कुंडली में आत्मकारक ग्रह
कुंडली में आत्मकारक ग्रह
भविष्य निर्माण में आत्मकारक ग्रह की स्थिति निर्णायक होती है। व्यक्ति के भविष्य कथन के समय लग्न, चंद्र व आत्मकारक ग्रह का विचार करते हैं। आत्मकारक ग्रह शुभ हो तो अपनी दशा में शुभफल देता है।
जैमिनी ऋषि के मतानुसार लग्न से भी अधिक महžव आत्मकारक ग्रह का है। प्रत्येक कुंडली में ग्रहों को स्पष्ट कर उसके राशि, अंश, कला, विकला, अंकित होते हैं। अर्थात व्यक्ति के जन्म समय पर कौन सा ग्रह कितने अंश-कला-विकला भोग चुका है, उसे दर्शाया जाता है।
सूर्य से लेकर राहु तक आठों ग्रहों में जिसके अंश सबसे ज्यादा होते हैं, वही ग्रह कुंडली में आत्मकारक ग्रह कहलाता है। केतु को इसमें शामिल नहीं करते। क्योंकि राहु और केतु के अंशादि समान ही होते हैं।
ग्रहों के अंशों के आधार पर आत्मकारक ग्रह का निर्धारण किया जाता है। सबसे अधिक अंश वाला ग्रह आत्मकारक, उससे कम अंश वाला ग्रह अमात्यकारक, उससे कम अंश वाला भ्रात, मातृकारक, पुत्रकारक, पितृकारक, जातिकारक व स्वीकारक होता है। कुछ आचार्यों के मतानुसार मातृकारक ग्रह ही पुत्रकारक होता है। योगादि में आत्मकारक व अमात्यकारक ग्रह मिलकर राजयोग का निर्माण करते हैं। दोनों ही कुंडली में महžवपूर्ण स्थान रखते हैं। कौन सा ग्रह आत्मकारक होने पर क्या प्रभाव डालेगा, इसे संक्षिप्त में समझें-
सूर्य: सूर्य के आत्मकारक होने पर व्यक्ति के मुख पर तेज और ओज होता है। उसकी वाणी ओजस्वी होती है। व्यक्ति विवेकशील होता है, स्मरण शक्ति अच्छी होती है। मान-सम्मान के मामले में वह संवेदनशील होता है। वह क्रोधी भी होता है।
चंद्र: चंद्रमा के आत्मकारक होने पर व्यक्ति सौम्य प्रकृति का होता है। उसकी आंखों में चंचलता और वाणी में माधुर्यता होती है। उसका चित्त अस्थिर रहता है। चंद्रमा के नीच व पाप ग्रहों से ग्रसित होने पर मानसिक रोग भी हो सकता है।
मंगल: मंगल के आत्मकारक होने पर व्यक्ति का शरीर सुदृढ़ और अस्थियां मजबूत होती हैं। व्यक्ति निर्णय लेने में दृढ़ एवं कुशल होता है। उसे कार्यों में सफलता मिलती है।
बुध: बुध के आत्मकारक होने पर व्यक्ति बुद्धिमान होता है। व्यवहार कुशल होने के कारण उसके मित्रों की संख्या अधिक होती है। बातचीत में चतुर और महिला वर्ग को आकर्षित करने वाला होता है।
गुरू: गुरू आत्मकारक होने से व्यक्ति का शरीर सुडौल और सुदृढ़ होता है। व्यक्ति तर्कशील एवं विद्वान होता है। व्यक्ति की वाणी में गंभीरता होती है। वह समाज में प्रतिष्ठित एवं उच्च अधिकारी बनता है।
शुक्र: शुक्र के आत्मकारक होने पर व्यक्ति आकर्षण व्यक्तिžव वाला होता है। चेहरे पर शांत भाव होता है। आकर्षक होने के कारण महिला मित्रों की संख्या ज्यादा होती है। निर्णय लेने की शक्ति अच्छी के कारण हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
शनि: शनि ग्रह के आत्मकारक होने पर व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होता है। अपने कार्यों में सफलता पाता है। अगर कंडली में शनि अच्छी स्थिति में है, तो व्यक्ति घनी होगा।
राहु: राहु के आत्मकारक होने से व्यक्ति शनि जैसे स्वभाव वाला होता है। लेकिन इसमें शनि की अपेक्षा कम शक्ति सामथ्र्य होता है।
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