को ही बताते हैं । कुंडली में बारह खाने होते हैं जिन्हे घर या भाव भी कहा जाता है । शनि को तीन खानों (घरों या भावों ) में ही शुभ फल देने वाला माना गया है और वो है तीसरा, छठा और ग्यारहवां ।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि ग्रह जब चन्द्र राशि (जन्मसमय में चन्द्रमा जिस घर में हो ) से बारहवें , पहले तथा दुसरे स्थान पर आता है उसी समय को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है । शनि ग्रह प्रत्येक राशि में अढ़ाई साल रहता है मतलब साढ़े सात साल - मतलब साढ़ेसाती। वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि ग्रह रोग, विज्ञान, लोहा, खनिज, कर्मचारी, सेवक, जेल, आयु और दुख का कारक माना जाता है।जातक की कुंडली में यदि शनि अशुभ स्थान पर बैठा है तो नकारात्मक फल देता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि ग्रह मकर एवं कुम्भ राशियों का स्वामी होता है| शनि तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीच का कहा गया है| ये रात्री बली ग्रह है । हर काम में रूकावट तमोगुणी, आलस्य युक्त , वृद्ध अवस्था, चुगलखोर, वायु तत्व प्रधान और नपुंसक ग्रह है | और भी विस्तार से अगर बात करें तो कुंडली में शनि ग्रह को रोग, आयु, मृत्यु, अपमान, कुटिलता, स्वार्थ, लोभ, मोह, निंदा आदि का कारक भी माना गया है| इसके अलावा आलस्य, नौकर, व्यापर, लौहा, दुःख, विपत्ति, कानून, जुआ, शराब, काला कपड़ा, शल्य नर्वस–सिस्टम, गठिया, वायु – विकार, लकवा, दरिद्रता, मजदूरी, कर्ज, भूमि का कारक भी माना गया है |
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होता है तो जातकों को इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं| जबकि कमज़ोर होने पर यह अशुभ फल देता है। कमजोर शनि जातक को आलसी, सुस्त और हीन मानसिकता का बनाता है। शनि के प्रभाव से व्यक्ति एकान्त में रहना पसंद करेगा। वंही - कुंडली में शनि ग्रह बली हो तो व्यक्ति को इसके सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। इस दौरान यह जातकों को कर्मठ, कर्मशील और न्यायप्रिय बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। यह व्यक्ति को धैर्यवान बनाता है और जीवन में स्थिरता बनाए रखता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की उम्र में वृद्धि होती है। ये 6, 8, 12 भाव का कारक है । पक्षाघात, पेट की बीमारी, कैंसर, टी.बी. जैसे लम्बे रोग भी शनि से देखे जा सकते हैं ।ज्यादातर लोगों को ज्योतिषी कुंडली में शनि ग्रह को खराब बताकर भयभीत कर देते हैं | परन्तु सभी नियमों और अनुभव को मिलाकर विचार किया जाये तो दृश्य कुछ और ही उभरता है । दसवीं और ग्यारहवीं राशियां, मकर और कुम्भ राशि शनि की अपनी राशियां हैं जिसे स्वगृही या अपने घर का कहा जाता है । ग्रहों की आपस में मित्रता और शत्रुता भी होती है| शनि की बुध व शुक्र ग्रहों से मित्रता है। कोई भी व्यक्ति अपने घर को नुक्सान नहीं करता चाहे वह कितना की दुष्ट क्यों न हो|अपने मित्र के घर को या जहां उसका मान सम्मान होता हो उस स्थान को बिना कारण के नुक्सान नहीं पहुंचाता यही नियम ग्रहों के फल के विषय में भी है । कुंडली में शनि ग्रह जब अपनी राशियों में या उच्च या मित्र राशियों में होता है तो इन् राशि वालों को बहुत की लाभ देने वाला और शुभ फलदायक होता है ।
इससे आपको पता चला होगा की किसी भी व्यक्ति की साढ़े सात साल अशुभ नहीं होते, जैसी की धारणा बनी हुई है। चूँकि शनि ग्रह न्याय का देवता है| इसलिए अपने जीवन में ईमानदार और सच्चे रहिये |अच्छा आचरण रखें , मांसाहार और शराब से दूरी बनायें शनि आपका साथ देगा ।
जातकों को शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए शनि के उपाय करने चाहिए।
मंत्र -
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
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