भावेशों के अनुसार विंशोत्तरी दशा का फल ✨

✨भावेशों के अनुसार विंशोत्तरी दशा का फल ✨

(१) लग्नेश की दशा में शारीरिक सुख, धनलाभ और स्त्री से कष्ट होता है।
(२) धनेश की दशा में धनलाभ, पर शारीरिक कष्ट भी होता है। यदि धनेश पापग्रह से युत हो, तो मृत्यु जातक की भी हो जाती है।
(३) तृतीयेश की दशा कष्टकारक, चिन्ताजनक और सामान्य आय करानेवाली होती है। 
(४) चतुर्थेश की दशा में घर, वाहन, भूमि आदि के लाभ के साथ माता, मित्रादि और स्वयं को शारीरिक सुख होता है। चतुर्थेश बलवान्, शुभग्रहों से दृष्ट हो, तो इसकी दशा में जातक नया मकान का निर्माण करवाता है। लाभेश और चतुर्थेश दोनों दशम या चतुर्थ में हों, तो इस ग्रह की दशा में जातक मिल या बड़ा कारोबार करता है। लेकिन इस दशाकाल में पिता को कष्ट रहता है। विद्यालाभ, विश्वविद्यालयों की बड़ी डिग्रिय प्राप्त होती हैं। यदि जातक को यह दशा अपने विद्यार्थीकाल में नहीं मिले तो अ समय में इसके काल में विद्या द्वारा यश की प्राप्ति होती है।
(५) पंचमेश की दशा में धनलाभ, सम्मानवृद्धि, सुबुद्धि, माता की मृत्यु या माता को पीड़ा होती है। यदि पंचमेश पुरुषग्रह हो, तो पुत्र, और स्त्रीग्रह हो तो कन्या सन्तान की प्रापि का भी योग रहता है, किन्तु सन्तान योग पर इस विचार में दृष्टि रखना आवश्यक है।
(6) षष्ठेश की दशा में रोग वृद्धि, शत्रुभय और सन्तान को कष्ट होता है।
(७) सप्तमेश की दशा में शोक, शारीरिक कष्ट, आर्थिककष्ट और अवनीत होत है। सप्तमेश पापग्रह हो, तो इसकी दशा में स्त्री को अधिक कष्ट और शुभग्रह हो, ती साधारण कष्ट होता है।
(८) अष्टमेश की दशा में मृत्युभय, स्त्री-मृत्यु एवं विवाह आदि कार्य होते हैं।
अष्टमेश पापग्रह हो और द्वितीय में बैठा हो, तो निश्चय ही मृत्यु होती है।
(९) नवमेश की दशा में तीर्थयात्रा, भाग्योदय, पुण्य, विद्या द्वारा उन्नति, भाग्यवृद्धि सम्मान, राज्यपक्ष से लाभ और किसी महान् कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
(१०) दशमेश की दशा में राजाश्रय की प्राप्ति, धनलाभ, सम्मान-वृद्धि और सुख का मार्ग प्रशस्त होता है। माता के लिए यह दशा कष्टकारक है।
(11) एकादशेश की दशा में धनलाभ, ख्याति, व्यवसाय से लाभ एवं पिता की मृत्यु होती है। यह स्थिति सामान्य रूप से शुभफलदायक होती है। यदि एकादशेश पर चतुर ग्रह की दृष्टि हो, तो यह रोगोत्पादक भी होता है।
(१२) द्वादशेश की दशा में धनहानि, शारीरिक कष्ट, चिन्ताएं व्याधियां और स्वजनों को कष्ट होता है।
✨ग्रहों की दशा का फल सम्पूर्ण दशाकाल में एक-सा नहीं होता है, किन्तु प्रथम देष्काण में ग्रह हो तो दशा के प्रारम्भ में, द्वितीय द्रेष्काण में हो तो दशा के मध्य में और तृतीय द्रेष्काण में ग्रह हो तो दशा के अन्त में फल की प्राप्ति होती है। वक्री ग्रह हो तो ठीक विपरीत अर्थात् तृतीय द्रेष्काण में हो तो प्रारम्भ में, द्वितीय में हो तो मध्य में और प्रथम द्रेष्काण में हो तो अन्त में फल की प्राप्ति होती है।

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