गोचर

नमस्कार मित्रों, 
👉👉 आज चर्चा करते हैं ग्रह गोचर एवं फलादेश पर।

🚩 जन्म कुंडली के आधार पर फल कथन में ग्रहों का गोचर अर्थात जन्म राशि से विभिन्न स्थानों में ग्रहों का तत्कालिक भ्रमण बहुत महत्वपूर्ण है। 🚩जो ज्योतिषी दशा फल और होरा फल पर पूर्णता निर्भर कर फलकथन करते हैं तथा गोचर की उपेक्षा करते हैं वह बहुत चूक करते हैं।🚩 वशिष्ठ संहिता में स्पष्ट कहा गया है ग्रह दशा फल एवं ग्रह गोचर दोनों के बीच समन्वय स्थापित कर फल कथन करना सर्वदा श्रेष्ठ होता है।🚩 पश्चिमी जगत के ज्योतिषी जन्म लग्न राशि से भी गोचर देखते हैं तथा वहां जन्म राशि सायन में सूर्य की राशि मानी जाती है।🚩

🚩ग्रह गोचर में विषय विभाग:- राज पक्ष या सरकारी कामकाज हेतु फल जानने के लिए सूर्य का गोचर को देखें।🚩युद्ध मुकदमा स्वास्थ्य लाभ के विषय में जानने के लिए मंगल का गोचर को देखें।🚩 विद्या लाभ एवं प्रतियोगिता परीक्षा का फलाफल जानने के लिए बुध का गोचर को देखें। 🚩धन लाभ, विवाह सहित समस्त मंगल कार्य में गुरु का गोचर को देखें।🚩यात्रा से संबंधित ज्ञान के लिए शुक्र का गोचर को देखें। 🚩तंत्र मंत्र दीक्षा व सुख का विचार में शनि का गोचर को देखें तथा सब कार्यों में चंद्रमा का गोचर विशेषतया देखना चाहिए।🚩

🚩(१) जन्म राशि से ग्यारहवे स्थान में सभी ग्रहों का गोचर शुभ होता है। 

🚩(२) सूर्य जन्म राशि से 3,6,10,11 स्थान में शुभ फल प्रद होते हैं।

🚩(३) मंगल एवं शनि 3, 6 और 11 स्थान में शुभ फल प्रदान करता है। 

🚩(४) चंद्रमा 1,3,6,7,10,11 स्थानों में गोचर में शुभ है। 

🚩(५)बुध 2,4,6,8,10,11 स्थानों में गोचर में शुभ होते हैं। 

🚩(६) बृहस्पति 2,5,7,9,11 स्थानों में शुभ होता है। 

🚩(७) शुक्र जन्म राशि से 1,2,3,4,5,8,9,11,12 स्थानों में शुभ है। 

🚩 गोचर में वेध विचार:- जिन स्थानों में जिस ग्रह का शुभ गोचर होता है ठीक उससे सप्तम स्थान वेध स्थान होता है। 🚩वेध स्थान का शब्दधिक अर्थ रास्ते की रुकावट है अत: वेध स्थानों में कोई ग्रह होने पर गोचर में ग्रहों का शुभ फल बाधित हो जाता है। 🚩परंतु सूर्य के लिए शनि, शनि के लिए सूर्य तथा बुध के लिए चंद्र एवं चंद्र के लिए बुध वेध उत्पन्न नहीं करता है।🚩

🚩 विपरीत वेध स्थान का विचार:- जिस तरह से वेध स्थान में ग्रह होने पर शुभ फल का स्थगन हो जाता है उसी प्रकार विपरीत वेध से अशुभ फल का भी स्थगन हो जाता है।🚩 जैसे गोचर में सूर्य  3,6,10,11 थानों में शुभ है और ठीक इनसे जो सप्तम स्थान है क्रमश: 9,12,4,5 शनि को छोड़ कोई ग्रह होने पर अपने शुभ स्थानों में भी सूर्य का शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है परंतु यदि 3,6,10,11 जोकि सूर्य का शुभ स्थान है वहां यदि कोई ग्रह हो तो जब सूर्य 9,12,4,5 स्थान में गोचर करेगा तो उसका अशुभ फल का स्थगन हो जाएगा।🚩

🚩 ग्रह गोचर का विशेष नियम:- 
(१) गोचर में ग्रह अशुभ हो परंतु गोचर काल में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या शुभ ग्रहों से युक्त हो तो शुभ फल प्राप्त होता है इसके विपरीत शुभ फल देने वाला ग्रह यदि पाप दृष्ट पापयुक्त हो तो अशुभ फल प्रदान करता है।🚩 

🚩(२) नीच, अस्त अथवा शत्रु क्षेत्री ग्रह अपना कारकत्व का फल नहीं दे पाता है परंतु ग्रह योग या दो ग्रहों के संबंध से बना शुभा शुभ फल अवश्य प्रदान करता है।🚩 सामान्यतया ज्योतिष वर्ग में यह प्रचलित है की ग्रह नीच का है क्या फल प्रदान करेगा परंतु उन्हें यह मालूम ही नहीं की ग्रह अस्त हो अथवा नीच का भी हो अथवा शत्रु क्षेत्री हो ग्रह संबंध से या ग्रह योग जनित फल का स्थगन इन अवस्थाओं में भी नहीं होता है फलित ज्योतिष में इसे ही नीच का ग्रह से राजयोग कहा गया है।🚩

