चंद्र

जय श्री बालाजी 

चंद्रमा और शुक्र 

चन्द्रमा वही ग्रहों के बल का बीज. अपने आप मे एक लग्न. अपना मन. अपनी माता. सदेव चलायमान. चंचल चित्त मन. चन्द्रकला नाडी और कालिदास के अनुसार अपना शारीर. अपना गोचर. अपना निषेक लग्न. अपना रोमांस. और शुक्राचार्य जी के तो kya कहने. संजीवनी विद्या के ज्ञाता. राक्षस गुरु. महा ज्ञानी. ज्योतिष के कारक. अपने डॉक्टर साहब. अपने नेता. अपने अभी नेता. अपनी लेम्बोर्गिनी. अपनी बीवी. अपनी गर्ल frd. अपना भोग. अपना वीर्य. अपना ऐश्वर्या. अपना ऐशो आराम. 

चन्द्रमा स्त्री गृह की श्रेणी मे आता है शुक्र भी. चन्द्रमा माता, शुक्र स्त्री. मतलब सास बहु. दोनो ही सुन्दरता के कारक है. डॉन ओ ही तरल के कारक है. दोनो ही परिवार मे खुश रहते है. विश्वास न हो तो देख लो द्वितीय भाव परिवार का जो शुक्र का घर है और वह चन्द्रमा उच्च का हो जाता है. भाई माता अपने परिवार मे ही तो खुश रहती है. उसके के लालन पालन मे लगी रहती है जिन्दगी भर. उधर चतुर्थ मे दोनो दिग्बली. भाई दोनो स्त्री है. दोनो अपने घर मेक हुस. परिवार के व्रद्धी स्थान मे खुश. चतुर्थ आपके द्वितीय यानी परिवार का वृद्धि स्थान ही तो है. दक्षिण वाले तो चतुर्थ को ही परिवार मानते है. अब माता और स्त्री दोनो इसी लिए चतुर्थ मे दिशा बल ले लेते है और शुभ फल प्राप्त करते है.

चन्द्रमा सब ग्रहों के बल का बीज है इसलिए कभी भी अकेला फल नहीं देता. प्रकाश देने वाला गृह है अब वो किसको प्रकाश देगा वो उसके साथ बैठे गृह या आजू बाजु मे बैठे गृह पे निर्भर है. आपके मन पे किसका प्रभाव है वो चन्द्रमा के साथ बैठे गृह पे डिपेंड होगा. शुभ गृह का प्रभाव हुआ तो शुभ प्रभाव. पाप गृह का प्रभाव होगा तो पाप प्रभाव. मन कोमल कितना है इसलिए उसको शुभ का साथ अति आवशक है. शुक्र भी तो कितना शुभ गृह है. गुरु के बाद शुभ होने का खिताब शुक्र को ही तो है. तो मन पे शुक्र का प्रभाव हो जायेगा . 

अब देखिये चन्द्रमा के साथ शुक्र होगा तो शुक्र को बल रहेगा. क्योंकि पांच तारा ग्रहों मे से कोई भी गृह चन्द्रमा के साथ हो तो उसको बल मिलता है. ये भी एक तरह का गृह का बल है. तो शुक्र को बल मिलता रहता है. और उधर चंदरमा शुभ गृह के प्रभाव मे शुभ फल देता रहत है. तो कहने का मतलब हो गया की शुक्र और चन्द्रमा दोनो बलवान होंगे शुभ होंगे. चन्द्र लग्न बलवान हो गया और शुक्र लग्न बलवान हो गया

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