कुंडली में बारहवाँ भाव

जय श्रीराम ।।

          
             कुंडली में बारहवाँ भाव
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कुंडली के द्वादश भाव को व्यय एवं हानि का भाव कहा जाता है। यह अलगाव एवं अध्यात्म का भी भाव होता है। यह भाव उन अंधेरे स्थानों का प्रतिनिधित्व करता है जो मुख्य रूप से समाज से पृथक रहते हैं। ऐसी जगह जाकर व्यक्ति समाज से ख़ुद को अलग महसूस करता है। कुंडली में बारहवें भाव का संबंध स्वप्न एवं निद्रा से भी होता है। इसके साथ ही बारहवें भाव का संबंध लोपस्थान (अदृश्यता का भाव), शयन, पाप, दरिद्रता, क्षय, दुख या संकट, बायीं आँख, पैर आदि से है।

कुंडली में द्वादश भाव से धन व्यय, बायीं आँख, शयन सुख, मानसिक क्लेश, दैवीय आपदा, दुर्घटना, मृत्यु के बाद की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्महत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में द्वादश भाव मोक्ष का भाव होता है। यह भाव जातकों के जीवन में दुख, संकट, हानि, व्यय, फ़िज़ूलख़र्ची, सहानुभूति, दैवीय ज्ञान, पूजा एवं मृत्यु के पश्चात के अनुभव को दर्शाता है। काल पुरुष कुंडली में बारहवें भाव पर मीन राशि का स्वामित्व है और बृहस्पति ग्रह इस राशि के स्वामी होते हैं।

कुंडली में द्वादश भाव हानि, बाधाएँ, संयम और सीमाओं, फ़िज़ूलख़र्ची, आय से अधिक ख़र्च, कड़ी मेहनत और धोख़ेबाज़ी को दर्शाता है। हिन्दू ज्योतिष का ऐसा मानना है कि कुंडली में षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव दुःस्थान हैं ।

व्यय – द्वादश भाव का संबंध जातकों के व्यय से है। यह भाव किसी जातक के जीवन में यह संकेत देता है कि वह अपने जीवन में कितना व्यय करेगा। इसके अलावा बारहवां भाव हानि का भी संकेत करता है। यदि इस भाव में शुभ ग्रह स्थित हैं तो व्यक्ति सत्कर्मों में (दान-पुण्य) अथवा अन्य सामाजिक कार्यों में धन ख़र्च करता है।  

मोक्ष – जन्म कुंडली में लग्न भाव व्यक्ति के जीवन के प्रारंभ को दर्शाता है जबकि बारहवाँ भाव व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात प्राप्त होने वाले पुरुषार्थ, मोक्ष को दर्शाता है। यदि इस भाव पर शुभ ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करता है।

नेत्र कष्ट –  यदि जातक की जन्मपत्री में बारहवें भाव में सूर्य या चंद्रमा पापी ग्रहों से पीड़ित हों तो जातक को नेत्र संबंधी कष्ट होता है।

विदेश यात्रा – कुंडली में द्वादश भाव निवास स्थान से दूरस्थ स्थान (विदेश) को दर्शाता है। बारहवाँ भाव चतुर्थ स्थान (निवास स्थान) से नवम (लंबी यात्रा) को दर्शाता है। इस भाव से यह भी ज्ञात होता है कि जातक विदेश में निवास करेगा या नहीं।

          ज्योतिषविद वरुण शास्त्री

    वैदिक ज्योतिष व कर्मकांड विशेषज्ञ

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