🚩(३) राशियों में गोचर के क्रम में सूर्य 5 दिन पूर्व से ही अपना फल प्रदान करता है।🚩 इसी तरह चंद्रमा 72 मिनट पूर्व से ही अपना फल प्रदान करता है। 🚩मंगल अपना फल 8 दिन पूर्व से देता है, बुध 2 दिन पूर्व अपना फल देता है।🚩 बृहस्पति 45 दिन पूर्व से ही अपना फल देना प्रारंभ करता है। 🚩शुक्र 4 दिन पूर्व, शनि 45 दिन पूर्व एवं राहु और केतु 3 माह पहले ही अगली राशि का फल देने लगता है। 🚩अनुभव में आया है शनि अपना शुभाशुभ फल राशि संचार काल में ही प्रदान करता है।🚩 

🚩(४) सूर्य और मंगल राशि के प्रारंभ में, गुरु और शुक्र राशि के मध्य में तथा शनि और चंद्रमा राशि के अंत में फल देते हैं।🚩 बुध पूरी राशि में समान प्रकार से अपना फल देता है।🚩

🚩(५) जन्म कुंडली के कारक ग्रह गोचर में अशुभ होने पर विशेष अशुभ फल नहीं देते हैं तथा जन्मकुंडली के अशुभ ग्रह गोचर में शुभ होने पर भी विशेष शुभ फल नहीं देते हैं।🚩 

🚩(६) क्रूर अथवा अकारक ग्रह वक्री होने पर गोचर में अधिक क्रूर तथा कारक ग्रह वक्री होने पर अधिक शुभ होते हैं। 🚩

🚩(७) गोचर के क्रम में जो ग्रह शिघ्रगामी हो अथवा वक्री हो वह मिश्रित फल प्रदान करते हैं परंतु गुरु वक्री होकर जिस राशि में हो उसी का फल देता है।🚩 

🚩(८) गुरु राशि संचार के बाद भी 3 सप्ताह तक अपना पिछले राशि का भी फल देता रहता है।🚩

🚩 गोचर में शनि का विशेष नियम:- जन्म चंद्र राशि से 12,1 और 2 राशियों पर साडे 7 वर्षों का शनि का गोचर साढ़ेसाती कहीं जाती है। 🚩आधी अधूरी ज्ञान से युक्त ज्योतिषी शनि का गोचर को समान रूप से सभी लग्नों मे कष्टप्रद होने के विषय में कहते हैं। 🚩पर वास्तव में ऐसा है नहीं।🚩 जिनकी कुंडली में शनि बलवान, शुभ भावों के स्वामी, 3,6,11 भाव में स्थित या शुभ दृष्ट हो, कारक ग्रहों से युक्त हो, राशि बली या नवांश बली हो उन्हें विशेष अशुभ फल नहीं मिलता।🚩शनि यदि लग्न के स्वामी हो, एक साथ केंद्र त्रिकोण का स्वामी होकर योगकारक स्थिति में हो, बलवान हो फिर काहे का साढ़ेसाती? इसके विपरीत यदि शनि शत्रु क्षेत्री हो, शत्रु दृष्टि या पाप ग्रहों से दृष्ट हो , अशुभ भाव का स्वामी हो, नीच या अस्त हो तो बहुत कष्ट देता है।🚩परिवार में एक साथ कई सदस्यों को साढ़ेसाती आना अधिक  कष्टप्रद होता है।🚩 साढ़ेसाती चलने के क्रम में यदि दशा अंतर्दशा भी अशुभ हो तो और भी कष्टप्रद होता है पर दशा अंतर्दशा यदि शुभ हो तो साढ़ेसाती का अशुभ फल का अनुभव नहीं होता है।🚩 

🚩 साढ़ेसाती के पाये :- जिस दिन शनि चंद्र राशि से द्वादश भाव में प्रवेश करें उस दिन चंद्र अपनी राशि स्थिति से यदि 1,6,11 भाव में हो तो सोने के पाये मिलते हैं, अपने से 2,5,9 भाव में हो तो चांदी के पाये मिलते हैं, 3,7,10 भाव में हो तो तांबे के पाये मिलते हैं और यदि 4,8,12 स्थानों में हो तो लोहे के पाये से शनि का गोचर होता है।🚩 इसमें सुवर्ण पद से सब प्रकार का सुख, चांदी के पाये मिले हो तो शुभ, भाद्रपद में शुभाशुभ मिश्रित फल एवं लोह पाद में अनिष्ट फल होता है।🚩 ढैय्या विचार में उक्त नियम समान प्रकार से प्रभावी होता है। 🚩

🚩 विभिन्न राशियों में साढ़ेसाती का अशुभ प्रभाव :-

🚩१) मेष राशि में मध्य के ढाई वर्ष।🚩 २) वृष राशि में प्रथम के ढाई वर्ष। 🚩३) मिथुन राशि में अंत के ढाई वर्ष।🚩 ४) कर्क राशि में शेष 5 वर्ष। 🚩५) सिंह राशि में प्रथम 5 वर्ष।🚩६) कन्या राशि में प्रथम ढाई वर्ष।🚩 ७) तुला राशि में शेष ढाई वर्ष। 🚩८) वृश्चिक राशि में मध्य के ढाई वर्ष। 🚩९) धनु राशि में प्रथम ढाई वर्ष। 🚩१०) मकर राशि में प्रथम ढाई वर्ष। 🚩११) कुंभ राशि में शेष ढाई वर्ष।🚩 १२) मीन राशि में शेष ढाई वर्ष शनि अशुभ फल प्रदान करता है। 🚩उक्त तालिका से यह स्पष्ट हो जाता है कि शनि अपने शत्रु राशि और नीच राशि में ही अशुभ फल प्रद है। 🚩

🚩आज यहीं समाप्त करते हैं अगला लेख में कोई और नए विषय को लेकर उपस्थित होंगे तब तक के लिए नमस्कार।🚩


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