अधि योग
अधि योग
यदि शुभ ग्रह लग्न से छठे सातवें और आठवें भाव में हो तो लग्नाधि योग बनता है।
जब लग्न से 7 और 8 में शुभ ग्रह हो और अशुभ ग्रह से दृष्ट न हो अथवा अस्त न हो अथवा अशुभ ग्रह से युक्त न हो तो लग्नाधि योग बनता है जातक महान व्यक्ति शास्त्रों का ज्ञाता तथा सुखी होता है यहां पर महर्षि पराशर ने छठे भाव को शामिल नहीं किया है जबकि लग्नाधि में छठे भाव को शामिल किया गया है।
यदि शुभ ग्रहों की स्थिति चंद्रमा से छठे सातवें तथा आठ में हो तो चंद्राधि योग बनता है।
यदि शुभ ग्रह है तो शुभाधि योग यदि पाप ग्रह है तो पापाधि योग कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनेक ग्रंथों में यह पढ़ा गया है कि यदि शुभ ग्रह छठे आठवें और बारहवें भाव में स्थित हो तो वह शुभ फल नहीं देते किंतु यहां इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि जब लग्न में शुभ ग्रह छठे सातवें तथा आठवें में स्थित होंगे तो एक बात तो निर्विवाद सिद्ध होती है कि लग्न पर सप्तम स्थान में बैठे हुए शुभ है कि शुभ दृष्टि द्वारा लग्न को बल तथा लाभ पहुंचेगा।
बात करें उन ग्रहों की जो कि छठे और आठवें भाव में स्थित है तो छठवें में स्थित ग्रह की लग्न से द्वादश स्थान पर शुभ दृष्टि और आठवें भाव में स्थित शुभ ग्रह की दृष्टि लग्न से द्वितीय स्थान पर पड़ेगी तो इस प्रकार लग्न को एक शुभम मध्यत्व भी प्राप्त होगा क्योंकि उसके आसपास एक प्रकार का शुभ प्रभाव भी आ गया है।
यदि गुरु के साथ राहु और शुक्र के साथ मंगल बैठा हो तो फल में कमी आ जाएगी।
यह बहुत कम होता है कि लग्न से 6,7,8 में शुभ ग्रह बैठे हो।
यदि ऐसा हो कि आठवें में सारे नए हो 6,7 में ना हो तो थोड़ा योग बनेगा लेकिन उतना अच्छा फल नहीं मिलेगा। यदि 6,7,8 में अच्छे ग्रह हैं तो अच्छा फल आएगा अगर अशुभ ग्रह है तो अच्छा फल नहीं बुरा फल मिलेगा लेकिन लग्नाधियोग बनेगा अगर शुभ ग्रह है तो अच्छा फल देंगे।
अशुभ ग्रह सूर्य शनि मंगल राहु केतु बुध इनके साथ बैठ जाए और कृष्ण पक्ष का चंद्रमा। बुध शुभ के साथ शुभ फल देगा और अशुभ के साथ अशुभ फल देगा अगर चंद्रमा पक्ष बली है तो अच्छा माना जाएगा।
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