कुंभ लग्न

कुंभ लग्न

सूर्य : सप्तमेश सूर्य मारक प्रभाव लिए होता है, लेकिन अपनी दशा में मृत्यु नहीं देता है। सूर्य की दशा में स्वास्थ्य हानि के साथ दैनिक रोजगार में वृद्धि होती है। सूर्य शनि तृतीय भावगत हो, तो शुभ होता है।

चंद्रमा : रोगेश चंद्रमा अपनी दशा में रोग और ऋणों से ग्रस्त रखता है। आय की तुलना में व्यय की अधिकता रहती है। कुंभ लग्न के जातक प्रायः चंद्रमा की दशा में ऋण लेते हैं।

मंगल : पराक्रमेश और दशमेश मंगल की दशा को सर्वदा शुभ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि पाप ग्रह तभी शुभ फल करते हैं, जबकि वे केंद्रों के स्वामी हों। जैसे कर्क लग्न में मंगल दशम का स्वामी होने से प्रबल कारक हो जाता है। जबकि सप्तमेश होने के बावजूद कुंभ लग्न में यह स्थिति नहीं देखी जाती है। मंगल नितांत शुभ फल ही दे। कुंभ लग्न में मंगल के भाव और राशिगत स्थिति के अनुसार निर्णय करना चाहिए।

बृहस्पति : द्वितीयेश और लाभेश बृहस्पति की दशा में मूलतः अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। बृहस्पति की दशा प्रतिकूल समय का संकेत करती है। बृहस्पति में बृहस्पति के अंतर के बाद किंचित सुधार आता है।

शनि : हालांकि शनि लग्न का स्वामी है, लेकिन साथ ही द्वादशेश भी है। शनि की दशा एक तरफ जहां स्वास्थ्य लाभ देती है, वहीं सामाजिक व्ययों में अनावश्यक खर्च होता है। शनि यदि सबल हो, तो प्रायः समय अच्छा निकलता है।

बुध : कुंभ लग्न में बुध की स्थिति बहुत ही जटिलतापूर्ण है। पंचमेश होने से शुभ और मंगलकारी है, वहीं अष्टमेश होकर सर्वदा अशुभ और मृत्युदाता है। बुध की दशा का विचार करने से पूर्व यह देख लेना श्रेयस्कर है कि बुध चंद्र लग्न से किन भावों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि चंद्र लग्न से भी बुध अशुभ हो, तो वह अशुभ ही होता है।

शुक्र : कुंभ लग्न में शुक्र एकमात्र ग्रह है, जिसके शुभ होने के संबंध में आचार्यों में किसी प्रकार का कोई मतभेद नहीं है। सुखेश और भाग्येश शुक्र अपने बलाबल के अनुसार क्रमशः शुभ से अधिकतम शुभ फल देगा।


Comments

Popular posts from this blog

Kitchen tips

Chakravyuha

मकर लग्न